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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

अम्बर तो श्वेताम्बर ही है

रंगों को नाज़ था अपने होने पर
मगर पता ना था
हर रंग तभी खिलता है
जब महबूब की आँखों में
मोहब्बत का दीया जलता है
वरना तो हर रंग 
सिर्फ एक ही रंग में समाहित होता है
शांति दूत बनकर .........
अम्बर तो श्वेताम्बर ही है 
बस महबूब के रंगों से ही
इन्द्रधनुष खिलता है
और आकाश नीलवर्ण दिखता है ...........मेरी मोहब्बत सा ...है ना !!

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना | उम्दा |

    मेरी नई पोस्ट-गुमशुदा

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  2. मेरी मोहब्बत सा ...है ना !!..bahut khub

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  3. Aakash jaisi to koyi cheez hai hee nahee...wo neela kyon dikhta hai,jab uska koyi astitv nahee? Sundar rachana!

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  4. बेहद उम्दा खयाल, गहरी रचना,
    अरुन शर्मा - www.arunsblog.in

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  5. जब महबूब की आँखों में.........वाह बहुत खूब.....जज़्बात पर भी नज़रे इनायत हो।

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  6. कुछ कन्फ्यूज्ड-सा रहा महबूब और मोहब्बत की रंगीनियों को लेकर।

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  7. हर रंग तभी खिलता है
    जब
    महबूब की आँखों में मोहब्बत का दीया जलता है…
    वाह !
    बहुत सुंदर रचना है !
    आदरणीया वंदना जी !
    … हमेशा की तरह बहुत ख़ूबसूरत !!


    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. श्वेत तो श्वेत है ही नही
    ये सात रंग छिपाए है
    काला मतलब कुछ नही
    सब मन को भरमाये है........

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  9. सारे रंग मिला दिये जाएँ तो श्वेत रंग ही
    बनता है .... तो आकाश में सारे रंग समाहित हैं वैसे ही जैसे मुहब्बत में ...

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