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शनिवार, 11 जनवरी 2014

भूख भूख भूख …4

नेता की भूख 
पद के लालच में
नहीं देख पाती 
बेबस जनता की तकलीफ़ें 
जनता का रुदन
उसे चाहिये होता है एक उच्च पद
जहाँ वो सारे कुकृत्य करके भी बच जाये
स्वंय को पाक साफ़ सिद्ध कर सके 
क्योंकि जानता है वो
कीडे मकौडों सी जनता का गणित
भूल जायेगी उसके हर कुकृत्य को
समय हर घाव भर देता है की तर्ज़ पर
और फिर पद यूँ ही नहीं मिला करते
जोड तोड की नीति में 
क्या क्या कुर्बानी नहीं दी होती
तब जाकर एक प्रतिष्ठित पद की भूख शांत होती है
और उसे कायम रखने के लिये 
कितने पापड बेलने पडते हैं
नेता जी अच्छे से जानते हैं
इसलिये भूख तो आखिर भूख है
हर संभव उपायों से शांत करने को प्रयासरत रहना आसान नहीं होता
फिर चाहे उच्छिष्ट के रूप में 
कुछ भरम ही क्यों ना कायम करना पडे 
जनता के बीच …अगले चुनाव से पहले
भूख की जडों को सींचने के लिये 
हथियारबंद होकर 
डर का साम्राज्य पैदा करके 
या फिर शुभचिन्तक बनकर 
रोज नये मुखौटे लगाकर
जरूरी है हर दांवपेंच की जानकारी का होना 

क्रमश : ……………

6 टिप्‍पणियां:

  1. नेता की भूख को समझने के बाद अब जनता की भूख की उम्मीद कर रहा हू.

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  2. काफी उम्दा प्रस्तुति.....
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-01-2014) को "वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490" पर भी रहेगी...!!!
    - मिश्रा राहुल



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  3. नेता का एक ही भूख ----पैसा और पावर !
    नई पोस्ट आम आदमी !
    नई पोस्ट लघु कथा

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  4. बहुत खूब... सच ही लिखा है आपने. राजनीतिक विसंगतियों में फँसे आम आदमी की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है.
    हिमकर श्याम
    http://himkarshyam.blogspot.in

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