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बुधवार, 11 जुलाई 2012

क्योंकि ज़िन्दा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते

पता नहीं कैसे 
संजोते हो तुम मुझे
अपने शब्दों की लड़ियों में 
तो कभी भावों की 
भाव भंगिमा में
और मैं 
उलझ कर रह जाती हूँ
घिर जाती हूँ 
तुम्हारे बनाये 
मोहब्बत के मकडजाल में 

कैसे तुम मोहब्बत को 
घूँट घूँट में पीते हो
जो विरह के पलों के 
विष से लबरेज होती है 
कैसे मुझे उसमे पाते हो
देखो तो जरा
मैं कितना कसमसाती हूँ
तुम्हारी गिरफ्त से छूटने के लिए
और तुम हो 
कि अपने ख्यालों की गिरफ्त
और बढ़ाते जाते हो 

जानते हो 
नहीं चाहती मैं 
कि तुम उस आग को पियो
जिसमे रोज मैं जली हूँ
तभी तो खुद को
तुम्हारे ख्यालों की बगिया से
मुक्त करना चाहती हूँ

ये मोहब्बत की अग्निवर्षा 
जिस्मों पर नहीं 
रूहों पर असर करती हैं
जला कर खाक कर देती हैं सफीना 
और नज़र  नहीं आता 
एक निशाँ भी .........अग्नि के तांडव का

देखो मदिरा तो शरीर को जलाती है
मगर ये मोहब्बत की मदिरा 
रूह को नेस्तनाबूद कर देती है
बच सको तो बच जाओ
मैं तो मिट चुकी हूँ
क्यों ख्याल के तकिये पर 
मेरे बुत को ज़िन्दा रखते हो

ए तेजाबी मोहब्बत के दरवेश 
मत कर दुआ 
मत मांग खुदा से 
मत कर कोई इल्तिजा 
क्योंकि 
ज़िन्दा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते 

21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्‍या बात कही है ... भावमय शब्‍द संयोजन ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. फिर भी .... तुम गर चाहो तो इस बुत की धड़कनों को सुनो एक बार
    दिल हुआ तुम्हारे पास तो तुम भी बुत हो जाओगे
    क्या है वो आग जिसमें मैं जली हूँ !

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  3. बहुत बढ़िया वंदना जी...
    सुघड रचना..

    अनु

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  4. बहुत गहन भाव बस एक ही बात कहूँगी लाजबाब ...मेरे भी दो शब्द ...क्यूँ बनाते हो वो ख़्वाबों के घरोंदे जब पता है की उसमे रहने वाले जिस्म ही नहीं हैं वहां

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  5. खूबसूरत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.

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  6. ये मोहब्बत की अग्निवर्षा
    जिस्मों पर नहीं
    रूहों पर असर करती हैं जला कर खाक कर देती हैं सफीना और नज़र नहीं आता एक निशाँ भी
    अनूठे भाव... शुभकामनाये

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  7. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  8. वाह क्या लिखा है आपने ....
    सुंदर व भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!

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  9. आग का दरिया बनी .... आगाह करती की इस आग को न पियो ... वाह ... सुंदर रचना

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  10. मुहब्बत,एक पहाडी झरना है,जिसे कोई मोड देना उसकी खूबसूरती को बिगाडना है.
    सुंदर भावयोजना—जिंदा बुतों के ताजमहल नहीं बनते.

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  11. क्योंकि...जिंदा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते.....
    बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति वन्दना जी | बहुत ही सटीक व् अर्थपूर्ण लेखन |

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