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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

प्रेम का मौसम, इश्क का दरिया , मोहब्बत का जुनून !!!

निरुपमा सिंह की वाल पर ये मैसेज पढा 

* अगर भगवान् आप से कहे कि किस उम्र में ठहर जाना चाहती हो तो 


आप किस उम्र को पसंद करेंगी ???

तो ये ख्याल उभरा सोचा सबसे शेयर किया जाये ......और ये है मेरा 


ख्याल :)


वहाँ रुकना चाहूँगी जहाँ 

जीवन मे निस्वार्थ शाश्वत प्रेम की 
अजस्र धारा बह रही हो , 
कोई हो जो मुझे मुझसे ज्यादा जान ले , 
कोई हो जो मुझे मुझसे ज्यादा चाह ले , 
हो कोई ऐसा नाद जिसके बाद ना सुनूँ कोई आवाज़ 
बस वहीं ठहर जाये जीवन , 
वहीं थम जाये वक्त , 
वहीं रुक जाये कायनात 
और हवाओं के तार पर कोई सुर छिडा है प्रेम का , प्रेम के लिये , प्रेम से 
आह ! बस …………बस …………बस 
नहीं चाहिये और कुछ उसके बाद 
जहाँ सितारों भरी आसमाँ की चूनर ने शामियाना ताना हो 
और धरा ने बसंत को पुकारा हो 
और प्रेमी दिलों में बजता प्रेम का इकतारा हो ………
कहो तो ऐसे मौसमों को छोड 
कौन जाये ज़िन्दगी की तल्खियों से गुजरने को 
अब इसे स्वप्न कहो या हकीकत 
मगर मै ज़िन्दगी के उसी मोड पर ठहरना चाहूँगी 
जहाँ मेरा प्रियतम मेरे साथ हो
 हाथों मे हाथ हो 
और निगाहों मे इक दूजे का अक्स चस्पाँ हो 
यूँ तो ठहरने के मौसम नहीं हुआ करते 
मगर प्रेम के मौसम तो हर मौसम में ठहरा करते हैं 
अंगडाइयाँ लिया करते हैं 
जहाँ पतझड भी हरे लगते हैं 
जब कोई ऐसा चाहने वाला हो 
जो आँख की नमी भी सोख ले , 
प्रियतमा के लब पर इक मुस्कान के लिये 
अपने लहू से धरती को सींच दे …………
कौन कमबख्त चाहेगा छोडकर जाना इश्क की इन कमसिन गलियों को
कौन कमबख्त ना चाहेगा रहना इन वादियों में उम्र के ज़िबह होने तक  
आखिर ज़िन्दगी की पहली और अन्तिम प्यास का
 निर्णायक मोड यही तो होता है 
जिसकी चाह में मन का पंछी जीवन का सफ़र तय करता है 
और जब किसी खुदा की नेमत से 
वो पल खुद बख्शीश बन झोली मे गिरा हो 
फिर कैसे ना चाह का प्याला लबालब भरा हो 
ओ खुदा ! एक बार ठहरा दे उस मौसम को मेरी ज़िन्दगी में 
या ज़िन्दगी के उसी मौसम में उम्र फ़ना हो जाये 
तो हसरत हर, दिल की निकल जाये 
पंचतत्वों मे से दो तत्व हैं हम आग और पानी 
और सुना है आग और पानी के ठहरने का 
सिर्फ़ एक ही मौसम हुआ करता है …………प्रेम का मौसम, इश्क का दरिया , मोहब्बत का जुनून !!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना...
    मन को छुह गयी...
    प्रेम ही अंतिम लक्ष्य है।

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  2. अंतर्मन मैं ठहरा हुआ सा
    स्वप्निल, उकेरा हुआ चित्रांश
    मुट्ठी से फिसलती रेत सा

    भावपूर्ण प्रवाह,,,,बधाई

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  3. बहुत खूब ... बस वो पल ही तो जीवन है ... उस पल तो वैसे ही ठहर जाता है पल ...

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  4. वहाँ रुकना चाहूँगी जहाँ
    जीवन मे निस्वार्थ शाश्वत प्रेम की अजस्र धारा बह रही हो , कोई हो जो मुझे मुझसे ज्यादा जान ले ,

    ....काश रुक पाते उस पल में..बहुत भावपूर्ण रचना...

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  5. akhir zindgi ki.............................labalab bhara ho.


    sach sach bilkul sach, wah.

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  6. प्रेम,प्रेम,..... प्रेम सबकुछ
    मैं भी रुकना चाहूंगी जहाँ मैंने अपने में 'माँ' को पाया .... हर प्यार का निचोड़ 'माँ'

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  7. गहन अनुभूति बेहतरीन प्रस्तुति
    जीवंत रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  8. बहुत खूबसूरत भाव ...

    कोई हो जो मुझे मुझसे ज्यादा जान ले , कोई हो जो मुझे मुझसे ज्यादा चाह ले ,

    सुंदर खयाल

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  9. और सुना है आग और पानी के ठहरने का
    सिर्फ एक ही मौसम हुआ करता है ..............
    क्‍या बात है
    बहुत खूब कहा आपने ...
    सादर

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  10. प्रेम का मौसम...इश्‍क का दरिया..खूब कहा

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  11. बहुत खूब .....आपकी चाहत पूरी हो ..बधाई

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  12. ये जूनून ताजिंदगी कायम रहे.

    सुंदर प्रस्तुति.

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