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शनिवार, 3 मई 2014

कौन बहस में उलझे ?.......550 वीं पोस्ट

पता नहीं
प्रेम …कविता है
या कविता में प्रेम है 

मैं तो खोजी प्रवृत्ति की नहीं
बस प्रेम शब्द को सुन लिया 
और उड चली आसमानों को छूने 
एक नहीं ..... सुना है आसमान सात होते हैं 
और मैने भेदना चाहा हर आसमान प्रेम का सिर्फ़ प्रेम से …………

मैं मरजानी जान ही नहीं पायी 
प्रेम तो सिर्फ़ बुतों से किया जाता है 
बाकि और किसी प्रेम के लिये तो 
ना धरा है ना आकाश 

जितना उडी उतनी ही सहमी 
उतनी ही सिसकी उतनी ही तडपी
प्रेम के सियासतदारों ने 
प्रेम का पहला पाठ पढा दिया 
और प्रेम नाम का इकतारा 
मेरे हाथ में पकडा दिया 

अब मीरा प्रेम - प्रेम गुनगुनाती है 
मगर प्रेम का स्वरूप ना जान पाती है 
प्रेम सिर्फ़ शब्द भर अंकित हुआ 
उसके बाद तो प्रेम पर 
इक तेज़ाब सा उँडेला गया 
और उसका आकार 
छिन्न भिन्न हो गया
फिर उसके बाद तो प्रेम
सिर्फ़ कविताओं की ही थाती भर रह गया 

अब उसे कविता मयी प्रेम कहो 
या प्रेममयी कविता 
फ़र्क नहीं पडता 
क्योंकि प्रेम तो किसी ठूँठ की जड सा 
बस ज़मीन में ही धंसा रह गया 

प्रेम निशब्द होती किसी गुनगुनाहट का नाम है 
या कविता किसी गुनगुनाहट को मुखर कर 
प्रेम की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति है .......कौन बहस में उलझे ?

8 टिप्‍पणियां:


  1. अब मीरा प्रेम - प्रेम गुनगुनाती है मगर प्रेम का स्वरूप ना जान पाती है
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार
    550 वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई वंदना जी

    Recent Post वक्त के साथ चलने की कोशिश

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  2. प्रेम का नाम ही कविता है !!

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  3. प्रेम का नाम ही कविता है !!

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  4. प्रेम की कशिश तो सफर में है मंजिल में नही।

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  5. प्रेम का नाम ही कविता है, 550 वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई वंदना जी

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  6. 550 वीं पोस्ट ?इतने व्यापक रचना संसार के लिये हार्दिक बधाई ।

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