रंगों को नाज़ था अपने होने पर
मगर पता ना था
हर रंग तभी खिलता है
जब महबूब की आँखों में
मोहब्बत का दीया जलता है
वरना तो हर रंग
सिर्फ एक ही रंग में समाहित होता है
शांति दूत बनकर .........
अम्बर तो श्वेताम्बर ही है
बस महबूब के रंगों से ही
इन्द्रधनुष खिलता है
और आकाश नीलवर्ण दिखता है ...........मेरी मोहब्बत सा ...है ना !!
बहुत ही सुंदर रचना | उम्दा |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट-गुमशुदा
मेरी मोहब्बत सा ...है ना !!..bahut khub
जवाब देंहटाएंरंग छिपाये अपना उद्भव
जवाब देंहटाएंAakash jaisi to koyi cheez hai hee nahee...wo neela kyon dikhta hai,jab uska koyi astitv nahee? Sundar rachana!
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा खयाल, गहरी रचना,
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा - www.arunsblog.in
शुभकामनायें-
जवाब देंहटाएंजब महबूब की आँखों में.........वाह बहुत खूब.....जज़्बात पर भी नज़रे इनायत हो।
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जी .
जवाब देंहटाएंbhaut hi acchi...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! लाजवाब रचना....
जवाब देंहटाएंकुछ कन्फ्यूज्ड-सा रहा महबूब और मोहब्बत की रंगीनियों को लेकर।
जवाब देंहटाएंहर रंग तभी खिलता है
जब
महबूब की आँखों में मोहब्बत का दीया जलता है…
वाह !
बहुत सुंदर रचना है !
आदरणीया वंदना जी !
… हमेशा की तरह बहुत ख़ूबसूरत !!
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
श्वेत तो श्वेत है ही नही
जवाब देंहटाएंये सात रंग छिपाए है
काला मतलब कुछ नही
सब मन को भरमाये है........
गजब की दास्तान
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है
जवाब देंहटाएंसारे रंग मिला दिये जाएँ तो श्वेत रंग ही
जवाब देंहटाएंबनता है .... तो आकाश में सारे रंग समाहित हैं वैसे ही जैसे मुहब्बत में ...