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शनिवार, 19 जनवरी 2013

"तुम्हारी मूक अभिव्यक्ति की मुखर पहचान हूँ मैं"

सुनो
प्रश्न किया तुमने
देह के बाहर मुझे खोजने का
और खुद को सही सिद्ध करने का
कि देह से इतर तुम्हें
कभी देख नहीं पाया
जान नहीं पाया
एक ईमानदार स्वीकारोक्ति तुम्हारी
सच ……अच्छा लगा जानकर

मगर

बताना चाहती हूँ तुम्हें
मैं हूँ देह से इतर भी
और देह के संग भी
बस बीच की सूक्ष्म रेखा कहो
या दोनो के बीच का अन्तराल
उसमें कभी देखने की कोशिश करते
तो जान पाते
मै और मेरा प्रेम
मैं और मेरी चाहतें
मैं और मेरा होना
देहजनित प्रेम से परे
मेरे ह्रदयाकाश मे अवस्थित
अखण्ड ब्रह्मांड सा व्यापक है
जिसमें मेरा देह से इतर होना समाया है
बस भेदना था तुम्हें उस ब्रह्मांड को
अपने प्रेमबाण से
जो देह पर आकर ही ना
अपना स्वरूप खो बैठे

क्या चाहा देह से इतर

सिर्फ़ इतना ना
कभी कभी आयें वो पल
जब तुम्हारे स्पर्श में
मुझे वासनामयी छुअन
का अहसास ना हो
कभी लेते हाथ मेरा अपने हाथ में
सहलाते प्रेम से
देते ऊष्मा स्पर्श की
जो बताती ………
मैं हूँ तुम्हारे साथ
तुम्हारे हर अनबोले में
तु्म्हारे हर उस भाव में
जिन्हें तुम शब्दों का जामा नही पहना पातीं
"तुम्हारी मूक अभिव्यक्ति की मुखर पहचान हूँ मैं"
ओह ! सिर्फ़ इन्हीं शब्दो के साथ
मैं सम्पूर्ण ना हो जाती

या कभी पढते आँखों की भाषा

जहाँ वक्त की ख्वाहिशों तले
मेरा वजूद दब गया था
मगर अन्दर तो आज भी
एक अल्हड लडकी ज़िन्दा थी
कभी करते कोशिश
पढने की उस मूक भाषा को
और करते अभिव्यक्त
मेरे व्यक्त करने से पहले
आह ! मैं मर कर भी ज़िन्दा हो जाती
प्रेम की प्यास कितनी तीव्र होगी ……सोचना ज़रा


क्या ज्यादा चाहा तुमसे

इतने वर्ष के साथ के बाद
जहाँ पहुँचने के बाद शब्द तो गौण हो जाते हैं
जहाँ पहुँचने के बाद शरीर भी गौण हो जाते हैं
क्या इतना चाहना ज्यादा था
कम से कम मेरे लिये तो नही था
क्योंकि
मैने तुम्हें देह के साथ भी
और देह से इतर भी चाहा है

जानते हो

कभी कभी जरूरत होती है
देह से इतर भी प्रेम करने की ……राधा कृष्ण सा

सम्पूर्णता की चाह में ही तो भटकाव है ,प्यास है , खोज है

जो मेरी भी है और तुम्हारी भी
बस फ़र्क है तो स्वीकार्यता में
बस फ़र्क है तो महसूसने में
बस फ़र्क है तो उसके जीने में

और मैं और मेरी प्यास अधूरी ही रही

मुझे पसन्द नहीं अधूरापन ………
क्योंकि
ना तुम आदि पुरुष हो ना मैं आदि नारी
इसलिये
खोज जारी है …………देह से इतर प्रेम कैसे होता है

अधूरी हसरतों को प्यास के पानी से सींचना सबके बस की बात नहीं …………

19 टिप्‍पणियां:

  1. देह का प्यार तो क्षणिक होता है आत्मा रूपी ह्रदय से प्यार ही सच्चा प्यार होता है,इस मार्मिक प्रस्तुती के लिए धन्यबाद।

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  2. देह का प्यार तो क्षणिक होता है आत्मा रूपी ह्रदय से प्यार ही सच्चा प्यार होता है,इस मार्मिक प्रस्तुती के लिए धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. GREAT :-) आपकी हर पोस्ट अच्छी लगती हैँ मैँ कई बार एक एक को पढता हुँ केवल समय की कमी के कारन हमेँशा कमेँट नहीँ कर पाता ।

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  4. एक ऐसा सच जो हर औरत महसूसती है ....लेकिन उसका एहसास नहीं करवा पाती......

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  5. एक ईमानदार स्वीकारोक्ती ...
    बहुत ही अच्छा लगा पड़कर सुंदर अभिवयक्ति ....

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  6. एक ईमानदार स्वीकारोक्ती ...
    बहुत ही अच्छा लगा पड़कर सुंदर अभिवयक्ति ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2013) के चर्चा मंच-1130 (आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं...!) पर भी होगी!
    सूचनार्थ... सादर!

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  8. मूक सी बात ..बेहद गंभीर विषय और उठाने वाली सम्वेदनशील वंदना जी विषय बेहतरीन होना ही था और मर्मस्पर्शी भी बधाई

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  9. एक कारूणिक संवेदना कविता के रूप मंे फूट पड़ी है....
    प्रेम को देह से ईतर देखना सच्चा प्रेम है
    आज आज के समय में यही सच्चा प्रेम मिलता कहां है

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  10. बहुत गहरी और प्रभावी प्रस्तुति..

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  11. सुन्दरता से लिखी गयी भाव पूर्ण रचना ..

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  12. राधा-कृष्ण का प्रेम
    वाकई प्रेम की सच्ची परिभाषा प्रस्तुत करता है ,,,,,

    सुन्दर भावाभियक्ति .....
    सादर .

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  13. ना तुम आदि पुरुष हो ना मैं आदि नारी
    इसलिये
    खोज जारी है …………देह से इतर प्रेम कैसे होता है

    अधूरी हसरतों को प्यास के पानी से सींचना सबके बस की बात नहीं ……

    हसरत तो रहती लेकिन इसे स्वीकारना भी द्विविधा में डाल जाता है.

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  14. विचार मनोभाव मनोविज्ञान की सशक्त अभ्व्यक्ति हाँ मैं सिर्फ मादा शरीर नहीं तुम सी भी हूँ एक शख्शियत प्रेम पगी
    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ रविवार, 20 जनवरी 2013 .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ? http://veerubhai1947.blogspot.in/
    Expand Reply Delete Favorite More

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