अब देखिये इस चित्र को और बताइये ये किस बर्बरता से कम है……कल को कहीं फिर से जलियाँवाला बाग कांड भी हो जाये तो कोई हैरानगी नहीं होगी
इसे क्या कहेंगे आप ?
पुलिस की बर्बरता या सरकार का फ़रमान या अनदेखी या लोकतंत्र का बलात्कार राजशाही द्वारा …………जहाँ न्याय की माँग करने पर पैरों से रौंदा जाता है ………धिक्कार है !!!!!!!!
बर्बरता शब्द भी आज रो उठा
देखा जो हाल इंडिया गेट पर
कैसा देश कैसा लोकतंत्र
ये तो बन गया कठपुतली तंत्र
सुना है कृष्ण ने उद्धार हेतु
किया था भौमासुर का संहार
और किया था मुक्त सोलह हजार को
वो भी तो दानव था ऐसा
जो बलात कन्या अपहृत करता था
उनको कृष्ण ने न्याय दिया
राजा का धर्म निभा दिया
आज कैसे राजा राज करते हैं
जो बलात्कारियों को ही संरक्षण देते हैं
और विरोध करने वालों पर ही
अत्याचार करते हैं
सुना है जब अधर्म की अति होती है
तभी कोई नयी क्रांति होती है
इस बार जो बीज बोये हैं
फ़सल उगने तक इन्हें सींचना होगा
हौसलों को ना पस्त होने देना होगा
मेरे देश के बच्चों …कल तुम्हारा है
बस ये याद रखना होगा
जो कदम आगे बढे
उन्हें ना पीछे हटने देना होगा
फिर देखें कैसे ना तस्वीर बदलेगी
कैसे ना पर्वत से गंगा निकलेगी
बेशक आज अन्याय की छाती चौडी है
मगर न्याय की डगर से भी ना दूरी है
बस इस बार ना कदम पीछे करना
और इस देश के नपुंसक तंत्र को उखाड देना
बस न्याय मिल जायेगा
हर दामिनी का चेहरा गर्व से दमक जायेगा
सशक्त रचना ..... कुंभकरण भी 6 महीने बाद जाग जाता था .... पर यह सरकार तो न जाने कौन सी नींद सोयी हुई है ।
जवाब देंहटाएंसत्य कहा है आपने आदरणीया आखिर कब तक ये सब यूँ ही चलता रहेगा, कब तक हम सहते और दबते रहेंगे, वर्तमान परिस्थिति को सहजता के साथ लिखी सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंआँख नम है
जवाब देंहटाएंन्याय की माँग में
जुल्म देख
उम्मीद है, इस बार का जन-आक्रोश किसी सकारात्मक परिणाम को जन्म देगा
जवाब देंहटाएंअन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति... आभार
जवाब देंहटाएंचलती बस में लड़की के साथ बलात्कार
जवाब देंहटाएंपुलिस प्रशाशन की नाकामी और हार
युबा और युब्तियों की हमदर्दी और न्याय के लिए प्रदर्शन
सोनिया राहुल शिंदे शीला पुलिस कमिश्नर का निन्दनीय आचरण
हमेशा की तरह आन्दोलन को दवाने की साजिश
पुलिस का ब्यबहार गैरजरूरी और शरमशार
भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार .
अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं
नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे ढह गए हैं
सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंअब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं
धिक्कार है ...आजकल की इस व्यवस्था पर !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं
जवाब देंहटाएंतंत्र ला बदलाव जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंये कोई राजनीति की बात नहीं है ... अगर आने वाली सरकार भी ठीक नहीं तो उसे भी बदलना होगा ... प्रक्रिया जारी रखनी होगी ... हल तभी निकलेगा ...
बढ़िया,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!
अन्याय के खिलाफ सशक्त अभिव्यक्ति ,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : समाधान समस्याओं का,
बहुत सशक्त रचना...
जवाब देंहटाएंजो हाथ उठा सकते हैं लाठी लड़की पर,
उन हाथों से रक्षा की आशा क्या होगी?
केवल आश्वासन देकर जो बहलाते हैं,
उनसे कठोर निर्णय की आशा क्या होगी?
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 25/12/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंस्पष्ट भाव संप्रेषित करती रचना।
जवाब देंहटाएंअन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंओज लिए सुंदर रचना । ये स्वर बधिर सरकार को ज़रूर जगाएँगे।
जवाब देंहटाएंसभी पहलुओं पर विचार ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद।
सिसकती रही बेबस दामिनी
जवाब देंहटाएंपर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई
शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी
छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी
ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म
रूह शैतान की भी काँप गयी
बना अपनी हवस का शिकार
सरिया लोहे की खोख में उतार दी
फेंक दिया बीच राह नग्न कर
कुदरत भी लज्जा गयी
दिलाने इन्साफ अपने को
झुन्झ रही दामिनी मौत से
सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद
खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी
सुनो ये दुनियावालों
दामिनी है तुम्हे पुकार रही
रहनुमा ना बन सके
हमदर्द बन
इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ
उसके इन्साफ के लिए
सरकार तो क्या
खुदा से भी तुम लड़ जाओ
कोई तो सच्चा मसीहा बन
ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ
www.poemsbymanoj.blogspot.com
सिसकती रही बेबस दामिनी
जवाब देंहटाएंपर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई
शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी
छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी
ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म
रूह शैतान की भी काँप गयी
बना अपनी हवस का शिकार
सरिया लोहे की खोख में उतार दी
फेंक दिया बीच राह नग्न कर
कुदरत भी लज्जा गयी
दिलाने इन्साफ अपने को
झुन्झ रही दामिनी मौत से
सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद
खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी
सुनो ये दुनियावालों
दामिनी है तुम्हे पुकार रही
रहनुमा ना बन सके
हमदर्द बन
इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ
उसके इन्साफ के लिए
सरकार तो क्या
खुदा से भी तुम लड़ जाओ
कोई तो सच्चा मसीहा बन
ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ
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बेहद नाज़ुक और ज़रूरी विषय पर सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति... आभार
जवाब देंहटाएं