साँस पर गाँठ
मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे
डेरा उठाने का वक्त आ गया
क्योंकि
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
ज़िन्दगी से बहुत कर चुके यारा
अब
मौत से इश्क करने का जो वक्त आ गया
रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया ……
मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे
डेरा उठाने का वक्त आ गया
क्योंकि
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
ज़िन्दगी से बहुत कर चुके यारा
अब
मौत से इश्क करने का जो वक्त आ गया
रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया ……
रूह बंजारा ही है, एक जगह कब ठहरा है
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना !
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मोत से इश्क करने का वक्त आ गया है
जवाब देंहटाएंरूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया
है......बहुत खूब ....
बूझना तो शेष रह ही जाता है। हाँ अब बूझने का अर्थ क्या है?
जवाब देंहटाएंअंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
जवाब देंहटाएं...wakai
ek behtreen rachna ke liye badhai
जवाब देंहटाएंबंजारा यह सन्देश ही तो देता है,पर कोई उसकी बात पर अम्ल करना नही चाहता.
जवाब देंहटाएंBndhna ji jo dhuruv sty hai vh to hai hi pr yh sb kyon
जवाब देंहटाएंBndhna ji jo dhuruv sty hai vh to hai hi pr yh sb kyon
जवाब देंहटाएंHRIDAY SPARSHEE KAVITA KE LIYE
जवाब देंहटाएंHARDIK BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
जब तक जीवन है अंतिम सफर की तैयारी क्यों ...
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