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गुरुवार, 2 मई 2013

क्यूँकि सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं हुआ करते

वो कौन सा जन्म था
वो कौन सी महफ़िल थी
वो कौन सा खुदा था 
वो कौन सी दुनिया थी
मेरे हमनशीं 
भरभराता हुआ आकाश जब 
तेरे दामन में सिमट गया था
एक टुकड़ा मेरी रूह का
वहीँ तेरे पाँव में छुप गया था
कोई वादा नहीं किया था
कोई जलज़ला नहीं आया था
कोई बिजली नहीं गिरी थी
कोई रुका हुआ फैसला नहीं हुआ था
फिर भी कायनात में 
एक चाँद के पहलू में 
दूजा चाँद उग आया था 
किसी खुदगर्ज़ मौसम की ताबीर बनकर
आज भी उसी खुदगर्ज़ मौसम का 
एक टुकड़ा फिर से 
इस जन्म में 
इस सुलगते मौसम में
इस ठहरे पल में
इस रूह की गुंजन में
इस सांस के स्पंदन में
अधखिले गुलाब सा उग आया है
और तुम जानते हो ना
मुझे अधखिले गुलाबों की महक कितनी अच्छी लगती है
बिल्कुल मिटटी पर गिरी बूँद की सौंधी सी खुशबू की तरह
जानती हूँ ना
गर खिल जायेगा गुलाब तो
सबकी निगाह में आ जायेगा
मगर अधखिला गुलाब तो सिर्फ मेरी नज़र को भायेगा
हे ............मेरे गुलाब में अपनी ओस भर दो और उसे जीवंत कर दो ना 
उसी युग की तरह
उसी जन्म की तरह
उसी झील में ठहरे हुए चाँद की तरह 
तुम्हें पता है ना .........
मुझे झील में ठहरा चाँद देखना कितना भाता है
क्योंकि जानती हूँ
कसकों को करार जल्दी नहीं आता है ...........
शायद तभी 
तुमसे ये गुजारिश की है
जो अधूरी ख्वाहिश थी 
उसने आज ये जुर्रत की है
मिटा दो आज खिंची हुई उस रेखा को
और ले चलो उस पार 
जहाँ चाँद के बगल में बैठा दूजा चाँद हमारे इंतजार में है 
उसका इंतजार ही मुकम्मल कर दो ना ..........आज बस इस पल को जी लो ना 
बेमौसमी बरसातों पर कभी तो भरोसा कर लो ना ..........ओ सनम !
क्यूँकि सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं हुआ करते 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,अंतिम चार पक्तियां सार है.

    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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  2. आज बस इस पल को जी लो ना
    बे मौसमी बरसातों पर कभी तो भरोसा कर लो ना,ओ सनम!क्यूँकि सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं हुआ करते,,,

    बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति ,,,

    RECENT POST: मधुशाला,

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  3. सायों की मुहब्बत ..... क्या क्या और कैसी कसी ख्वाहिशें .... सुंदर प्रस्तुति

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  4. गज़ब की ख्वाहिश और गुजारिश... बहुत सुन्दर भाव, बधाई.

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  5. दिल को बहाकर ले जा रहा है कोई..वाह!

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....

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  8. सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं होते.......वाह !!!!

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