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रविवार, 7 अप्रैल 2013

यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता


जो कभी हुआ ही नहीं 
जो कभी मिला ही नहीं 
जिसका कोई वजूद रहा ही नहीं 
मैने उस इश्क को पीया है 
और जीया है साहिबा 

यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता 

दिल धडकता भी हो 
साँस आती भी हो 
रूह पैबस्त भी हो 
मैने हर उस लम्हे में 
खुद को मरते देखा है साहिबा 

यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता 

आँच जलती भी रही 
रोटी पकती भी रही 
भूख मिटती भी रही 
मैने उस चूल्हे की तपन में 
खुद को सेंका है साहिबा 

यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक रचना!
    जिन्दगी का पूरा फलसफा है इस रचना में!

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  2. गीत और लय के साथ शद्बों को सजाया है। नाखून भी अपने होते है और खरौंचें भी अपनी। उन्हें दुबारा कुरेद कर ताजा करना सच में आसान नहीं होता। drvtshinde.blogspot.com

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  3. गीत और लय के साथ शद्बों को सजाया है। नाखून भी अपने होते है और खरौंचें भी अपनी। उन्हें दुबारा कुरेद कर ताजा करना सच में आसान नहीं होता। drvtshinde.blogspot.com

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (08 -04-2013) के चर्चा मंच 1208 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है | सूचनार्थ

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  5. उत्कृष्ट रचना गहन अनुभूति

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  6. बहुत गहरी संवेदनायें ...... मार्मिक

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  7. खुद को सेक के ही दूसरों के उदार की पूर्ती होती है ..
    खुद को तिल तिल जलाना होता है कभी कभी ..
    अर्थपूर्ण रचना ..

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  8. अपने ही दर्द को कुरेदना आसान नहीं ... पर प्यार वह भी कर लेता है साहिबा

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  9. जीवन की अनुभूतियों को व्यक्त करती सुन्दर रचना
    LATEST POSTसपना और तुम

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