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बुधवार, 16 जनवरी 2013

सोचती हूँ अघोरी बन जाऊँ

सोचती हूँ अघोरी बन जाऊँ
और अपने मन के शमशान में
कील दूँ तुम्हें 
तुम्हारी यादों को
तुम्हारे वजूद को
अपनी मोहब्बत के 
सिद्ध किये मन्त्रों से 

सुना है --------- मन्त्रों में बहुत शक्ति होती है
और आत्मायें 
जो कीली जाती हैं 
वचनबद्ध होती हैं 
मन्त्रों की लक्ष्मण रेखा में 
बँधे रहने को ------------

क्योंकि
मोहब्बत की शमशानी खामोशी में गूँजते 
मन्त्रोच्चार के भी अपने कायदे होते हैं ……

21 टिप्‍पणियां:

  1. गज़ब ..एकदम अलग और बहुत गहरी बात .

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  2. शब्द - शब्द......सन्नाटा......बहुत सुन्दर ।

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  3. अपने में ही बातें, मन्त्र और सन्नाटा

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  4. इतनी तल्खी कभी आपको दुखी न कर दे

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  5. कायदे में रहना अघोरी को भी कहाँ पसंद है? .. ..
    बहुत बढ़िया रचना ..

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  6. कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी

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  7. मन की सरहदों से बढ़ जाये आगे अपना ही मन ....... तो सोच की उंचाई,गहराई यूँ ही परिलक्षित होती है

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  8. प्रेम का चरमोत्कर्ष कहें या बंधन में बांध लेने की हसरत का बयां।

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  9. बहुत खूब.....
    मन की अभिव्यक्ति कुछ ऐसी ही मेरी भी....!!

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  10. ये मुहब्बत जो न बना दे कम है :):) ... बिलकुल नया बिम्ब ।

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  11. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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  12. बहुत ही प्यारी लेकिन खूंख्वार कोशिश .....प्यार को बाँधने की...अच्छी लगी ....!

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  13. अरे, आपने तो चौंका दिया,फिर से पढ़ रही हूँ सचेत होकर !

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  14. पर मुहब्बत कहाँ रहती है कायदों में ...

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  15. पर अघोरी सहज-स्वाभाविक नहीं होता!

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  16. देने का भाव तो मोल है
    तुमने तो उन्‍हें दिया है
    कुछ अलमोल
    जो लहला रहा है
    जीवन बनकर
    ओर सिच दो प्रेम ओर संस्‍कार
    उसके तरूण ह्रदय में
    ताकि वह फैल सके
    जग में एक बीज बन कर
    स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा

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