अब सिर्फ
लिखने के लिए
नहीं लिखना चाहती
थक चुकी हूँ
वो ही शब्दों के उलटफेर से
भावनाओं के टकराव से
मनोभावों का क्या है
रोज बदलते हैं
और एक नयी
परिभाषा गठित करते हैं
मगर लगता है
सब निरर्थक
रसहीन
उद्देश्यहीन सा
कोई कीड़ा रेंग रहा है
अंतस में चिकोटी भर रहा है
जो चाह रहा है
अपनी परिधि से बाहर आना
निकलना चाहता है
नाली के व्यास से बाहर
बनाना चाहता है
एक अलग मकां अपना
जिसमे
सिर्फ शब्दों के अलंकार ना हों
जिसमे सिर्फ
एकरसता ना हो
जिसमे हो एक नया उद्घोष
जिसमे हो एक नया सूर्योदय
अपने प्रभामंडल के साथ
अपनी आभा बिखेरता
और अपने लिए खुद
अपनी धरती चुनता हुआ
जिस पर रख सकूँ मैं अपने पैर
नहीं हो जिसकी जमीन पर कोई फिसलन
हो तो बस एक
आकाश से भी विस्तृत
मेरा अपना आकाश
जिसके हर सफे पर लिखी इबारत मील का पत्थर बन जाये
और मेरी धरा का रंग गुलाबी हो जाये
कोई तो कारण होगा
खामोश मर्तबान में मची इस उथल पुथल का
जरूरी तो नहीं अचार खट्टा ही बने
शायद
अब वक्त आ गया है देग बदलने का ................
यूँ तो धमनियों में लहू बहता ही रहेगा
और जीवन भी चलता रहेगा
मगर
अन्दर बैठी सत्ता ने बगावत कर दी है
क्योंकि तख्ता पलट यूँ ही नहीं हुआ करते ...........
नहीं लिखना चाहती
थक चुकी हूँ
वो ही शब्दों के उलटफेर से
भावनाओं के टकराव से
मनोभावों का क्या है
रोज बदलते हैं
और एक नयी
परिभाषा गठित करते हैं
मगर लगता है
सब निरर्थक
रसहीन
उद्देश्यहीन सा
कोई कीड़ा रेंग रहा है
अंतस में चिकोटी भर रहा है
जो चाह रहा है
अपनी परिधि से बाहर आना
निकलना चाहता है
नाली के व्यास से बाहर
बनाना चाहता है
एक अलग मकां अपना
जिसमे
सिर्फ शब्दों के अलंकार ना हों
जिसमे सिर्फ
एकरसता ना हो
जिसमे हो एक नया उद्घोष
जिसमे हो एक नया सूर्योदय
अपने प्रभामंडल के साथ
अपनी आभा बिखेरता
और अपने लिए खुद
अपनी धरती चुनता हुआ
जिस पर रख सकूँ मैं अपने पैर
नहीं हो जिसकी जमीन पर कोई फिसलन
हो तो बस एक
आकाश से भी विस्तृत
मेरा अपना आकाश
जिसके हर सफे पर लिखी इबारत मील का पत्थर बन जाये
और मेरी धरा का रंग गुलाबी हो जाये
कोई तो कारण होगा
खामोश मर्तबान में मची इस उथल पुथल का
जरूरी तो नहीं अचार खट्टा ही बने
शायद
अब वक्त आ गया है देग बदलने का ................
यूँ तो धमनियों में लहू बहता ही रहेगा
और जीवन भी चलता रहेगा
मगर
अन्दर बैठी सत्ता ने बगावत कर दी है
क्योंकि तख्ता पलट यूँ ही नहीं हुआ करते ...........
आपकी इस कवितामयी बातों से लग रहा है तख्ता पलट हो जाना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता |नववर्ष की शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना है मन को भा गई बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंBahut sundar...takhta palatne ko to koyi Gandhi hee chahiye!
जवाब देंहटाएंNaya saal bahut mubarak ho...
अन्दर बैठी सत्ता ने बगावत कर दी है
जवाब देंहटाएंक्योंकि तख्ता पलट यूँ ही नहीं हुआ करते ......
शत-प्रतिशत सही है, बिना वहां बगावत हुए कुछ भी नहीं हो सकता और हुई तो आगे कोई ठहर भी नहीं सकता..
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक .
जवाब देंहटाएंलहू बहेगा,
जवाब देंहटाएंधरती कभी तो जनेगी,
एक वीर इस खून से,
जो ये धब्बे धोयेगा।
वंदनाजी ...बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबगावत का बिगुल बजना शुभ का सन्देश है।
जवाब देंहटाएंसच है कई बार मन होता है, रूटिन को बदलने का. एक नई ताजगी आ जायेगी. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Haal mein likhee aapkee kavya abhivyakti nissandeh prashasneey
जवाब देंहटाएंhai .
तख्ता पलटना तो जनता के उपर निर्भर है,, सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
अब तख़्ता पलटना ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंजनता की अंतरात्मा जब बगावत करेगी तब अवश्य तख्ता पलटेगी -बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट : "गांधारी के राज में नारी !"
जनता की अंतरात्मा जब बगावत करेगी तब अवश्य तख्ता पलटेगी -बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट : "गांधारी के राज में नारी !"
सभी सार्थक परिवर्तन समय की सही दें है .ताजा, संतुलित, व्यावहारिक रचना
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ वंदन जी तख्तापलट भी होगा. भावनायों का ज्वार उत्पीडन के खिलाफ ऐसे शांत होना भी नहीं चाहिये.
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