मुझमे उबल रहा है एक तेज़ाब
झुलसाना चाह रही हूँ खुद को
खंड- खंड करना चाहा खुद को
मगर नहीं हो पायी
नहीं ....नहीं छू पायी
एक कण भी तेजाबी जलन की
क्योंकि
आत्मा को उद्वेलित करती तस्वीर
शायद बयां हो भी जाए
मगर जब आत्मा भी झुलस जाए
तब कोई कैसे बयां कर पाए
देखा था कल तुम्हें
नज़र भर भी नहीं देख पायी तुम्हें
नहीं देख पायी हकीकत
नहीं मिला पायी आँख उससे
और तुमने झेला है वो सब कुछ
हैवानियत की चरम सीमा
शायद और नहीं होती
ये कल जाना
जब तुम्हें देखा
महसूसने की कोशिश में हूँ
नहीं महसूस पा रही
जानती हो क्यों
क्योंकि गुजरी नहीं हूँ उस भयावहता से
नहीं जान सकती उस टीस को
उस दर्द की चरम सीमा को
जब जीवन बोझ बन गया होगा
और दर्द भी शर्मसार हुआ होगा
कहते हैं "चेहरा इन्सान की पहचान होता है "
और यदि उसी पहचान
पर हैवानियत ने तेज़ाब उंडेला हो
और एक एक अंग गल गया हो
मूंह , आँख , नाक , कान
सब रूंध गए हों
न कहना
न सुनना
न बोलना
जीवन की क्षणभंगुरता ने भी
उस पल हार मान ली हो
नहीं , नहीं , नहीं
कोई नहीं जान सकता
कोई नहीं समझ सकता
उस दुःख की काली रात्री को
जो एक एक पल को
युगों में तब्दील कर रही हो
एक एक सांस
खुद पर बोझ बन रही हो
और जिंदा रहना
एक अभिशाप समझ रही हो
कुछ देर खुद को
गर गूंगा , बहरा और अँधा
सोच भी लूं
तो क्या होगा
कुछ नहीं
नहीं पार पा सकती उस पीड़ा से
नहीं पहुँच सकती पीड़ा की
उस भयावहता के किसी भी छोर तक
जहाँ जिंदा रहना गुनाह बन गया हो
और गुनहगार छूट गया हो
जहाँ हर आती जाती सांस
पोर पोर में लाखों करोड़ों
सर्पदंश भर रही हो
और शरीर से परे
आत्मा भी मुक्त होने को
व्याकुल हो गयी हो
और मुक्ति दूर खड़ी अट्टहास कर रही हो
नहीं ..........शब्दों में बयां हो जाये
वो तो तकलीफ हो ही नहीं सकती
जब रोज खौलते तेज़ाब में
खुद को उबालना पड़ता है
जब रोज नुकीले भालों की
शैया पर खुद को सुलाना पड़ता है
जब रोज अपनी चिता को
खुद आग लगाना पड़ता है
और मरने की भी न जहाँ
इजाज़त मिलती हो
जिंदा रहना अभिशाप लगता हो
जहाँ चर्म , मांस , मज्जा
सब पिघल गया हो
सिर्फ अस्थियों का पिजर ही
सामने खड़ा हो
और वो भी अपनी भयावहता
दर्शाता हो
भट्टी की सुलगती आग में
जिसने युगों प्रवास किया हो
क्योंकि
जिसका एक एक पल
युगों में तब्दील हुआ हो
वहां इतने वर्ष बीते कैसे कह सकते हैं
क्या बयां की जा सकती है
शब्दों के माध्यम से ?
पीड़ा की जीवन्तता
जिससे छुटकारा मिलना
आसान नहीं दीखता
जो हर कदम पर
एक चुनौती बनी सामने खड़ी दिखती है
क्या वो पीड़ा , वो दर्द
वो तकलीफ
वो एक एक सांस के लिए
खुद से ही लड़ना
मौत को हराकर
उससे दो- दो हाथ करना
इतना आसान है जितना कहना
"जिस पर बीते वो ही जाने "
यूँ ही नहीं कहा गया है
शब्द मरहम तभी तक बन सकते हैं
जहाँ पीड़ा की एक सीमा होती है
अंतहीन पीडाओं के पंखों में तो सिर्फ खौलते तेज़ाब ही होते हैं
जो सिर्फ और सिर्फ
आत्मिक शक्ति और जीवटता के बल पर ही जीते जा सकते हैं
और तुम उसकी मिसाल हो कहकर
या तुम्हें नमन करके
या सहानुभूति प्रदर्शित करके
तुम्हारी पीड़ा को कमतर नहीं आंक सकती
बस मूक हूँ .............पीड़ा का दिग्दर्शन करके
दोस्तों कल कौन बनेगा करोडपति में धनबाद की सोनाली को देखा और जिस पीड़ा से वो गुजरी उसे जाना , उसे देखा तो मन कल से बहुत व्यथित हो गया और सोच में हूँ तब से कैसे उसने इतने साल एक एक पल मौत से लड़कर गुजारा है ? विकृत मानसिकता ने एक जीवन को कैसे बर्बाद किया ये देखकर मन उद्वेलित हो गया और उसकी पीडा को सोच सोच कर ही दिल कसमसा रहा है क्या थी और क्या हो गयी और कैसे उसने पिछले दस सालों से जीवन को जीया है ……मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी पीडा ही तडपा रही है जिसे शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है।
नि:शब्द हूँ ... इस अभिव्यक्ति को पढ़कर आपकी लेखनी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बयां किया आपने...ऐसा करने वालो को कभी माफ नहीं करना चाहिये |
जवाब देंहटाएंयह सब महसूस किया जा सकता है .... ऐसा करने वाले गुनहगारों को सख्त सज़ा मिलनी चाहिए .... संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण विचार
जवाब देंहटाएंमार्मिक व्यथा वर्णन..
जवाब देंहटाएंकल के बी सी का वह एपिसोड देखकर यही हाल अपना भी है..
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया ।।
जवाब देंहटाएंदर्दनाक घटना घटी, मेरा पास पड़ोस ।
दुष्टों की हरकत लटी, था *धैया में रोष ।
था *धैया में रोष, कोसते हम दुष्कर्मी ।
जेल प्रशासन ढीठ, दिखाया बेहद नरमी ।
उठे मदद को हाथ, पीडिता की खातिर अब ।
अपराधी को सजा, मिलेगी ना जाने कब ।।
*धैया ग्राम हमारे कालेज के बगल में ही है जहाँ यह घटना हुई-
@रविकर जी फिर तो आप इस बारे में हम सबसे ज्यादा जानते होंगे बहुत मन व्यथित है ।
जवाब देंहटाएं@रविकर जी आभार आपका जो आपने इस पोस्ट को लिंक-लिक्खाड़ पर स्थान दिया हम और कुछ तो नही कर सकते बस अपनी अपनी तरह कोशिश करने के सिवा ताकि ऐसे दरिंदों की दरिंदगी और कानून की लचर व्यवस्था का सबको पता चल सके ………
जवाब देंहटाएंvandna ji -bahut marmik thi yah ghatna .sarthak prastuti .aapki is prastuti ka link bhartiy nari blog par bhi share kiya hai .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत शर्मनाक और दर्दनाक घटना है.
जवाब देंहटाएंअमानवीय कृत्य . मार्मिक प्रस्तुति.
Maine Crime petrol pe ek arsa hua ye program dekha tha. Gazab kee peeda huee thee. Hamare desh ke qanoon aise hain,ki, aise ghinoune apradhi chhoot jate hain. Police mahakme ke liye bhe ye baat behad demoralising hai,kyonki wo log jee jaan se koshish karke apradhi ko pakadte hain,aur wo apradhi court se riha ho jate hain.Lanat un wakeelon pe jo unki wakalat karte hain. Chamadi to un wakelon ke udhednee chahiye. Kaun udhedega?
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील मन को व्यथित करती रचना,,
जवाब देंहटाएंrecent post : प्यार न भूले,,,
ओह..!
जवाब देंहटाएंबहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं ऐसे प्रायोजित हादसे!
मगर हमारा कानून अन्धा भी है और बहरा भी!
बदलाव होना जरूरी है कानून की धाराओं में!
एक लौ इस तरह क्यूँ बुझी ... मेरे मौला - ब्लॉग बुलेटिन 26/11 के शहीदों को नमन करते हुये लगाई गई आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंस्तबध हूँ,ऐसे दरिंदों को वह सज़ा होनी चाहिये कि आगे कोई ऐसा दुस्साहस न करे !
जवाब देंहटाएंताकि किसी युवा को इससे कुछ प्रेरणा मिले...
जवाब देंहटाएंhttp://jaydeepshekhar.blogspot.in/2012/02/blog-post_14.html
sharminda hoon... dhanbad me jiwan ke sabse adhik varsh guzre hain isliye aur bhi...
जवाब देंहटाएंहैवानियत ....निशब्द!
जवाब देंहटाएंऐसी घटनायें देश के लिए दुखद।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com
मन को अंदर तक झकझोर दिया !
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी !!
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