सोचती हूँ अघोरी बन जाऊँ
और अपने मन के शमशान में
कील दूँ तुम्हें
तुम्हारी यादों को
तुम्हारे वजूद को
अपनी मोहब्बत के
सिद्ध किये मन्त्रों से
सुना है --------- मन्त्रों में बहुत शक्ति होती है
और आत्मायें
जो कीली जाती हैं
वचनबद्ध होती हैं
मन्त्रों की लक्ष्मण रेखा में
बँधे रहने को ------------
क्योंकि
मोहब्बत की शमशानी खामोशी में गूँजते
मन्त्रोच्चार के भी अपने कायदे होते हैं ……
और अपने मन के शमशान में
कील दूँ तुम्हें
तुम्हारी यादों को
तुम्हारे वजूद को
अपनी मोहब्बत के
सिद्ध किये मन्त्रों से
सुना है --------- मन्त्रों में बहुत शक्ति होती है
और आत्मायें
जो कीली जाती हैं
वचनबद्ध होती हैं
मन्त्रों की लक्ष्मण रेखा में
बँधे रहने को ------------
क्योंकि
मोहब्बत की शमशानी खामोशी में गूँजते
मन्त्रोच्चार के भी अपने कायदे होते हैं ……
Shandaar.
जवाब देंहटाएंगज़ब ..एकदम अलग और बहुत गहरी बात .
जवाब देंहटाएंशब्द - शब्द......सन्नाटा......बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
अपने में ही बातें, मन्त्र और सन्नाटा
जवाब देंहटाएंgahra andaz......
जवाब देंहटाएंइतनी तल्खी कभी आपको दुखी न कर दे
जवाब देंहटाएंकायदे में रहना अघोरी को भी कहाँ पसंद है? .. ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ..
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और सशक्त विचार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंमन की सरहदों से बढ़ जाये आगे अपना ही मन ....... तो सोच की उंचाई,गहराई यूँ ही परिलक्षित होती है
जवाब देंहटाएंप्रेम का चरमोत्कर्ष कहें या बंधन में बांध लेने की हसरत का बयां।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंमन की अभिव्यक्ति कुछ ऐसी ही मेरी भी....!!
ये मुहब्बत जो न बना दे कम है :):) ... बिलकुल नया बिम्ब ।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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बहुत ही प्यारी लेकिन खूंख्वार कोशिश .....प्यार को बाँधने की...अच्छी लगी ....!
जवाब देंहटाएंअरे, आपने तो चौंका दिया,फिर से पढ़ रही हूँ सचेत होकर !
जवाब देंहटाएंपर मुहब्बत कहाँ रहती है कायदों में ...
जवाब देंहटाएंपर अघोरी सहज-स्वाभाविक नहीं होता!
जवाब देंहटाएंदेने का भाव तो मोल है
जवाब देंहटाएंतुमने तो उन्हें दिया है
कुछ अलमोल
जो लहला रहा है
जीवन बनकर
ओर सिच दो प्रेम ओर संस्कार
उसके तरूण ह्रदय में
ताकि वह फैल सके
जग में एक बीज बन कर
स्वामी आनंद प्रसाद मनसा