बेमेल विवाह ………एक त्रासदी
जो समाज को अभिशापित करती रही
स्त्री भोग्या है……इसी को इंगित करती रही
यूँ तो सदियों से समाज में
बेमेल विवाह होते आये
जो हमारे अस्वस्थ समाज की
अस्थिर नींव बने
जिसका दुष्परिणाम आज
अधिकाधिक देखने को मिलता है
पहले औरत ना जागृत हुई
ना कभी अपने अधिकार के लिए लड़ी
बस सहज स्नेह त्याग की प्रतिमूर्ति रही
तो कैसे सोच पाती अपने बारे में
जहाँ संस्कारों में ही बीज ऐसे रोपित हुए
आज क्रांति का बिगुल बजाया है
तब नारी को ये समझ आया है
और उसका स्वाभिमान जाग आया है
तभी तो आज इसके दुष्परिणाम दिख गए हैं
हर गली हर मोड़ पर सिसकते मिल रहे हैं
ये सड़े - गले गलीज़ रिश्ते
समाज को दूषित कर रहे हैं
पहला दुष्परिणाम
अभी उम्र थी बाली मेरी
बापू क्या देखा तुमने
मुझमे और उसमे ………
जो ब्याह दी अपने हमउम्र संग
जिसे देख चाचा ताया मामा
कहने की इच्छा होती है
कैसे उस संग सो सकती हूँ
वैवाहिक जीवन के सुख भोग सकती हूँ
जहाँ मन तो कभी मिला ही नहीं
और तन तो जैसे बिछौना बना
रोज चादर की तरह बिछ गया
पर कभी ना पूर्ण समर्पण रहा
चाहे कितना कष्ट सहा
उस वासना के कीड़े पर ना फर्क पड़ा
वो तो अपने सुख को खोजता रहा
और मुँह ढांप कर सोता रहा
ना जाना कभी प्रीतम का सुख क्या होता है
कैसे प्रेम पुष्पित पल्लवित होता है
सिर्फ भोग्या सा ही जीवन रहा
उस पर मानसिकता का भी दबाव रहा
ना कभी विचार मिले
ना कभी मुझे सराहा गया
ना मेरे घर में मेरा कोई
निर्णय कभी माना गया
सब पर बस उसी का एकाधिकार रहा
बोलो बापू जवाब दो
तुमने ऐसा क्यों किया
मेरा और उसका ना फर्क देखा
सिर्फ अपनी जिम्मेदारी समझ
क़र्ज़ सा जीवन से उतार दिया
मगर कभी ना जाना
कैसे नारकीय जीवन मैंने जीया
बेमेल विवाह का सबसे बड़ा
यही दुष्परिणाम रहा
वो मेरे जीवन का सुनहरा पन्ना ना कभी बना
सिर्फ शरीर से शरीर का संयोग रहा
वो भी उसकी मर्ज़ी पर
जब चाहे जैसे चाहे उपभोग हुआ
ऐसे में कैसे ना कुंठा जागृत होगी
कैसे उसके लिए मन में कोई पीर उठेगी
जिसने ना कभी मेरी कोई पीर जानी
जिसने मुझे सिर्फ अपनी जरूरत का सामान समझा
रोज ओढ़ा और बिछाया
फिर मुँह ढांप कर सो गया
इंसान हूँ मैं भी
उत्कट अभिलाषाएं हैं मेरी भी
मगर जब तक उन अभिलाषाओं का जागरण हुआ
उससे पहले तो उसका पौरुष ध्वस्त हुआ
अब कैसे उम्र यूँ गुजरेगी
क्या रोज काँटों पर ना सिसकेगी
मर्यादा की बेड़ियाँ मेरे पाँव ना जकडेगी
क्या अपोषित कुंठाएं जन्म नहीं लेंगी
हर कोई अंकुश ना रख पाता है
संयम का जीवन से गहरा नाता है
मगर उम्र और इच्छाओं के आगे
सब बेमानी हो जाता है
तब उपदेश ना कोई भाता है
अब ऐसे में यदि मैं कोई गलत कदम उठा लूं
उसका साथ छोड़ दूँ
या
कोई दूजा उपाय खोज लूं
कहो बापू .......क्या मैं दोषी कहलाऊंगी
जब उसे उस उम्र में मुझसे
ब्याहने में ना शर्म आई
अपनी जरूरत की पूर्ति को
उसने ये राह अपनाई
तो क्या आज वो ही राह
मैं नहीं अपना सकती
क्या मैं कुल कलंकी कहलाऊंगी
क्या तमाम दुनिया के अंकुश
मुझ पर ही लागू होते हैं
क्या मेरी जरूरतों का कोई मोल नहीं
जवाब दो बापू ...........आज तुम्हें जवाब देना होगा
बेमेल विवाह के इस दुष्परिणाम का तुम्हें साक्षी रहना होगा
दूसरा दुष्परिणाम
यूँ तो होते हैं दुनिया में
ब्याह रोज ही
जोड़े बनते हैं सभी तरह के
कभी मन से तो कभी बेमन से
और मन से बने जोड़े तो
फिर भी साथ निबाह लेते हैं
मगर बेमन से बने जोड़े
या दबाव में बने जोड़े
एक दिन टूट ही जाते हैं
उस पर यदि प्रश्न
खूबसूरती बनी हो
सौंदर्य ही जहाँ पैमाना हो
और दूसरा साथी कुरूपता की पराकाष्ठा हो
कैसे वैवाहिक जीवन संपूर्ण हो
कैसे ना वहाँ अनिश्चितता हो
जहाँ विश्वास सबसे पहले धराशायी होता है
साथी को कोई प्रशंसनीय दृष्टि से देखे तो भी शक होता है
साथी की सुन्दरता ही अभिशाप बन जाती है
चाहे ज़माने में कितना ही सराही जाए
मगर अपने साथी से ही दुत्कारी जाती है
तब सुन्दरता भी श्रापित हो जाती है
बेमेल विवाह में ये एक कड़ी और जुड़ जाती है
जहाँ मानसिक और शारीरिक उपयोगिता गौण हो जाती है
बस अंतस पर तो जैसे धुंध सी पड़ जाती है
जीवन तहस नहस हो जाता है
विश्वास का दामन छूट जाता है
बस मन के आँगन में अविश्वास का पौधा ही लहराता है
तब बेमेल विवाह का भयानक दुष्परिणाम
नज़र आता है
साथी कुंठाग्रस्त हो जाता है
और अपनी कुंठा में
या तो खुद को नुक्सान पहुँचाता है
या फिर साथी को ही बर्बाद कर डालता है
या फिर
उसे मार खुद भी मर जाता है
या उसका जीवन तानों बाणों से
दुश्वार कर देता है
घर से निकलना , किसी से बोलना
हँसना सब पर पहरे लग जाते हैं
तब बेमेल विवाह का दुष्परिणाम सामने आता है
शक के बीज में दो जीवन तबाह हो जाते हैं
क्योंकि मन में ये विश्वास काबिज़ हो जाता है
मेरा साथी ना मुझसे वफादार रहता है
बस इसी कुंठा में एक और परिवार तबाह होता है
कोई दबाव सह लेता है तो कोई मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है
अन्य दुष्परिणाम
यूँ तो हम २१ वीं सदी में जीते हैं
फिर भी खून का घूँट पीते हैं
दबाव में आकर जीवन बर्बाद कर लेते हैं
कभी पारिवारिक स्थिति में अंतर
तो कभी दहेज़ की कमी
तो कभी शैक्षिक अंतर
तो कभी हीन भावना
तो कभी उच्च ओहदा होना
जीवन बर्बाद कर देते हैं
कहीं पारिवारिक हैसियत इतनी हावी होती है
साथी को दोयम दर्ज़ा देती है
जो ना सम्बन्ध मधुर रख पाती है
बात बात पर हैसियत का दर्शन होता है
जिस पर साथी कुंठाग्रस्त होता है
बस ऐसे अनुबंधों की परिणति
अंत में विलगाव पर ही ठहर जाती है
और उसमे सबसे ज्यादा सहना
औरत को ही पड़ता है
बेमेल विवाह की सबसे बड़ी पीड़ित वो ही होती है
जहाँ कभी अहसान उतारने के लिए
तो कभी बचपन का वादा निभाने के लिए
तो कभी अपना क़र्ज़ उतारने के लिए
वस्तु सम उपभोग की वस्तु बनती है
एक हाथ से दूसरे हाथ में गुजरती है
जहाँ शैक्षिक अंतर होता है
वहाँ तो और भी जीना दुश्वार होता है
बात बात पर गंवार के ताने सहती है
चाहे कितनी कोशिश कर ले
मगर कभी ना आदर्श सुयोग्य स्त्री होने का दर्जा पाती है
वहाँ भी वो सिर्फ एक भोग्या ही बन जाती है
और कहीं कहीं तो अलगाव की नौबत भी आ जाती है
जहाँ पारिवारिक, वैचारिक , शारीरिक , आर्थिक या शैक्षिक
अंतर होता है वहाँ तो बेमेल विवाह का दुष्परिणाम
अलगाव में ही परिणत होता है
बेमेल विवाह की परिणति
या तो आँसुओं में
या चिता पर ही होती है
कोई तलाकशुदा तो कोई विक्षिप्तता
का जीवन जीता है
और जो सह नहीं पाता
वो ख़ुदकुशी को प्रेरित होता है
ऐसे बेमेल विवाह जीवन भर का बोझ बन जाते हैं
जो ना ढोए जाते ना सहेजे जाते हैं
आखिर कब हम समझेंगे
आखिर कब हम ये जानेगे
कब हम बेटियों के भविष्य की सोचेंगे
कब हम अपनी मानसिकता को बदलेंगे
और समझेंगे हमारे निर्णय कैसे
समाज को दूषित कर रहे हैं
खोखले रीती रिवाजों की भेंट चढ़ रहे हैं
और अपनों के सुखो की ही बलि ले रहे हैं
कैसे एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो
जब ऐसी अनदेखी हम करते रहेंगे
अब हमें ही नजरिया बदलना होगा
आपसी विश्वास और सहिक्ष्णुता ही
किसी रिश्ते की नींव होते हैं
ये बात अब सबको समझना होगा
और बेमेल विवाह के दुष्परिणामों का
आईना समाज को दिखाना होगा
तभी स्वस्थ भारत निर्माण होगा
तभी नया सूर्योदय होगा ..............
hmm bahut vicharniy rachna ...samaj mein badlaw jaruri hai
जवाब देंहटाएंनारी के पक्ष में बेमेल विवाह पर सटीक प्रस्तुतीकरण ...
जवाब देंहटाएंबेमेल विवाह पर पुरुष पक्ष के भाव भी विचारणीय हो सकते हैं ....
bahut sateek likha hai...
जवाब देंहटाएंkhoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंइस त्रासदी से उबरने में कभी आत्महत्या,कभी दूसरा संबंध,कभी कई नज़रों की अग्नि से गुजरना ... अविवाहितों को भी चैन से नहीं रहने देते
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है
जवाब देंहटाएंबेमेल विवाह के हमेशा दुष्परिणाम ही निकलते हैं और फिर दोष बच्चों के सिर ही मंढा जाता है बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिये सशक्त लेखन ...
जवाब देंहटाएंबेमेल विवाह त्रासदी से कम नहीं. दुष्परिणामों का आईना समाज को दिखाना जरुरी है... विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंthe poem has very deep meanings and it can be understood if its read in depth
जवाब देंहटाएंSAJAG KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE .
जवाब देंहटाएंSAJAG KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE .
जवाब देंहटाएंआपके नजरिया को प्रणाम
जवाब देंहटाएंइस कुरीति से जुड़े दुष्परिणामों को समेटे विचारणीय भाव.....
जवाब देंहटाएंएक पक्ष बहुत सटीक :
जवाब देंहटाएंकुछ तो वाकई बेमेल रिश्ते हो जाते हैं
कुछ रिश्तों में मेल बनाया जा सकता है
हम भी कम नहीं ये सब कहाँ किसी
को यूँ ही सिखाने की कभी सोच पाते हैं
सोच सोच की बात है कहीं मेल के
दिखते दिखते बेमेल हो जाते हैं
बहुत सुलझे हुऎ बेमेल भी होते हैं
मिलने के बाद उनसे अच्छे मेल
कहीं फिर नजर ही नहीं आते हैं !
बेमेल विवाह की कुरूतियों पर बहुत सटीक और सशक्त प्रहार...बहुत मर्मस्पर्शी और सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंbemel shadi ko vahyat hi kha jayga,thodi der zaroor hai,ab nyee nashle aisi shadio ko kud nakar dedi,ed mudda bhi aur uske dusprinam ke sath behtareen prastuti
जवाब देंहटाएंबेमेल विवाह ...औरत के लिए ही अभिशाप क्यों ......बहुत ही दर्दनाक ,व्यापक विश्लेषण ....
जवाब देंहटाएंहर गली हर मोड़ पर सिसकते मिल रहें हैं ,
जवाब देंहटाएंये "सड़े" गले गलीज़ रिश्ते .........."सडे "शुद्ध करें इसे कृपया
दुष्परिणाम -
अभी उम्र थी मेरी बाली ,
बापू क्या देखा तुमने मुझमें ,और उसमें .................अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .....उसमे -----मुझमे क्या होता है ?गौर करें .
रोज़ ओढ़ा और बिछाया .........ओढा कृपया शुद्ध करें ...
मर्यादा की बेड़ियाँ मेरे पाँव न जकड़ ...........
प्रासंगिक है यह रचना .विडंबना हमारे दौर की लेकिन अब सहजीवन स्वीकृत है .
अन्य परिणाम
और उसमें सबसे ज्यादा सहना औरत को ही पड़ता है ..........उसमे ......फिर नाक की अनदेखी ....
और अपने सुखों .......सुखो .....
आपसी विश्वास और सहिष्णुता ...........
एक आयाम और है ऐसे विवाहों का -बीवी( काली कलूटी ) नैन नक्श हीना हो कोई बात नहीं पैसा खूब ला रही है भले उम्र में चाची लगती हो .ऐसे बेमेल विवाह भी हमने देखे .अपना अपना चयन है .
कहीं दुल्हा सुदर्शन कहीं दुल्हन सुदर्शना दुल्हा कुरूप .
अच्छा सामाजिक मुद्दा उठाया है .
भले गद्यात्मक ज्यादा है .
विचार कविता में छूट होती होगी .
ee
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी नो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
हर गली हर मोड़ पर सिसकते मिल रहें हैं ,
जवाब देंहटाएंये "सड़े" गले गलीज़ रिश्ते .........."सडे "शुद्ध करें इसे कृपया
दुष्परिणाम -
अभी उम्र थी मेरी बाली ,
बापू क्या देखा तुमने मुझमें ,और उसमें .................अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .....उसमे -----मुझमे क्या होता है ?गौर करें .
रोज़ ओढ़ा और बिछाया .........ओढा कृपया शुद्ध करें ...
मर्यादा की बेड़ियाँ मेरे पाँव न जकड़ ...........
प्रासंगिक है यह रचना .विडंबना हमारे दौर की लेकिन अब सहजीवन स्वीकृत है .
अन्य परिणाम
और उसमें सबसे ज्यादा सहना औरत को ही पड़ता है ..........उसमे ......फिर नाक की अनदेखी ....
और अपने सुखों .......सुखो .....
आपसी विश्वास और सहिष्णुता ...........
एक आयाम और है ऐसे विवाहों का -बीवी( काली कलूटी ) नैन नक्श हीना हो कोई बात नहीं पैसा खूब ला रही है भले उम्र में चाची लगती हो .ऐसे बेमेल विवाह भी हमने देखे .अपना अपना चयन है .
कहीं दुल्हा सुदर्शन कहीं दुल्हन सुदर्शना दुल्हा कुरूप .
अच्छा सामाजिक मुद्दा उठाया है .
भले गद्यात्मक ज्यादा है .
विचार कविता में छूट होती होगी .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी न हो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
बेमेल रिश्ते स्वाभाविकता को लील जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति !
@virendra kumar sharma ji हार्दिक आभार जो आपने त्रुटियों की तरफ़ ध्यान दिलाया मैं जो हिंदी राइटर प्रयोग करती हूँ उसमे ही ये मुश्किल है अब गूगल से जाकर सही किया है…………धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंSach me bemel wiwaah bahut badee trasadee hotee hai....ek saath poora nahee padh pati hun,kyonki baith nahee patee...dobara aaungee blogpe!
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