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रविवार, 22 जुलाई 2012

प्रेमांजलि ……एक महक



साहित्य प्रेमी संघ के तत्वाधान में "ह्रदय तारों का स्पंदन " एक प्रेमांजलि काव्य संग्रह है जहाँ प्रेम की प्रचुरता है . प्रेम जो अखंड बहता अंतर्नाद है फिर चाहे प्रेम का स्वरुप कोई भी हो ---- चाहे मीरा का हो या राधा का , चाहे माँ का हो या बेटे का , चाहे प्रकृति का हो या पुरुष का . प्रेम एक सतत बहता दरिया है जो दर्द की गागर में जितनी डुबकी लगाता है उतना ही निखरता जाता है यहाँ अभिव्यक्ति को शब्दों की जरूरत नहीं होती सिर्फ ह्रदय तरंगों पर स्पंदनों के माध्यम से संदेशों का आदान - प्रदान हो जाता है , भावनाएं अभिव्यक्त हो जाती हैं और निराकार साकार हो जाता है ...........ये होती है प्रेम की दिव्य , अलौकिक शक्ति . और इसी शक्ति के कुछ सुमन इस काव्यमयी माला में गूंथे गए हैं जो आपके समक्ष हैं.यूँ तो यहाँ काफी खूबसूरत सुमन हैं मगर मैंने कुछ सुमन चुने हैं तो इसका ये मतलब नहीं बाकी में कोई कमी है बल्कि मेरी क्षमता ही इतनी है और फिर कुछ आपके पढने के लिए भी तो बचना चाहिए ना ..........

ललित शर्मा की "माँ, पत्नी और बेटी " कविता ज़िन्दगी के हर आयाम को छूती प्रेम के तीन रूपों का निरूपण करती है साथ ही तीनों की महत्ता को दर्शाती कविता बताती ही कि एक बेटी के आने के बाद कैसे ज़िन्दगी में ठहराव आता है तभी तो कवि ह्रदय कह उठाता है


आज तेरे आने से मेरे जीवन में
कुछ स्थिरता बनी है
इन दो धुरियों के बीच
एक पुल का निर्माण हुआ है
क्योंकि तुम तीनों हो मेरी
जनक -नियंता और विधायिका

अर्चना चाव जी "मन की उड़ान " के माध्यम से अपने विचारों को  परवाज दे रही हैं और तुलसी हो जाना चाहती हैं ........तुलसी हो जाना नारी मन के भावों की पराकाष्ठा ही तो है

मन एक उन कटे पंखों से
जिन्हें क़तर दिया था मैंने कभी
मैं उड़ना चाहती हूँ आज

अनुलाता राज नायर की कविता "जिक्र" मन के तारों को छूकर स्पंदित कर देती हैं और प्रेम में वियोग के क्षणों को कितनी कोमलता से निरुपित  करती है

अपनी एक पुरानी डायरी मिल गयी मुझे आज
याद आया जिस सफ़हे पर जिक्र होता तुम्हारा
उसे मोड़ दिया करती थी मैं
मगर ये क्या
हर सफहा ही मुड़ा पाया

फिर ख्याल आया उस रोज का
जब तुम चल दिए थे
ना जाने क्या कहकर
या शायद कुछ कहा भी ना था
मगर वो मुड़ा पन्ना दिखा नहीं मुझे
शायद नहीं किया होगा मैंने , तेरे चले जाने का जिक्र..........

आह! प्रेम जो ना करवाए कम ही तो है

 हेमंत कुमार दुबे के भाव जीवन संगिनी को समर्पित जीवन संगिनी की महत्ता को दर्शाते हैं जो आज के हर इन्सान में होना निहायत जरूरी है

कोई कोना कोई जगह ऐसी नहीं
जो भर ना सके तुम्हारे प्रेम से
समुन्दरों की लहरों को भी
शांत कर सकती है
तुम्हारी प्रेम भक्ति

प्रेम की शक्ति कितनी गहन होती है इसका दिग्दर्शन कराती "जीवन संगिनी " कविता नारी के गौरव को ना केवल बढाती है बल्कि उसके मान सम्मान और उसकी अहमियत भी दर्शाती है .

प्रदीप तिवारी की कविता " मेरा बेटा" आज के निर्मोही संबंधों का दिग्दर्शन कराती है साथ ही प्रेम कब और कैसे बोझ में तब्दील हो जाता है इसका बेहद मार्मिक चित्रण है

जब वो छोटा बच्चा थ
बड़ा होने को तड़पता था

आज अब वो बड़ा हो गया
दुनियादारी जान गया वो
मैंने उसका भार उठाया
मुझे भी भार मन गया वो
बुढ़ापे में उम्मीद थी उससे
पर जीते जी मुझे मार गया वो

स्वाती वल्लभा राज की "तकिये गीले हैं " एक संवेदनशील मन की कोमल सी अभिव्यक्ति है

अश्रु  क्या हैं
मन मंदिर में टूटे हुए
सपनो की छवि
वास्तविकता के  पटल पे
जो बनते और बिगड़ते हैं

अर्चना नायडू की " अमर प्रेम की अतृप्त बूँद " प्रेम के  विभिन्न रूपों को जीती ,सांस लेती रचना अतृप्ति के अहसास को बेहद संजीदगी से उकेरती है

प्रेम है अँधा, जानकर बन गयी मैं, सूरदास
पर दृष्टिहीन मैं, उसे ना देख सकी

प्रेम है निशब्द -शब्द ,रचकर, तुलसी के दोहे
शब्दहीन ....मैं उसे ना जान सकी

प्रेम को अटल सत्य मान, गौतम बनकर
उसके शाश्वत सत्य को ना पहचान सकी

नीरज द्विवेदी की "प्रेमी ज़माना होता" वर्तमान के हालातों और इंसानियत का जिक्र करती कविता सोचने को मजबूर करती है

पेड़ मुस्लिम हैं ना हिन्दू हैं
अब भी जंगले में रहता
पशु पक्षी और मौसम को
जीवन का दान ही करता

क्या करें सभ्यता का अब
जब सभ्य सभ्य से लड़ता
अधनंगा जब आदि मनुज
बस यहाँ शांति से रहता
ना होता कोई कत्लेआम
बस प्रेमी ज़माना होता

रागिनी मिश्रा की "स्पर्श"  दिल को स्पर्श करती बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति है जो स्पर्श की भावना को चाँद शब्दों में अभिव्यक्त करने में सक्षम हुई है

स्पर्श
कौन सा प्रथम ?
मन का या
तन का ?
 
ये तो नहीं जानती
पर
जो
छू जाए
वही .....
प्रथम
अंतिम
जीवन पर्यंत
और
मरणोपरांत भी

राजेश कुमारी की " कोई नाम लिखो" मोहब्बत की एक जीती जगती मिसाल है . जो चले गए उसी के गम में ना ज़िन्दगी को रुसवा किया जाए और मोहब्बत ही उसे उसके लिए प्रेरित करे ......वो ही तो वास्तविक मोहब्बत होती है

देखो आज भी उस पत्थर पर
जिसके नीचे मैं सोयी हूँ
लिख रहे हो रंगहीन आँसुओं से
मेरा नाम
तुम कहते हो की
तुम्हारे रंग खो गया हैं कहीं
मेरी गुजारिश है तुमसे
की आज से तुम अपने दिल पर
कोई नया नाम लिखो
धीरे धीरे खोये रंग भी लौट आयेंगे
और मेरी रूह को चैन भी मिल जायेगा

 सुध्मा आहुति की "तुम्हारे लिए वो प्यार है " एक अलग ही अंदाज़ में प्रस्तुत शिकायत सी है जो शिकायत भी नहीं है शायद प्रेम की ही एक अनुभूति है

होंगी तुम्हारे लिए मेरी कवितायेँ
कागज़ में लिखी चाँद पंक्तियाँ
मेरे लिए यह मेरी धडकनें हैं
सिर्फ तुम ही नहीं सुन पाते हो
वरना सभी को हर पंक्ति में
मेरी धडकनें सुनाई देती हैं

तो दूसरी कविता "मैं खामोश रहूंगी " ख़ामोशी की जुबाँ को व्यक्त करती शानदार अभिव्यक्ति है

इस बार सिर्फ खामोश रहूंगी
क्योंकि , मैं जान गयी हूँ
ख़ामोशी ही अब तुमसे मुझको अभिव्यक्त करेगी
ख़ामोशी ही मेरे शब्दों के बोझ से तुमको मुक्त करेगी
इस बार नहीं कहूँगी ......
मैं खामोश रहूंगी .........

सीमा गुप्ता की "मृगतृष्णा" इस शब्द को सार्थक करती एक खूबसूरत रचना है

कैसी ये मृगतृष्णा मेरी
ढूँढा तुमको तकदीरों में
चंदा की सब तहरीरों में
हाथों की धुंधली लकीरों में
मौजूद हो तुम मौजूद हो तुम
इन आँखों की तस्वीरों में

रोशी अग्रवाल की " मधुमास" वास्तव में मधुमास के अर्थ को बताती एक सार्थक अभिव्यक्ति है

प्यार का रंग भी होता है बड़ा अद्भुत और नवीन
एक दूसरे को स्व -समर्पण,साथी को आत्मसात करना ही है प्यार
बदल जाता है इस फलसफे से ही जीवन का हर रंग और ढंग

लक्ष्मी नारायण लहरे की "सुरमई सुबह" एक मधुर मुस्कान चेहरे पर अंकित कर देती है और बताती है कि जब जीवन में किसी मासूम मुस्कान का आगमन हो जाता है तो कैसे जीवन बदल जाता है



 मेरा नन्हा यज्ञेय
हँसते हुए .........
किलकारी ले रहा था
वह सुबह मेरे जीवन की
नयी जंग बन गयी
चेहरे पर मुस्कान थी पर
जिम्मेदारी की इक ...........नयी आगाज़ बन गयी

रेखा श्रीवास्तव ने "बाती का दर्द" के माध्यम से आज नर और मादा के फर्क के साथ मादा के महत्त्व को जिस खूबसूरती से पिरोया है वो काबिल-ए-तारीफ है . बाती को बिम्ब बना भविष्य के खतरे के प्रति सचेत किया है

ये पुल्लिंग की आखिरी खेप
फिर धारा पर
कोई सृष्टि ना होगी
क्योंकि गर्भ ही ना होगा
तो कौन गर्भवती और कैसा प्रजनन ?

और अंत में सत्यम की " तू साथ मेरे " अलौकिक प्रीत का प्रतिबिम्ब है

आ जा ना आ जा ना
एक बार इधर भी आ जाना
जो तेरे दरस को तरसे हैं सदियों से
उन नैनों की प्यास बुझा जाना
मन की धरती पर आज प्रभु
हरियाली बन कर छा जाना

और साथियों इसी संग्रह में मेरी भी निम्न पांच कवितायेँ सम्मिलित हैं

१) सिर्फ तुम्हारे लिए ..........जस्ट फॉर यू
२) एक खोज, एक चाहत और एक सच
३) प्रेम का कोई छोर नहीं होता
४) क्या फिर ऋतुराज का आगमन हुआ है ?
५) दोस्ती , प्रेम और सैक्स


अब दीजिये आज्ञा .......फिर मिलेंगे किसी और सफ़र में किसी और मंजिल के साथ

23 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई .... बहुत सिलसिले से सब लिखा है - सभी बधाई के पात्र हैं

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  2. हार्दिक बधाई...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रयास, सबको बधाईयाँ..

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  4. एक अभूतपूर्व प्रेमोत्सव का आयोजन -अद्भुत!

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  5. बहुत प्यारी समीक्षा वंदना जी....
    मेरी रचना "ज़िक्र" का ज़िक्र हुआ...सो बहुत खुश हूँ..और आपकी आभारी भी.

    शुक्रिया
    सस्नेह
    अनु

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  6. आप सभी को बहुत -बहुत बधाई .. एवं शुभकामनाएं

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  7. सबको बहुत बहुत बधाई ...अच्छी समीक्षा

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  8. रचनाएं सभी लाजवाब लग रही हैं ... किताब भी रोचक होगी ... बधाई सभी कवियों को ...

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  9. बधाई....सुन्दर समीक्षा ।

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  10. आपके चुने हुए सुमन खूबसूरत हैं ,
    बहुत बधाई .

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  11. सुंदर समीक्षा. ह्हर्दिक अभिनन्दन और बधाईयाँ.

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  12. खुबसूरत सेलेक्सन ... बढ़िया पोस्ट... बधाई.

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  13. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएँ!!


    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  14. बहुत ही सुंदर समीक्षा ...
    हार्दिक बधाई !!

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