ख्वाब क्यूँ?
एक प्रश्नचिन्ह ?
बात तो सही है
क्यूँ देखें ख्वाब?
क्या जरूरी है
ख्वाब पूरे हों ही
मगर फिर भी
ख्वाब तो देखे जाते हैं
शायद उन्ही के सहारे
ज़िन्दगी गुजार जाते हैं
आधी अधूरी सी
अधखिली सी ज़िन्दगी
अधूरे ख्वाब की अधूरी तस्वीर
जब बन जाती है ज़िन्दगी
शायद "ख्वाब क्यूँ" का सही उत्तर
दे जाती है ज़िन्दगी
यूँ तो ख्वाबों के गुंचे
रोज खिलते हैं ख्वाबगाह में
मगर हर ख्याली गुंचा
चढ़ सके देवता पर
जरूरी तो नहीं
कुछ ख्वाब के गुंचे
अर्थियों की शोभा बनते हैं
तो भी क्या हुआ
अपने होने को तो
सिद्ध कर देते हैं
बस होना...... सिद्ध होना जरूरी है
अस्तित्व है.......ये जरूरी है
फिर चाहे ज़िन्दगी क्षणिक ही क्यों ना हो
चाहे ख्वाब की हो या हकीकत की
मगर देखे ख्वाब ही बुलंदियां पाते हैं
जिन ख्वाबों का अस्तित्व ही ना हो
वो कहाँ कोई मुकाम पा सकते हैं
शायद इसीलिए ख्वाब का होना जरूरी है
यूँ ही नहीं कण कण में परमात्मा बसता है
अस्तित्व तो उसका भी है ही ना
बेशक दिखे ना दिखे मगर
अपने होने का अहसास करा देता है
और उसे पाने की चाह बलवती हो जाती है
बस वैसे ही
ख्वाब है तो चाहत है
चाहत है तो पाने की तमन्ना है
तमन्ना है तो खोज है
खोज है तो अस्तित्व है
अस्तित्व है तभी आकार निर्माण होता है
फिर ख्वाब तो ख्वाब है
निराकार में भी साकार होता है
तो फिर कैसे ख्वाब के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दूं ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति शब्द संयोजन भाव अतिउत्तम दूसरी बार पढने पर भी उतना ही मजा आया वंदना जी
जवाब देंहटाएंतो फिर कैसे ख्वाब के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दूं ...
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार उत्कृष्ट लेखन के लिए
क्योंकि हमने ख़्वाबों को जाना है
जवाब देंहटाएंसही कहा ख्वाब है तो चाहत भी है..यही सत्य है.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी की पोस्ट की जवाबी पोस्ट....वाह वंदना जी ।
जवाब देंहटाएं@ इमरान अंसारी जी ये रश्मि जी की पोस्ट का जवाब नही है ये तो शब्दो की चाक पर ख्वाब क्यूँ शीर्षक दिया गया था जिस पर सबने अपने अपने ढंग से कविता लिखनी थी बस रश्मि जी ने अपनी लिखी और मैने अपनी:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वंदना जी....
जवाब देंहटाएंu just play with words....
regards
anu
ख्वाब तो ख्वाब है
जवाब देंहटाएंनिराकार में भी साकार
सचमुच जब हम इन ख्वाबों की दुनिया में होते हैं तो जी लेते हैं उस निराकार को साकार की तरह... बहुत सुन्दर भाव... आभार वंदना जी
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंAb lagta hai,kaash! Khwab na dekhe hote!
जवाब देंहटाएंनिसंदेह ख्वाबो के अस्तित्व से तो कतई इंकार किया ही नहीं जा सकता है .भले ही वो सच हो या नहीं मात्र उनका होना ही पर्याप्त है.आपने सुना तो होगा -जिन्दगी ख्वाब है ख्वाब में भला सच है क्या और झूठ क्या
जवाब देंहटाएंWAH , VANDANA JI , KWAAB KE ASTITV
जवाब देंहटाएंKE KYA KAHNE !
KHWAAB DEKHA TO YE HUAA MASOOS
MUJHKO AA KAR JAGAA DIYAA TOONE
ख्वाब का होना जरूरी है ..
जवाब देंहटाएंएक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
सुंदर अति मनभावन
जवाब देंहटाएंkhwaab na ho to neeras hai jindgi.
जवाब देंहटाएंख्वाब ही तो जिंदगी बुनते हैं, बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम
shabdo ki chak pe padha tha, behtareen!
जवाब देंहटाएंख्वाब आवश्यक हैं।
जवाब देंहटाएंसच कहा है ख्वाब हैं तो जीवन है वर्ना निरर्थक हो जायगा जीवन उमंग न रहेगी कोई ...
जवाब देंहटाएंख़्वाब ही तो जीवन है ,
जवाब देंहटाएंवरना ज़िन्दगी तो कब की दम तोड़ चुकी होती |
ओह तो ये बात है.....दोनों की ही कवितायेँ बढ़िया और शानदार हैं....माफ़ कीजियेगा मुझे पता नहीं था इस बारे में :-)
जवाब देंहटाएंbahot achchi likhi......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... ख्वाब न हो तो फिर क्या जीना ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव संयोजित किये हैं,बहुत बढ़िया प्रस्तुति!आभार .
जवाब देंहटाएंसादर
आपका सवाई
ऐसे नबंरो पर कॉल ना करे. पढ़ें और शेयर
खोज, अस्तित्व और ख्वाब के बीच कुछ ढूंढती कविता अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवंदना जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'जिंदगी...एक खामोश सफर'से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 14 अगस्त को 'बिन भक्ति ज्ञान अधूरा' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव