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बुधवार, 29 अगस्त 2012

यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी

बरसात के बाद भी
थमी नहीं मेरी रूह
बरसती ही रही
हर मीनार पर
हर दीवार पर
हर कब्रगाह पर
हर ऐतबार पर
हर इंतजार पर
जरूरी तो नहीं ना
हर रूह पर छाँव हो जाए
और वो भीगने से बच जाये

मेरी रूह
मेरी कहाँ थी
मेरी होती तो
छुपा लेती आँचल में
समा लेती सारी कायनात उसकी आँखों में
जज़्ब कर लेती हर कतरा शबनम का
अपनी पनाहों में
आसमाँ से चुन लाती कुछ
दाने रौशनी के
टांग देती सितारे बना उसके
बेतरतीब दामन में
सजा देती उसकी
माँग में मोहब्बत का सिन्दूर
लेकर लालिमा दिनकर से
कर देती विदा दुल्हन बना
अजनबियत के साथ
मगर ये सब तो तब होता ना
गर मेरी रूह मेरी होती
वो तो तब ही छोड़ गयी मुझे
जब से तुमसे नज़र मिली
अब खाली खोली है
भीगते अरमानों की
जिसमे बीजता नहीं कोई बीज
फिर चाहे कितनी ही बरसात हो ले
जरूरी तो नहीं सावन का बरसना
यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी
मगर मेरी रूह को ना कहीं पनाह मिली

देखा है कभी रूहों का ऐसा सिसकना ............जहाँ रूह भी ना अपनी रही
बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

कस्तूरी जो बिखरी हर दिल महका गयी

कस्तूरी जो बिखरी हर दिल महका गयी
यूँ लगा चाँद की चाँदनी दिन मे ही छा गयी

विमोचन कस्तूरी का 

दोस्तों 22 अगस्त शाम साढ़े चार बजे हिंदी भवन में कस्तूरी के विमोचन का  था जिसमे प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह जी, कवि डॉ श्याम सखा श्याम जी, श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी मुख्य अतिथि थे  । अंजू चौधरी और मुकेश कुमार सिन्हा के सम्पादन मे हिन्द युग्म के सौजन्य से कस्तूरी ने अपनी महक से सारे हिन्दी भवन को महका दिया। सबसे पहले कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया मगर नामवर सिंह जी को जल्दी जाना था इस वजह से काव्य पाठ बीच मे रोक कर उनको सबने सुना । उसके बाद बाकी के कवियों की बारी आयी । सभी ने अपने अपने विचारों से अवगत कराया। कवि डॉ श्याम सखा श्याम जी ने अपने अन्दाज़ मे कविता , गज़ल आदि की बारीकियों से अवगत कराया साथ मे चुटीले अन्दाज़ मे अपनी रचनायें प्रस्तुत कीं। इसी प्रकार
श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी ने बहुत गहनता से कस्तूरी के कवियों की कविताओं के बारे मे अपने विचार प्रस्तुत किये साथ ही अपने विचारों से भी अवगत कराया। 

उसके बाद आखिरी मे हमारा नम्बर आया और तब समझ आया हाय रे ये एल्फ़ाबैटिकल आर्डर ………हम फ़ंस गये उसमे और 
दिल के अरमाँ आंसुओं मे बह गये ………
दिल की ये आरजू थी नामवर सिंह जी के आगे काव्य पाठ करें ………
मगर ये ना थी हमारी किस्मत कि उनके आगे काव्य पाठ कर पाते ………
हमसे का भूल हुयी जो ये सज़ा हमका मिली……
अभी हम ये सोच ही रहे थे कि नामवर सिंह जी चल दिये और चलते चलते हमने उनसे अपनी किताब पर उनके हस्ताक्षर ले लिये तो जाके लगा चलो वो नही तो ये ही सही भागते चोर की लंगोटी ही सही :) ………दिल बहलाने को गालिब ख्याल अच्छा है ……है ना :) 

बस उसके बाद जैसे ही मदन साहनी जी ने आवाज़ दी तो हम चौंक गये कि हमे ही दी है ना या किसी और को ………आखिर वन्दना गुप्ता के आगे उन्होने डाक्टर लगा दिया ……सबसे पहले तो वो ही गलतफ़हमी दूर की कि हम तो एक साधारण गृहिणी हैं मगर लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी कब पीछे रहने वाले थे तपाक से बोले तो क्या हुआ हो जायेंगी ………सोचिये ज़रा क्या हाल हुआ होगा हमारा ………बडे बडे दिग्गज इस तरह हौसला अफ़ज़ाई जहाँ कर रहे हों तो वहाँ जोश बढना लाज़िमी है ही ………और बढ गया हमारा भी जोश और हमने भी एक कविता का पाठ आखिर कर ही दिया …………जिसे आप यहाँ सुन भी सकते हैं और चित्रों के साथ पूरे कार्यक्रम का आनन्द भी ले सकते हैं …………लिंक लगा रही हूँ ………


 http://yourlisten.com/channel/content/16910325/kasturi?rn=rhzfcha9xlhc

 http://yourlisten.com/channel/content/16910325/kasturi?rn=xrhddtu2st1c





उसके बाद अंजू जी और मुकेश जी के कविता पाठ के बाद धन्यवाद देते हुये कार्यक्रम का समापन हुआ ……उसके बाद जलपान के साथ सभी दोस्तों ने एक दूसरे के साथ अपनी यादों को संजोया जो उम्र भर साथ रहेंगी।


अब वहाँ तो हमारा नम्बर आखिरी था 
सोचा यहाँ तो पहले ही लगा दें क्या फ़र्क पडता है 



ये कविता पाठ का शुरुआती लम्हा 
जब हमने मदन साहनी जी को बताया 
 कि हम तो एक गृहिणी हैं :)

 


ये वो लम्हा है जब लक्ष्मी वाजपेयी जी ने हौसला अफ़ज़ाई की


 



यहाँ हम भी लगे थे अपने काव्य पाठ मे 

 

मदन साहनी जी कार्यक्रम का संचालन करते हुये

 

विमोचन के लम्हात

 


 विमोचन से पहले के कुछ पल





 कस्तूरी के विमोचन के अभूतपूर्व क्षण

 



ये नामवर सिंह जी के साथ वहाँ उपस्थित प्रतिभागी 

कवियों की ज़िन्दगी के स्वर्णिम पल



यहाँ फ़ुर्सत मे राजीव जी के साथ 

रंजना भाटिया जी के साथ



तीन देवियाँ तीन रंग


ध्यानपूर्वक सुनते हुये


 आनन्द द्विवेदी जी गज़लों को पेश करते हुये 



लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी अपना वक्तव्य देते हुये


गुंजन अग्रवाल काव्य पाठ करती हुईं



डाक्टर श्याम सखा श्याम जी अपने चुटीले अन्दाज़ मे 


साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर नामवर सिंह जी का वक्तव्य


तराजीव तनेजा जी और संजू जी के साथ कुछ पल

मुकेश कुमार सिन्हा अपना भाषण देते हुये


मुकेश और अंजू समारोह शुरु होने से पहले फ़ुर्सत के पलो मे 



सुनीता शानू जी के साथ संजू जी


मेड फ़ार ईच अदर


आनन्द द्विवेदी जी अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ 
वन्दना ग्रोवर जी के साथ



वन्दना सिंह जी काव्य पाठ करते हुये जिनसे पहली बार मिलना हुआ
वरना तो फ़ेसबुक के माध्यम से ही एक दूसरे को जानते थे


ये राजीव जी का कमाल समेट लिया एक ही चित्र मे तीन अन्दाज़
पीछे सफ़ेद सूट मे मुकेश की श्रीमति जी और साथ मे गुंजन


हाय ! कौन ना मर जाये इस मुस्कान पर 

राजीव तनेजा जी अशोक जी और लक्ष्मी शंकर जी के साथ 




लगता है अपनी कातिलाना अदाओं से 
आज घायल करके ही रहेंगी दोनो मोहतरमा

मीनाक्षी काव्य पाठ करते हुये

ये निरुपमा को तो लगता है जैसे कोई खज़ाना हाथ लग गया है 
देखिये तो सही ये मुस्कान ……क्या यही नही कह रही


कवि सुजान के साथ राजीव जी

हम बने तुम बने एक दूजे के लिये 

कस्तूरी की महक मे खोये सभी



तो दोस्तों ये था कस्तूरी के विमोचन का आँखों देखा हाल 
फिर मिलेंगे किसी और सफ़र मे 
तब तक आप इसका आनन्द लीजिये  


चित्र ………राजीव तनेजा जी साभार 

शनिवार, 18 अगस्त 2012

तुम पहले और आखिरी सम्पुट हो मेरी मोहब्बत के

चाँद
तुम पहले और आखिरी
सम्पुट हो मेरी मोहब्बत के
जानत हो क्यों ?
मोहब्बत ने जब मोहब्बत को
पहला सलाम भेजा था
तुम ही तो गवाह बने थे
शरद की पूर्णमासी पर
रास - महोत्सव मे
याद है ना ............
और देखना
इस कायनात के आखिरी छोर पर भी
तुम ही गवाह बनोगे
मोहब्बत की अदालत में
मोहब्बत के जुर्म पर
मोहब्बत के फसानों पर
लिखी मोहब्बती तहरीरों के
क्योंकि
एक तुम ही तो हो
जो मोहब्बत की आखिरी विदाई के साक्षी बनोगे
यूँ ही थोड़े ही तुम्हें मोहब्बत का खुदा कहा जाता है
यूँ ही थोड़े ही तुम्हारा नाम हर प्रेमी के लबों पर आता है
यूँ ही थोड़े ही तुममे अपना प्रेमी नज़र आता है
कोई तो कारण होगा ना
यूँ ही थोड़े ही तुम भी
शुक्ल और कृष्ण पक्ष मे घटते -बढ़ते हो
चेनाबी मोहब्बत के बहाव की तरह
वरना देखने वाले तो तुममे भी दाग देख लेते हैं
कोई तो कारण होगा
गुनाहों के देवता से मोहब्बत का देवता बनने का ................
वरना शर्मीली ,लजाती  मोहब्बत की दुल्हन का घूंघट हटाना सबके बस की बात कहाँ है ......है ना कलानिधि!!!!

बुधवार, 15 अगस्त 2012

सच बोलने की सजा


स्वतंत्रता दिवस पर टीचर ने निबंध लिखने को दिया . सभी बच्चों ने निबंध लिखा और पास हो गए सिर्फ एक बच्चा फेल हो गया क्योंकि उसने लिखा था --------

स्वतंत्रता दिवस पर हमारे प्रधानमंत्री लालकिले पर तिरंगा फहराते हैं और भाषण देते हैं जिसमे वो देश से भ्रष्टाचार , बेरोजगारी, मंहगाई आदि को भागने के बड़े-बड़े वादे करते हैं मगर अमल एक पर भी ना करते हैं ये सिर्फ कोरे आश्वासन होते हैं क्योंकि वो तो खुद एक कठपुतली प्रधानमंत्री होते हैं जिन्हें सिर्फ एक दिन बोलने का अधिकार होता है उसके बाद तो वो मौन धारण करते हैं . इस प्रकार हम स्वतंत्रता दिवस की औपचारिकता निभाते हैं और स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं.


बच्चा सोचने पर विवश हो गया कि आखिर उसने क्या गुनाह किया जो सिर्फ वो ही फेल हो गया . क्या सच बोलने की यही सजा होती है ? 


पार्श्व मे संगीत बज रहा था …
इंसाफ़ की डगर पर बच्चों दिखाओ चलकर 
ये देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के  

रविवार, 12 अगस्त 2012

सुनो ........मुझे भी सीखा दो जीना !

ना जाने कौन सी डाल पर
बैठती है चिड़िया
ना जाने कहाँ बनाएगी
अब नया आशियाना
ये उम्र भर उड़ते रहने की जद्दोजहद
कहीं लील ना ले
उसकी  उम्र का अनकहा हिस्सा
जो परों से तुल जाये
वो उडान कहाँ
जो उम्र से बढ़ जाये
वो आसमाँ कहाँ
फिर भी ना रुकने की हसरत
दम भर सांस लेने को
बनाना इक आशियाना
और फिर खुद ही
नेस्तनाबूद कर देना
और परवाज़ भर लेना
एक नए जहान में
एक नए आशियाने की तलाश में
कैसे इतनी निर्मोहता रखती हो तुम
आसमाँ को छूना ही तो अस्तित्व की पहचान नहीं
और उस से विलग भी रहना
एक तपस्वी की भांति
कैसे कर लेती हो तुम इतना सब
कैसे जी लेती हो अनंत में अनंत होकर
सुनो ........मुझे भी सीखा दो जीना !

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

और श्राप है तुम्हें.............मगर तब तक नहीं मिलेगा तुम्हें पूर्ण विराम .............



ढूँढ रहे हो तुम मुझे शब्दकोशों में
निकाल रहे हो मेरे विभिन्न अर्थ
कर रहे हो मुझे मुझसे विभक्त
बना रहे हो मेरे नए उपनिषद
कर रहे हो मेरी नयी -नयी व्याख्याएं
मगर फिर भी नहीं पकड़ पाते हो पूरा सच

बताओ तो ज़रा .............
क्या- क्या नहीं कर डाला तुमने
किस - किस धर्मग्रन्थ को नहीं खंगाल डाला
खजुराहो की भित्तियों में ना उकेर डाला 
अजंता अलोरा के पटल पर फैला मेरा 
विशाल आलोक तुम्हारी ही तो देन है
कामसूत्र की नायिका के रेशे- रेशे में
मेरे व्यक्तित्व के खगोलीय व्यास 
अनंत पिंड कई- कई तारामंडल
क्या कुछ नहीं खोजा तुमने
पूरा ब्रह्माण्ड दर्शन किया तुमने
पर फिर भी ना तुम्हारी कुत्सितता गयी 
फिर भी अधूरी  रही तुम्हारी खोज
और तुम उसी की चाह(?) में 
खोजते रहे उसके अंगों में अपनी दानवता
सिर्फ दो अंगों के सिवा ना तुम्हें कुछ दिखा
और गुजर गए अनंतकाल 
तुम्हारा अनंत भ्रमण
पर हाथ ना कुछ लगा

करते रहे तुम मर्यादाओं का बलात्कार
सरे आम , हर चौराहे पर 
फिर भी ना तुम्हारा पौरुष तुष्ट हुआ
जानते हो क्यों ?
क्यूँकि तुमने सिर्फ बाह्य अंगों को ही 
स्त्री के दुर्लभतम अंग समझा
और गूंथते रहे तुम उसी में 
अपनी वासना के ज्वारों को 
और फिर भी ना पूरी हुई तुम्हारी
हवस की झुलसी चिंगारियां

और श्राप है तुम्हें.............

नहीं मिलेगा तुम्हें कभी वरदान
नहीं खोज पाओगे तुम उसका ब्रह्माण्ड
कभी नहीं पाओगे चैन-ओ-आराम 
यूँ ही भटकोगे ......करोगे बलात्कार
करोगे अत्याचार ..........
ना केवल उस पर
खुद पर भी
अपने से भी मुँह चुराते रहोगे 
पर नहीं मिलेगा तुम्हें यथोचित आकार

तब तक ..........जब तक 
नहीं उतरोगे तुम उसके 
स्त्रीत्व की परीक्षा पर खरे 
नहीं भेदोगे जब तक तुम 
उसके मन के कोने 
जब तक नहीं बनोगे अर्जुन
और नहीं साधोगे निशाना
मछली की आँख पर 
तब तक नहीं मिलेगी तुम्हें भी 
कोई धर्मोचित मर्यादा 
बेशक मिलता रहे अर्धविराम 
मगर तब तक 
नहीं मिलेगा तुम्हें पूर्ण विराम .............


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रविवार, 5 अगस्त 2012

गूगल के नाम पर गोरखधंधा

एक फ़ोन आता है मैं महिंद्रा सत्यम से बोल रहा हूँ आपका टेलीफोनिक इंटरव्यू है और इंटरव्यू लेने वाला बात करके कहता है १-२ दिन में आपसे हमारी HR बात करेंगी.२-३ दिन बाद HR का फ़ोन आता है कहती हैं आप सेलेक्ट हो गयी हैं और आपका इंटरव्यू है सारी डिटेल्स के लिए मेल भेज रही हूँ आपको सारी सूचनाएं उसमे मिल जाएँगी . मेल चेक करते हैं तो उसमे लिखा होता है कि तुम्हारा इंटरव्यू गूगल के साथ है . अब सोचने वाली बात ये हुई कि कहीं एप्लाई नहीं किया सिर्फ कुछ नौकरी वाली साइट्स पर अपना रिज्यूमे डाला हुआ है तो गूगल ने कैसे बुला लिया ? आश्चर्य में डूबे सभी अपनी -अपनी तैयारियों के साथ पहुँच गए गुडगाँव ........डी एल एफ़  फेस टू  में गूगल के ऑफिस के ख्वाब बुनते हुए कि हो सकता है हमारी लाटरी निकल आई हो जैसे ही छठी मंजिल पर पहुंचे तो कहीं गूगल का ऑफिस दिखाई नहीं दिया. दिख रहा था तो सिर्फ एक ऑफिस ........SERCO का . अब असमंजस में पड़ गए कि कहीं गलत तो नहीं आ गए मगर देखा वहाँ और कोई ऑफिस तो है नहीं चलो इसी में जाकर पूछा जाये कि कहाँ है गूगल का ऑफिस . अन्दर जाने पर जब पूछा कि हम गूगल के इंटरव्यू के लिए आये हैं तो वो बोले कि यहीं है . एकदम  शाक्ड  हो गए कि ये क्या माजरा है ...........
फ़ोन आता है...... महिंद्रा सत्यम की एच आर  का
 मेल आती है .....गूगल के साथ इंटरव्यू की
और जब पहुँचते हैं वहाँ तो

ऑफिस मिलता है ........SERCO का

फिर भी बैठ गए वहाँ जाकर क्योंकि देखा काफी बच्चे बैठे हैं . बुलाने का टाइम ११ बजे और कहा गया इंटरव्यू होगा १२ बजे . चलो कोई बात नहीं इतना भी झेल लेंगे मगर बैठे- बैठे १ बज गया उसके बाद बुलावा आया . ८-९ बच्चे अन्दर चले गए और लगभग २० मिनट बाद आये कि उन्होंने अभी तो ग्रुप डिस्कशन किया है उसके बाद टेस्ट लेंगे और उसके बादइंटरव्यू होगा तब तक खा पी लो . मुश्किल से आधा घंटा नहीं बीता कि एक लड़की आकर कहती है कि जिनके नाम ले रही हूँ वो मेरे साथ आ जायें और बाकी चले जायें. तो जिन्हें सेलेक्ट किया गया वो उसके साथ चले गए बाकी अपने घर.

अब आते हैं मेन कहानी पर ..........इस इंटरव्यू के लिए जो बच्चे आये थे वो कहाँ- कहाँ से आये थे. कोई तो जम्मू कश्मीर से, तो कोई केरल से तो कोई यू पी से . यहाँ तक कि एक लड़की जो यू पी से आई थी उसे csc कंपनी से जॉब ऑफर आ गयी थी और पूछा गया था कि आप कल से ज्वाइन कर रही हैं तो उसने मना कर दिया क्योंकि गूगल का ऑफर आया था . हम तो ये सब देखकर वापस आ गए क्योंकि हमारा बच्चा सेलेक्ट नहीं हुआ था.घर आने के बाद जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या था क्योंकि उन्होंने अपनी पहली priority बताई थी कि उन्हें वो कैन्डीडेट चाहिए जिसे linux या unix आती हो और गुड कम्युनिकेशन स्किल हो ।यहाँ तक कि इस इंटरव्यू के लिए इलेक्ट्रिकल के कैन्डीडेट को भी बुलाया गया था . हमारे बच्चे को आती थी linux क्योंकि उसने उसमे सर्टिफ़िकेशन की हुई थी मगर उसे तो पहले राउंड  में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. चलो कोई बात नहीं ये सब चलता रहता है ये सोच हम आ गए मगर आकर पता लगाया और गूगल का जो मेन ऑफिस उसी बिल्डिंग के  आठवें माले पर था वहाँ से हमारे किसी जानकार ने पता लगाया तो पता चला कि गूगल ने तो ऐसे कोई इंटरव्यू रखा ही नहीं  और छठे माले पर जो ऑफिस है SERCO का वो एक BPO कंपनी  है .


ये बेहद हैरतंगेज बात लगी कि काल कहीं से आती है , बुलाया किसी और कंपनी के नाम से जाता है और कंपनी तीसरी निकलती है .........क्या काल सैन्टर्स का ये तरीका सही है लोगों को गुमराह करने का ? एक नामी प्रसिद्द कंपनी के नाम का उपयोग करके सबको धोखा देना कहाँ तक जायज है? मैं तो उस लड़की के बारे में सोच रही हूँ जो अपनी csc में लगी जॉब छोड़कर आई सिर्फ इसलिए कि गूगल से ऑफर आया है और बाद में जब उसे पता चला होगा कि ये बी पी ओ  है तो उसपर क्या गुजरी होगी ? या जो केरल से गूगल का नाम सुनकर आये और पता चला कि यहाँ तो नाम के आधार पर धोखाधड़ी की जा रही है उन पर क्या गुजरी होगी? बेशक हम तो यहीं के थे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा मगर उन लोगों का क्या होता होगा जो इस गोरखधंधे में फँस जाते होंगे और अपने अच्छे -भले करियर से भी हाथ धो बैठते होंगे ? क्या इन कंपनियों पर लगाम कसनी जरूरी नहीं है ?


साथ में उस मेल के डिटेल्स लगा रही हूँ ताकि आगे कोई गुमराह ना हो ..........कम से कम हमारा इतना तो नैतिक कर्त्तव्य बनता ही है कि अगर हमने धोखा खाया है तो दूसरे ना खाएं और समय रहते चेत जाएँ . किसी भी कंपनी में जाने से पहले उसके बारे में सारी जानकारी ले लें फिर चाहे नामी गिरामी कंपनी से ही क्यों ना ऑफर आया हो क्योंकि आजकल ये मकडजाल काफी फैले हुए हैं और इनसे बचने के लिए हमें ही सचेत रहना होगा.


साथ ही चाहूंगी कि यदि गूगल तक ये बात पहुंचे तो वो भी इस तरफ ध्यान दे कि उसका नाम लेकर कैसे धोखाधड़ी की जा रही है ।


ये है वो मेल ……………


---------- Forwarded message ----------
From: Aparna Jagityal <APARNA_JAGITYAL@mahindrasatyambsg.com>
Date: Thu, Aug 2, 2012 at 2:00 PM
Subject: Interview with Google
To:


Hi,
 
We are glad to inform you that your profile is shortlisted for a requirement in Google for SCPO ( Scaled content partner operations ). You are requested to come for a face to face discussion on Friday at 11.30PM at the address mentioned below.

Contact Person: Ashish Mahapatra
Reporting time: 11:00 AM
Address: Google Gurgaon, 6th floor
Tower B – Building 8
(Area – DLF cyber city phase II)

Please plan to be here by 11.00 am so that we can complete your access formalities before the scheduled time. Please carry a copy of your updated resume.
Please contact Aparna (phone number) in case of any queries and we hope that you will have a good candidate experience with us.
 


Regards,

Aparna
Human Resources - TAG
Mahindra Satyam BSG 




शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

मेरी आहूति ………शब्दों के अरण्य में

 
 
"शब्दों के अरण्य" में रश्मि प्रभा द्वारा सम्पादित और हिंद युग्म द्वारा प्रकाशित काव्य पुष्प है जिसकी भीनी सुगंध में ना जाने कौन- कौन से सुमन अपनी महक से योगदान दे रहे हैं और इस अरण्य को सुवासित कर रहे हैं. शब्दों का अरण्य और उस अरण्य  में से सुगन्धित , सुकोमल , पुष्पित- पल्लवित सुमनों को छांटना और फिर एक माला में पिरोना इतना आसान कहाँ होता है ना सिर्फ पिरोना बल्कि उनके सौंदर्य को भी बरकरार रखते हुए पूजा के थाल में सजाना और फिर आराधना करना देवता की किसी तपस्या से कम तो नहीं और जहाँ तपस्या होगी वो भी निस्वार्थ तो उसका फल तो मिलेगा भी जरूर तभी तो इतने सजीव चित्र चित्रित हुए हैं कि समझ नहीं आता कौन सा पुष्प अपने दामन में संजोये और कौन सा छोडें , किसी को भी छोड़ना ऐसा लगता है जैसे अपने किसी प्रियतम से बिछुड़ रहे हों मगर कभी -कभी ना चाहते हुए भी ऐसे क्षण जीवन में आते हैं जिसमे हमें सिर्फ कुछ को ही चुनना पड़ता है क्योंकि हमारे दामन में जगह कम होती है चाहे देने वाले का दामन कितना ही भरा हो लेना तो हमें अपनी क्षमताओं के हिसाब से ही पड़ता है शायद तभी ना चाहते हुए भी कुछ बेहद खूबसूरत पुष्पों को छोड़ना पड़ा फिर भी कोशिश की कि ज्यादा से ज्यादा सुमनों को समेट सकूँ ताकि एक सुगन्धित सुवासित माला तैयार हो सके तो प्रस्तुत है मेरी नज़र से शब्दों के अरण्य के काव्य सुमन

सबसे पहले


अंजू अनन्या जीवन के प्रति "दृष्टिकोण" पर गहरा चिंतन करती हैं और एक नयी सोच को जन्म देती हैं की जीवन क्या है और फिर उसकी परिणति क्या है साथ ही बताती हैं कि इन्सान का नजरिया ही जीवन को प्रतिबिंबित करता है क्योंकि जीवन तो जीवन होता है

जीवन तो जीवन होता है
भिन्न होता है तो
दृष्टिकोण
जो देता है मायने
जीवन को

अनुलाता राज नायर की "रस्साकशी--सच और झूठ के बीच " के बीच के द्वन्द को प्रस्तुत करती है जो ये सिद्ध करती है कि व्यक्ति का सच्चा होना जरूरी है झूठ कभी भी उसके अन्दर की सच्चाई को नहीं मार  सकता चाहे सच को झूठ ही क्यों ना साबित कर दिया जाये

झूठ की सूली पर

चढ़कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है
मगर सच की आत्मा
अमर होती है
सच कभी मरता नहीं


अपर्णा  मनोज की "विष का रंग क्या तेरे वर्ण सा है कान्हा " एक प्रश्नचिन्ह उत्पन्न करती है कान्हा के व्यक्तित्व  पर , पूछ रही है उसकी पुजारिन मगर साथ ही अपने भाव , अपने समर्पण को गीता का १९वा अध्याय बताती है तो प्रेम की पराकाष्ठा नहीं है तो क्या है , उससे एक प्रेमभरी शिकायत कहो , आस कहो या विश्वास, उम्मीद है उसे कि आएगा उसका प्रियतम एक दिन और समा लेगा उसके भाव सुमनों को अपने अंतस में

मैं उन्नीसवां पर्व हूँ

तेरी गीता का
जो किसी अदालत में नहीं पूजा गया
पर मेरी वेदना का
यह पर्व डूब गया था
द्वारिका में तेरी

उदित उपमन्यु की "मौत के बाद क्या " एक गहन चिंतन पर आधारित प्रस्तुति है जिसमे जीवन और ईश्वर की उपादेयता सिद्ध करने के साथ एक खोज है जो प्रत्येक मनुष्य जीवन पर्यंत करता रहता है ......कि आखिर मौत के बाद क्या बचता है या उसके बाद क्या करना बाकी रह जाता है जी कि शाश्वत प्रश्न है

मौत का स्टेशन गुजर चुका है

पूरी ट्रेन में इकलौती जीवंत दिखती चीज बची है एक सवाल ....
मौत के बाद क्या ?

अश्वनी कुमार की "प्रेमिका सी कविता" एक बहुत प्यारी सी रचना है जहाँ कवि कविता की तुलना प्रेमिका से कर रहा है और उसके भेद खोल रहा है कैसे प्रेमिका रूठ जाती है और किस अदा पर मान  जाती है कुछ ऐसा ही हाल तो उसकी कविता का भी होता है पता ही नहीं चलता कविता में प्रेमिका है या प्रेमिका में कविता दोनों भावों को इतनी खूबसूरती से संजोया है

प्रेमिका - सी कविता

कई दिन के बाद मिलो तो
बात नहीं करती आसानी से
अनमनी -सी रहती है
रूठी
ॠता शेखर मधु  " मत करो संहार वृक्षों का " के माध्यम से पर्यावरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए आने वाली पीढ़ी का एक प्रश्न लेकर उपस्थित हुई हैं जिसमे वे पूछ रही हैं कि कब तक प्रकृति का दोहन होगा और क्या छोड़ेंगे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए , क्या वो हमें माफ़ कर पाएंगी ? क्या होगा ऐसे विकास से जिसमे सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु भी उपलब्ध नहीं होगी ?

अगली पीढ़ी मांगेगी जवाब

पितामहो
आपने मकान छोड़ा
संपत्ति छोड़ी
बैंक बैलेंस छोड़ा
क्यों नहीं छोड़ा आपने
शुद्ध हवाएं , निर्मल नदी
क्यों छीन लिया जीवन का मूल आधार
क्यों किया आपने वृक्षों का संहार ?

कविता रावत की "यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता " ज़िन्दगी की सच्चाइयों से रु-ब-रु करती एक ऐसी रचना है जिसकी हकीकतों से हम मुँह नहीं मोड़  सकते तभी तो वो कहती हैं ---------बिना कारण कुछ नहीं होता यहाँ तक कि जब तक सुदामा  भी कृष्ण से मांगने नहीं गए तब तक सब कुछ जानते बूझते भी कृष्ण ने उनका दारिद्रय दूर नहीं किया फिर ये ज़माना है यहाँ यूँ ही कुछ नहीं होता


यूँ ही कोई किसी की सुध नहीं लेता

बिन मांगे कोई किसी को कब देता

गार्गी चौरसिया की "अनमोल" आत्मिक रिश्ते के सौदर्य को उकेरती खूबसूरत कृति है जो बताती है कि कोई एक रिश्ता ऐसा होता है जो जिस्म से परे आत्मिक स्पंदनों पर संचालित होता है वहाँ कोई स्वार्थपरता नहीं होती. होता है तो सिर्फ दूसरे के लिए त्याग, उसकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी और ऐसा रिश्ता यदि किसी के जीवन म या जाये तो वो जीवन की अनमोल धरोहर होता है

ये बेनाम रिश्ते हम नहीं चुनते

ये तो आत्मा चुनती है
और आत्मा जिस्म नहीं
आत्मा चाहती है

डॉक्टर जय प्रकाश तिवारी "बादल और इन्सान " के माध्यम से इंसानी प्रवृत्ति की तुलना बादल से करते हैं और बादल यानि पौरुषिक प्रवृत्ति , स्वछंदता , स्वतंत्रता , संवेदनहीनता का परिचायक जिसे फर्क नहीं पड़ता किसी की तड़प से और अंत में एक प्रश्न उछाल दिया कि अनैतिकता का ये पाठ किसने किसे सिखाया इन्सान ने बादल को या बादल को इन्सान ने ? साथ ही बादलों का प्रायश्चित तो फिर भी हो जाता है मगर इन्सान शायद ये सब भूल चुका है , नहीं है उसकी डिक्शनरी में आत्मग्लानि और पश्चाताप

वह भी पहले बेटी बिजली को

फिर बाद में बेटे शब्द को भी
बिजली विरोध करती है तड़प कर
शब्द करता है विरोध गरज कर
लेकिन पुकार उनकी सुनता ही कौन ?

डॉक्टर जेन्नी शबनम की "जा तुझे इश्क हो " प्रेम की मासूम अभिव्यक्ति है जहाँ प्रेम और वेदना दोनों एक साथ हिलोर लेती है . प्रेमी सब जानता  बूझता है और प्रेमिका के दर्द को भी महसूसता है मगर चाहता है वो हमेशा हँसती रहे मगर प्रेम से या कहो इश्क से दूर रहना चाहता है ऐसे में प्रेमिका जो प्रेमी की अन्तर्दशा जानती है फिर भी चाहती है कि उसे अहसास हो आखिर इश्क है क्या इसलिए चाहती है उसे श्राप देना ........जा तुझे इश्क हो

गैरों के दर्द महसूस करना और बात है

खुद के दर्द जीना और बात
एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हें श्राप दे ही दूँ
"जा तुझे इश्क हो "

डॉक्टर निधि टंडन की " मेरी व्यस्तताएं " प्रेमी मन के उद्गारों को प्रस्तुत करती प्रेम में भीगी रचना है जहाँ प्रेमिका के लिए व्यस्तता सिर्फ और सिर्फ प्रेम में ही डूबे रहना है ...........देखा है कभी किसी को ऐसा व्यस्त होते .........ये भी तो प्रेम की एक अदा है

सच है ना

प्यार में कभी कोई खाली नहीं होता
प्यार हमेशा व्यस्त रहने का नाम है

डॉक्टर मोनिका शर्मा की " आखिर क्यों विक्षिप्त हुए हम ? बेटियों के प्रति समाज की उपेक्षा पर किया गया प्रश्न है जो आज के समाज से किया गया एक ऐसा अनुत्तरित प्रश्न है जिसका जवाब सदियों से खोजा जा रहा है

तभी तो कूड़ेदान में सिसकती

बेटियां यही प्रश्न उठाती हैं
आखिर क्यों विक्षिप्त हुए हम
क्यों , कैसे मनुष्य ना रहे हम

तो दूसरी तरफ प्रीत अरोड़ा की "संस्कारों की जीत" आज के पितृसत्तात्मक समाज में नारी के संस्कारों का दर्पण है जहाँ उसमे संस्कार इस तरह कूट कूट कर भरे होते हैं कि वो विद्रोह नहीं कर पाती और स्वीकार लेती है अपनी संस्कारित नियति को

दिगंबर नाशवा  की "कभी ख़त्म नहीं होती " ऐसी कविता जो बताती है कोई भी रिश्ता हो या लम्हा चाहे जितना भी कोशिश कर लो ख़त्म करने का मगर पूरी तरह कभी कुछ भी ख़त्म नहीं होता कुछ तो कहीं ना कहीं बचा ही रहता है


अक्सर सांसें जब उखड़ने लगें

रुक जाना बेहतर होता है
ये सच है कि एक सा तो हमेशा कुछ भी नहीं रहता
पर कुछ ना कुछ होने का ये अहसास
शायद कभी ख़त्म नहीं होता

दीपिका रानी  "पति से बिछुड़ी औरत " के माध्यम से एक ऐसी त्रासदी पर प्रहार  करती है जिसमे जब औरत जूझती है तो उस पर सारे जहाँ की बंदिशें लग जाती हैं मगर दूसरी तरफ यदि पुरुष होता है इस जगह यानि पत्नी से बिछुड़ा आदमी एक बेस्ट सेलर का सेकंड एडिशन बन जाता है .......नहीं होती उस पर ज़माने की कोई बंदिश .....इसी फर्क को दर्शाती रचना एक शाश्वत प्रश्न मानो में छोड़ जाती है कि आखिर ऐसा भेदभाव क्यों और कब तक ?

पति से बिछुड़ी औरत

एक ज़िन्दा सती है
जिसके सपनो का दह संस्कार नहीं हुआ
अपने अरमानों की राख़
किसी गंगा में प्रवाहित नहीं की उसने

पत्नी से बिछुड़ा आदमी
कर्मयोगी है
वह संसार से भाग नहीं सकता
उसे जीवन पथ पर आगे बढ़ना है
नयी उम्मीदों नए हौसलों के साथ

पल्लवी त्रिवेदी "हम सब ऐसे ही तो हैं " के माध्यम से इन्सान के अन्दर रहने वाले बच्चे को व्यक्त कर रही हैं जो बूढा होने पर भी कहीं ना कहीं अन्दर छुपा रहता है .

एक कम्पनी के मेनेजर को

सेमिनार में
लेक्चरार का कार्टून बनाते
अपनी माँ को सर्दी जुकाम में
आइसक्रीम ना देने पर
मुँह फुलाते

प्रत्यक्षा की "मेरे अन्दर का जंगल " इन्सान के अन्दर पनपते अकेलेपन की त्रासदी को दर्शाती उत्कृष्ट रचना है जिसमे वो कहना चाहती हैं कि अगर हम अन्दर की राहें बंद कर लेते हैं तो बाहर के रास्ते भी स्वयं बंद हो जायेंगे

पर में ये भूल गयी थी

की बाहर की धूप भी तो
बहिष्कृत हो गयी है
अन्दर आने से

मिनाक्षी धन्वन्तरी "व्यक्तित्व " के माध्यम से बता रही हैं कि हम कैसे किसी को आते देखकर उसके व्यक्तित्व के बारे में अटकलें लगने लगते हैं और ज्यादातर ऐसा सोचते हैं जो इंसान को शोभा नहीं देता और खासकर यदि वो कोई लड़की या औरत हो उसकी चाल ढाल व्यवहार पर कसीदे पढने लगते हैं मगर नहीं देख पाते और ना ही पढ़ पाते हैं उसके आँखों की भाषा को क्योंकि यदि वो पढ़ ली तो समझनी मुश्किल और समझ को तो कहनी मुश्किल होगी

लेकिन

किसी ने नहीं कहा था की .....
वो भावुक संवेदनशील ह्रदय वाली है
किसी ने नहीं कहा था
उसका मन शीशे जैसा बेहद नाज़ुक है

मुकेश कुमार सिन्हा की "हाथ की लकीरें " कर्त्तव्य को प्रेरित करती उत्तम कृति है जो ये बताती है कि हाथ की लकीरें बदल भी सकती हैं यदि कर्म को मुट्ठी में भींच लिया जाए क्योंकि मेहनत से बढ़कर लकीरें नहीं होतीं

मकड़ी की तरह

फँसे इन लकीरों में
इन जालों की तरह
उकेरी हुए लकीरों
को अपने वश में
करने हेतु
हम करते हैं धारण
लाल हर पीले
चमकदार
महंगे सस्ते पत्थर
अपनी औकात को देखते हुए
बांध के रह जाते हैं
पर ,किन्तु , परन्तु में
हो जाते हैं
लकीर के फकीर

रश्मि प्रभा की "तथास्तु और सब ख़त्म " ईश्वर प्रदत्त चीजों के प्रति मानव की संवेदनहीनता को दर्शाती उत्तम कृति है क्योंकि वो जो देता है बिना किसी स्वार्थ के , मानव के कल्याण और तरक्की के लिए फिर भी हम दोहन से बाज नहीं आते और इतना नहीं सोचते कि अगर वो हमसे सब छीन ले तो क्या हो ? मानव को सचेत और जागरूक करती प्रेरणादायी रचना है

सोचो ज़रा

तुम्हें रब बना
वह खुद मानव बन
तुमसे वही मांगे करने लगे जो तुम मांगते आये हो
तो क्या होगा ! सोचो , असंभव को संभव बनाने वाला
चीरहरण पर उतार आये तो क्या होगा?

लीना मल्होत्रा राव की " वो जो सीता ने नहीं कहा" राम से प्रश्न करती एक ऐसी रचना है जो ये प्रश्न शायद हर मन में उठाती होगी . यूँ तो  सीता ने हर तरह से पूर्ण समर्पित नारी को प्रस्तुत किया मगर फिर भी उसके मन का एक हिस्सा राम से प्रश्न  कर रहा है कि कभी तुम अपराधबोध से ग्रस्त हुए और मेरे पास आये तो वो भी तुम्हारा अपराधबोध ही है मुझसे आँख ना मिला पाने में तुम्हारा स्वार्थ है और ये आना ही तुम्हारी मेरे प्रति निष्ठुरता ही तो है क्योंकि तुम नहीं आये निस्वार्थ सिर्फ मेरे लिए


हर बार तुम

मेरे प्रति तुम इतने निष्ठुर क्यों हो जाते हो राम
तुम्हारा कुल
तुम्हारी मर्यादा
और अब
तुम्हारी ही अपराधबोध
तुम्हारा ये स्वार्थ
तुम्हारे पुरुष  होने का परिणाम है
या
मेरे स्त्री होने का दंड ?

विजय सपत्ति की "माँ" उन लोगों के दर्द को व्यक्त करती है जो नौकरी आदि का कारण अपने परिवार से दूर हुए तो माँ का साथ छूट गया और अब सिर्फ उसकी यादें ही बाकी बची हैं चाहकर भी ना वापस जा सके और अब तो उसका वजूद भी नहीं रहा तब कवि मन सोचता है कि वो किसकी तलाश में आया था शहर में ?


माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा

वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी

शिखा वार्ष्णेय की "कुछ पल" यादों को सहेजती एक खूबसूरत कृति है


विभा  रानी श्रीवास्तव की "बात एक ही है " रिश्तों के दर्द को बयां करती वेदना का स्वर है


संगीता स्वरुप की " किसे अर्पण करूँ " ज़िन्दगी का निचोड़ है कि कैसे एक उम्र बीत जाने पर ना तो रिश्ते छोड़े जा सकते हैं क्योंकि मोहे के बंधनों में जकड़े होते हैं और ना ही सहेजने आसान होते हैं इसी कशमकश में बांधा उनका मन भवसागर  में डूब उतर रहा है


आसक्ति से प्रारंभ हो

विरक्ति प्रारब्ध हो गयी
किस छल बल से भला
मैं मोह का दामन करूँ ?

समीर लाल की "वापसी" में हर प्रवासी की पीड़ा का दिग्दर्शन है जो अपनी मिटटी से बिछुड़ा कोई पंछी महसूस करता है और वापसी की चाह रखता है मगर चाहकर भी इस मकडजाल से बाहर नहीं निकल पाता


सलिल वर्मा की "भिक्षुक " दिल को गहराई तक छूने वाली रचना है . पीड़ा की असीम वेदना का चित्रण कराये ये कविता कितना कुछ कह जाती है जिसे जब खुद पढ़ा जाए तभी महसूस किया जा सकता है उस पीड़ा को शब्दों में बांधना कहाँ संभव हो सकता है


साधना वैद की "सुमित्रा का संताप" सुमित्रा की उस वेदना का दर्शन करता है जिसकी तरफ आज तक किसी भी कहानीकार या कवि की दृष्टि नहीं पड़ी.  सुमित्रा की वेदना को कम आँका गया और कौशल्या की वेदना को ज्यादा सिर्फ इसलिए क्योंकि वो राम की माँ थी जबकि विरह और वैधव्य की पीड़ा तो दोनों ने बराबर सही थी इसी वेदना को साधना जी ने जीवंत कर एक प्रश्न खड़ा कर दिया जिसका उत्तर तो शायद उस युग में भी अनुत्तरित ही रहा होगा तो आज कैसे मिल सकता है


भौतिक और भावनात्मक

आवश्यकताओं के लिए तो
उनकी संगिनी सीता उनके साथ थीं
लेकिन मेरे लक्ष्मण और उर्मिला ने तो
चौदह  वर्ष का यह बनवास
नितांत अकेले शरशैया
की चुभन के साथ भोगा है

सीमा सिंघल की "ज़िन्दगी का कोई सवाल नहीं था" ह्रदय की ग्रंथियों में उमड़ी पीड़ा का जीता जागता दर्शन है. एक सीमा जिसके बाद ज़िन्दगी का कोई सवाल नहीं रहता .


सुनीता शानू की " एक विचार" सारी ज़िन्दगी का निचोड़ जो आत्मा महसूस करती है उसे प्रस्फुटित करती है


सुशीला शिवरण की "दाह का उत्सव" सटी प्रथा की पीड़ा का दिग्दर्शन करती उत्कृष्ट प्रस्तुति है जो एक सवाल के साथ ख़त्म होती है कि क्यों पुरुष भी पत्नी की चिता पर स्वयं का दाह नहीं करते . क्यों सारे कर्त्तव्य नारी के ही होते हैं ?


ढोल नगाड़ों के शोर में

दभी चीखें रूपकंवर की
गैरों की क्या कहिये
होली जली रक्त संबंधों की
मेरी जन्म भूमि में
पाप हुआ था घोर

हरकीरत हीर की "मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ" पीड़ा का जीवंत उद्बोधन है जहाँ रिश्तों के मकडजाल से वो दोनों को मुक्त कर रही हैं बिना किसी चाह के


न अपनी की कमी से सूख गयी नदी का

हवाला देने आई हूँ
उखाड गयी सांसों को
रब रफ़्तार की जरूरत नहीं
ये तो बस मुक्ति मांगती हैं
मिटटी में फिर से बीज बनने के लिए

इसी संग्रह में एक कविता मेरी भी है---------

 " और श्राप है तुम्हें ------मगर तब तक नहीं मिलेगा तुम्हें पूर्ण विराम "


आवरण पृष्ट और साज सज्जा साथ ही संपादन सभी बेजोड़ हैं जो पाठक को आकर्षित करते हैं साथ ही कवियों और कवयित्रियों का परिचय इतनी खूबसूरती से दिया है जो बरबस मन मोह लेता है .


अब इसे शब्दों का अरण्य कहूँ या भावुक मन की भावाव्यक्ति जिसमे सिर्फ और सिर्फ भावों की उद्दात तरगें ही समाहित दिखती हैं . अभी एक भाव से उबरे नहीं होते कि दूसरा भाव जकड लेता है और पाठक मन उसमे उलझा होता है कि तीसरा भाव बरबस अपनी तरफ आकृष्ट कर लेता है ऐसी बेजोड़ कृति अपने निजी पुस्तकालय में सहेजने योग्य है .


ये कुछ सुमन जो मैं संजो सकी संजो लिए और आपके सम्मुख प्रस्तुत कर दिए । जिन्हें नही ले पायी कृपया नाराज़ ना हों सिर्फ़ अपनी क्षमता के मुताबिक ही ले पायी हूँ नही तो कोई भी रचना ऐसी नही कि छोडी जा सके । अब आप भी महकिये इनकी खुशबू से और यदि भीगना चाहते हैं तो हिन्दयुग्म के शैलेश जी से  या फ्लिप्कार्ट से मंगवा संकते हैं .


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M : 9873734046, 9968755908