वो कौन सा जन्म था
वो कौन सी महफ़िल थी
वो कौन सा खुदा था
वो कौन सी दुनिया थी
मेरे हमनशीं
भरभराता हुआ आकाश जब
तेरे दामन में सिमट गया था
एक टुकड़ा मेरी रूह का
वहीँ तेरे पाँव में छुप गया था
कोई वादा नहीं किया था
कोई जलज़ला नहीं आया था
कोई बिजली नहीं गिरी थी
कोई रुका हुआ फैसला नहीं हुआ था
फिर भी कायनात में
एक चाँद के पहलू में
दूजा चाँद उग आया था
किसी खुदगर्ज़ मौसम की ताबीर बनकर
आज भी उसी खुदगर्ज़ मौसम का
एक टुकड़ा फिर से
इस जन्म में
इस सुलगते मौसम में
इस ठहरे पल में
इस रूह की गुंजन में
इस सांस के स्पंदन में
अधखिले गुलाब सा उग आया है
और तुम जानते हो ना
मुझे अधखिले गुलाबों की महक कितनी अच्छी लगती है
बिल्कुल मिटटी पर गिरी बूँद की सौंधी सी खुशबू की तरह
जानती हूँ ना
गर खिल जायेगा गुलाब तो
सबकी निगाह में आ जायेगा
मगर अधखिला गुलाब तो सिर्फ मेरी नज़र को भायेगा
हे ............मेरे गुलाब में अपनी ओस भर दो और उसे जीवंत कर दो ना
उसी युग की तरह
उसी जन्म की तरह
उसी झील में ठहरे हुए चाँद की तरह
तुम्हें पता है ना .........
मुझे झील में ठहरा चाँद देखना कितना भाता है
क्योंकि जानती हूँ
कसकों को करार जल्दी नहीं आता है ...........
शायद तभी
तुमसे ये गुजारिश की है
जो अधूरी ख्वाहिश थी
उसने आज ये जुर्रत की है
मिटा दो आज खिंची हुई उस रेखा को
और ले चलो उस पार
जहाँ चाँद के बगल में बैठा दूजा चाँद हमारे इंतजार में है
उसका इंतजार ही मुकम्मल कर दो ना ..........आज बस इस पल को जी लो ना
बेमौसमी बरसातों पर कभी तो भरोसा कर लो ना ..........ओ सनम !
क्यूँकि सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं हुआ करते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,अंतिम चार पक्तियां सार है.
जवाब देंहटाएंlateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
आज बस इस पल को जी लो ना
जवाब देंहटाएंबे मौसमी बरसातों पर कभी तो भरोसा कर लो ना,ओ सनम!क्यूँकि सायों की मोहब्बत के मौसम नहीं हुआ करते,,,
बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति ,,,
RECENT POST: मधुशाला,
सायों की मुहब्बत ..... क्या क्या और कैसी कसी ख्वाहिशें .... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगज़ब की ख्वाहिश और गुजारिश... बहुत सुन्दर भाव, बधाई.
जवाब देंहटाएंदिल को बहाकर ले जा रहा है कोई..वाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंशेखावाटी की भागीरथी - काटली नदी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंek tukda mere ruh ka tere paon me chubb gaya... bahut khub... !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता |
जवाब देंहटाएंसायों की मोहब्बत के मौसम नहीं होते.......वाह !!!!
जवाब देंहटाएंBAHUT ACHCHHEE LAGEE HAI AAPKE KAVITA . MUBAARAQ .
जवाब देंहटाएंBAHUT ACHCHHEE LAGEE HAI AAPKEE KAVITA.MUBAARAQ .
जवाब देंहटाएंMUBAARAQEN !
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