वार्तालाप तुमसे या खुद से नही पता…………मगर
आह ! और वक्त भी अपने होने पर रश्क करने लगेगा उस पल ………जानती हो ना मै असहजता मे सहज होता हूँ और तुम्हारे लि्ये लफ़्ज़ों की गिरह खोल देता हूँ बि्ल्कुल तु्म्हारी लहराती बलखाती चोटी की तरह …………बंधन ऐसा होना चाहिये जिसमे दोनो के लिये कुछ जगह बाकी हो क्योंकि मुझे पता है तुम उन्मुक्त पंछी हो मेरे ह्रदयाकाश की
स्पर्श की आर्द्रता के लिये जरूरी तो नही ना समीप होना ………देखो सिहरन की पगडंडी कैसे मेरे रोयों से खेल रही है और तुम्हारा नाम लिख रही है ………अमिट छाप मेरी असहजता मे तुम्हारे होकर ना होने की ………यूं कभी करवट नही बदली मैने ………आज भी खामोशी की दस्तक सुन रहा हूँ तुम्हारी धडकनों के सिरहाने पर बैठी मेरी अधूरी हसरत की………क्या तुमने उसे सहलाया है आज?
उम्र के रेगिस्तान मे मीलो फ़ैली रेत मे अक्स को ढूँढता कोई वजूद …………जहां ज़ब भी उम्र की झांझर झनकती है मेरी पोर पोर दुखती है तुम्हारी यादों की तलहटी मे दबी अपनी ही गहन परछाइयों से ………मुक्त नही होना मुझे , नही चाहिये मोक्ष …………इसीलिये स्वर का कम्पन कंपा देता है मेरी रूह की चिलम को……क्यों जरूरी नही हर कश मुकम्मल हो और उम्र गुज़र जाये
प्रेम को जोडना नही , वो जुडता नही है वो तो सिर्फ़ होता है और तुम हो इसलिये आवाज़ देती हूँ और कहती हूँ .………आ जाओ बह जाओगे प्रेम के अथाह सागर मे जिसके किनारे नही होते , पतवार नही होती और ना ही कोई नाव होती …………बस बहते जाना ही नियति होती है ……क्या आ सकोगे उस छोर तक सीमित से असीमित होने तक्………अनन्त तक प्रवाहित होने के लिये ………बस मीठा होने के लिये इतना ही कर लो ………बह चलो मेरे संग मेरे आकाश तक
अब रेगिस्तान की रेत मे घरोंदे नही बनाना …………बस एक शाश्वत प्रश्रय स्थल तक पहुँचना है …जो अनन्त हो , असीम हो ………और उम्मीद है मिलेगा वो एक दिन
आन्दोलनों के लिये जरूरी तो नही वज़ूद का होना……………तो बन जाओ महादेव का हलाहल और बना लो मुझे विषकन्या ………काफ़ी है अदृश्य रेखा के विस्तार के लिये।
आह ! और वक्त भी अपने होने पर रश्क करने लगेगा उस पल ………जानती हो ना मै असहजता मे सहज होता हूँ और तुम्हारे लि्ये लफ़्ज़ों की गिरह खोल देता हूँ बि्ल्कुल तु्म्हारी लहराती बलखाती चोटी की तरह …………बंधन ऐसा होना चाहिये जिसमे दोनो के लिये कुछ जगह बाकी हो क्योंकि मुझे पता है तुम उन्मुक्त पंछी हो मेरे ह्रदयाकाश की
स्पर्श की आर्द्रता के लिये जरूरी तो नही ना समीप होना ………देखो सिहरन की पगडंडी कैसे मेरे रोयों से खेल रही है और तुम्हारा नाम लिख रही है ………अमिट छाप मेरी असहजता मे तुम्हारे होकर ना होने की ………यूं कभी करवट नही बदली मैने ………आज भी खामोशी की दस्तक सुन रहा हूँ तुम्हारी धडकनों के सिरहाने पर बैठी मेरी अधूरी हसरत की………क्या तुमने उसे सहलाया है आज?
उम्र के रेगिस्तान मे मीलो फ़ैली रेत मे अक्स को ढूँढता कोई वजूद …………जहां ज़ब भी उम्र की झांझर झनकती है मेरी पोर पोर दुखती है तुम्हारी यादों की तलहटी मे दबी अपनी ही गहन परछाइयों से ………मुक्त नही होना मुझे , नही चाहिये मोक्ष …………इसीलिये स्वर का कम्पन कंपा देता है मेरी रूह की चिलम को……क्यों जरूरी नही हर कश मुकम्मल हो और उम्र गुज़र जाये
प्रेम को जोडना नही , वो जुडता नही है वो तो सिर्फ़ होता है और तुम हो इसलिये आवाज़ देती हूँ और कहती हूँ .………आ जाओ बह जाओगे प्रेम के अथाह सागर मे जिसके किनारे नही होते , पतवार नही होती और ना ही कोई नाव होती …………बस बहते जाना ही नियति होती है ……क्या आ सकोगे उस छोर तक सीमित से असीमित होने तक्………अनन्त तक प्रवाहित होने के लिये ………बस मीठा होने के लिये इतना ही कर लो ………बह चलो मेरे संग मेरे आकाश तक
अब रेगिस्तान की रेत मे घरोंदे नही बनाना …………बस एक शाश्वत प्रश्रय स्थल तक पहुँचना है …जो अनन्त हो , असीम हो ………और उम्मीद है मिलेगा वो एक दिन
आन्दोलनों के लिये जरूरी तो नही वज़ूद का होना……………तो बन जाओ महादेव का हलाहल और बना लो मुझे विषकन्या ………काफ़ी है अदृश्य रेखा के विस्तार के लिये।
:)
जवाब देंहटाएंआन्दोलनों के लिये जरूरी तो नहीं वजूद का होना ...
जवाब देंहटाएंगहन भाव
मैं विष
जवाब देंहटाएंतुम शिव
मैं नीलकंठ...यही निष्कर्ष हो जीवन
मैं विष
जवाब देंहटाएंतुम शिव
मैं नीलकंठ...यही निष्कर्ष हो जीवन .आन्दोलनों के लिये जरूरी तो नहीं वजूद का होना ...
गहन भाव .उम्दा पंक्तियाँ
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
जवाब देंहटाएंhttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
मोहिन्दर कुमार जी का कमेन्ट
जवाब देंहटाएंSent at 4:37 PM on Friday
mohinder: एक सागर की प्यास की कहानी...एक नदी जिस की रवानी को कोई न समझा उसके भाव... एक प्यार और स्मर्पण के लिये आकूलित प्रेससी का करुण रुदन.... बहुत सुन्दर
bahut gambheer
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut sundar bhawana yukt wichar ki
जवाब देंहटाएंladiyan .
खूब वंदनाजी.... स्पष्ट सटीक मन की बात
जवाब देंहटाएंआज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
प्रेम को जोडना नही , वो जुडता नही है वो तो सिर्फ़ होता है और तुम हो इसलिये आवाज़ देती हूँ और कहती हूँ .………आ जाओ बह जाओगे प्रेम के अथाह सागर मे जिसके किनारे नही होते , पतवार नही होती और ना ही कोई नाव होती ॥
जवाब देंहटाएंवाह .... प्रवाहयुक्त भावों को बखूबी लिखा है ।
प्रेम को जोडना नही , वो जुडता नही है वो तो सिर्फ़ होता है और तुम हो इसलिये आवाज़ देती हूँ और कहती हूँ .………आ जाओ बह जाओगे प्रेम के अथाह सागर मे जिसके किनारे नही होते , पतवार नही होती और ना ही कोई नाव होती ॥
जवाब देंहटाएंbahut gahan abhivyakti ...Vandana ji ..bahut sundar ...!!
बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंbehtreen abhivaykti........
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक मनोभाव की प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,
कभी वजूद भी गुम जाता है. गहन संवाद, सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदोनों तरफ़ हो आग बराबर लगी हुई,बस। फिर,क्या फ़र्क़ पड़ता है कि बात किससे हो रही है। जिससे भी हो रही हो,पहुंचती दोनों के पास है।
जवाब देंहटाएंbahot pasand aayee.....
जवाब देंहटाएंआज 08/10/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya abhivykti mere blog pe padharen http://pankajkrsah.blogspot.com
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