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शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

अब बूझने को बचा क्या ?

साँस पर गाँठ 
मौत की अंतिम अरदास 
अब बूझने को बचा क्या ?

चल बंजारे 
डेरा उठाने का वक्त आ गया 
क्योंकि 
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब

ज़िन्दगी से बहुत कर चुके यारा
अब
मौत से इश्क करने का जो वक्त आ गया

रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया ……

12 टिप्‍पणियां:

  1. रूह बंजारा ही है, एक जगह कब ठहरा है
    सार्थक रचना !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मोत से इश्क करने का वक्त आ गया है
    रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया
    है......बहुत खूब ....

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  4. बूझना तो शेष रह ही जाता है। हाँ अब बूझने का अर्थ क्या है?

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  5. अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
    ...wakai

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  6. बंजारा यह सन्देश ही तो देता है,पर कोई उसकी बात पर अम्ल करना नही चाहता.

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  7. जब तक जीवन है अंतिम सफर की तैयारी क्यों ...

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