भूख आगे बढने की
कभी देख ही नहीं पाती
कौन मरा कौन जीया
किसकी लाश पर पैर रखकर
किसने कौन सा खिताब पाया
भूख तो आखिर भूख है
शांत होने के लिये
कहीं ना कहीं कोई तो अलाव जलाना होगा
रोटियाँ बिना आग के नहीं पका करतीं
फिर चाहे सारे नियमों , नीतियों को ही
नेस्तनाबूद क्यों ना करना पडे
क्योंकि
"जो जीता वो सिकन्दर " कहावत का मोल भी तो चुकाना है
प्रशंसा, सम्मान , उपलब्धियों की भूख भी
दलालों के शोषण का शिकार हो जाती है
मान सम्मान की भूख कब
नैतिकता के सिंहासन से उतार देती है
और कब निज स्वार्थ के वशीभूत
सारी बातों को दरकिनार कर
सिर्फ़ स्वंय को स्थापित करने की चाह जड पकडती है
पता ही नहीं चलता
और शुरु हो जाता है वहीं से शोषण का सिलसिला ……प्रतिभाओं के
बस प्रतिभायें ही मजदूरी करती हैं
और अपना पेट भरती हैं
और दूसरी ओर अवांछित तत्व
कभी पैसे के बल पर
तो कभी पद के बल पर
अपनी तुच्छ भूख को शांत करते
पेज थ्री पर छपते हैं
क्योंकि
भूख तो आखिर भूख होती है
जरूरत है तो उन उपायों की
जो उसे शांत कर सकें
फिर चाहे उसके लिये
खुद की प्रतिष्ठा ही क्यों ना गिरवीं रखनी पडे
क्रमश : ………
कभी देख ही नहीं पाती
कौन मरा कौन जीया
किसकी लाश पर पैर रखकर
किसने कौन सा खिताब पाया
भूख तो आखिर भूख है
शांत होने के लिये
कहीं ना कहीं कोई तो अलाव जलाना होगा
रोटियाँ बिना आग के नहीं पका करतीं
फिर चाहे सारे नियमों , नीतियों को ही
नेस्तनाबूद क्यों ना करना पडे
क्योंकि
"जो जीता वो सिकन्दर " कहावत का मोल भी तो चुकाना है
प्रशंसा, सम्मान , उपलब्धियों की भूख भी
दलालों के शोषण का शिकार हो जाती है
मान सम्मान की भूख कब
नैतिकता के सिंहासन से उतार देती है
और कब निज स्वार्थ के वशीभूत
सारी बातों को दरकिनार कर
सिर्फ़ स्वंय को स्थापित करने की चाह जड पकडती है
पता ही नहीं चलता
और शुरु हो जाता है वहीं से शोषण का सिलसिला ……प्रतिभाओं के
बस प्रतिभायें ही मजदूरी करती हैं
और अपना पेट भरती हैं
और दूसरी ओर अवांछित तत्व
कभी पैसे के बल पर
तो कभी पद के बल पर
अपनी तुच्छ भूख को शांत करते
पेज थ्री पर छपते हैं
क्योंकि
भूख तो आखिर भूख होती है
जरूरत है तो उन उपायों की
जो उसे शांत कर सकें
फिर चाहे उसके लिये
खुद की प्रतिष्ठा ही क्यों ना गिरवीं रखनी पडे
क्रमश : ………
Bahoot sunder krti aap ko sadhuwad
जवाब देंहटाएंऔर ये भूख कभी शांत भी नहीं हो सकती..
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति.....
http://mauryareena.blogspot.in/
काफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!
आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!
- मिश्रा राहुल
भूख अनन्त है ,असीमित है ,यह बढती जाती है ...कम नहीं होती ..सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
उम्दा !
जवाब देंहटाएंबड़ी बेबाकी के साथ यह कटु सत्य उजागर कर दिया है अपनी रचना में वन्दना जी ! सशक्त लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें ! बहुत ही सार्थक एवँ सटीक रचना !
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति......
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