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रविवार, 8 जुलाई 2012

कृष्ण लीला ……भाग 55



एक दिन इन्द्र पूजा का दिन आया
वृन्दावन वासियों ने अनेक पकवान बनाये 
यशोदा मैया भी उस दिन
भिन्न भिन्न पकवान बनाती थीं
सब की तैयारी देख
कन्हैया ने विचार किया 
ये अज्ञानी ग्रामवासी 
डर के पूजा करते हैं
किस कार्य से क्या होगा
इसका ना महत्त्व समझते हैं
पुरातन रीती अपनाये जाते हैं
पूजा शास्त्र सम्मत होनी चाहिए
ना कि डर से 
आज इन्हें समझाना होगा
पूजा का महत्त्व इन्हें बतलाना होगा
ये सोच कान्हा पहुंचे मैया के पास
रोज कान्हा गौ चरा 
मैया के पास चले आते थे
आज जब कान्हा उनकी तरफ आने लगे
ये देख मैया ने रोक दिया
कान्हा आज मेरे पास मत आना
जय जय के लिए भोग बनाती हूँ
मुझे तुम मत छूना
मगर कान्हा ने मैया की बात ना मानी
और फिर मैया की तरफ कदम बढ़ाने लगे
मैया माना करती रही
डांट लगाती रही
मगर कान्हा ने एक ना मानी 
ये देख मैया को क्रोध इतना आया
आज मैया ने कान्हा के गाल पर चपत लगाया 
कान्हा थप्पड़ खा 
बिलख- बिलख कर रोने लगे
रोते- रोते नन्द बाबा के 
पास पहुँच गए 
वहाँ भी देखा
लोग नए- नए पकवान बनाते थे
जैसे नन्द बाबा ने देखा
कान्हा को रोते
तुरंत गोद में उठा लिया
और रोने का कारण पूछा
अब तो कान्हा बोल पड़े
बाबा रोने का कारण बाद में पूछना
पहले ये बतलाओ
ये सब यहाँ क्या होता है
तब नंद बाबा ने बतलाया
ये जय- जय के लिए भोग बनाया है
सुन कान्हा बोल पड़े
इसी जय- जय ने तो 
आज पिटवाया है
कौन है ये जय -जय बाबा
हमारे लिए क्या करता है
सुन नन्द बाबा ने बतलाया
इन्द्र देवता की 
हम सब पूजा करते हैं
फिर वो पूजा से खुश होकर
पानी बरसाता है
जिससे हमारा प्रदेश
धन-धान्य से 
परिपूर्ण हो जाता है
ये सुन कान्हा बोल उठे
क्यों जान- बूझकर
कुराह पर सब चलते हैं
संसार में धर्म और कर्म
तीन तरह के होते हैं
एक वेद व् शास्त्रानुसार
दूजा लोक व्यवहार
और तीसरा अपने मन से 
कार्य करना 
सो वेदानुसार कार्य करने से ही
शुभ फल मिला करता है
फिर भला इंद्र की 
पूजा से क्या मिलेगा
ना वो किसी को
भक्ति, मुक्ति या वरदान 
दे सकता है
वो तो खुद सौ यज्ञ 
करने पर इन्द्रासन पाता है
तभी सभी देवता उसे 
अपना राजा मानते हैं
जो दैत्यों से लडाई  में
खुद जा छिप जाता है
और नारायण की सहायता से
पुनः इन्द्रासन पाता है
ऐसे निर्बल की क्यों 
तुम सब पूजा करते हो
धर्मानुसार परमेश्वर की
पूजा क्यों नहीं करते हो
जो अज्ञानी नारायण को छोड़
दूसरे देवों को पूजा करते हैं
उन्हें मूर्ख समझना चाहिए
जब प्रभु इच्छा बिना
पत्ता तक नहीं हिल सकता
फिर कोई किसी को
सुख- दुःख भला क्या देगा
जो होता है परमेश्वर की
इच्छानुसार होता है
जो कर्म में लिखा गया
वो तिल भर भी
ना घटता - बढ़ता है
सुख- संपत्ति घर- परिवार
वस्तुएं सब धर्म -कर्म से मिलती हैं
फिर बताओ इसमें
इंद्र ने क्या नया किया
उसे तो सिंचाई मंत्री 
है बनाया गया
उसका कार्य है वर्षा करना
गर इसमें वो कोताही बरतेगा
नारायण के कोप का भाजन होगा
अपने वर्णानुसार धर्म को ना छोडो
खेती व्यापार गौ सेवा करना ही
वैश्य का धर्म होता
और हमें सारी सुख समृद्धि 
ये गोवर्धन पर्वत ही देता
इससे  ही हमारा गौ धन
फलता -फूलता 
गौ बछड़े यहीं चरा करते
फिर भर -भर कर 
दूध -घी दिया करते
जिससे सबका जीवन चलता
क्यों ना हम सभी
इसी पर्वत की पूजा करें
ये सुन ग्रामवासी खुश हुए
और नंदबाबा से बोल पड़े
नंदबाबा बेशक बालक है छोटा
पर बात पते की है कहता


सबने कहा कन्हैया
ये तो बतलाओ
गर इन्द्र नाराज हुआ
तो क्या तुम्हारा गोवर्धन
हमारी रक्षा करेगा
सुन कान्हा ने हामी भरी
एक ग्वाल ने कहा
तुम्हारे गोवर्धन की
पूजा को हैं हम तैयार
मगर उसे सामने आकर
भोग लगाना होगा
कान्हा ने वो भी है
स्वीकार किया
तीसरी बात ग्वाल बालों ने ये कही
तुम्हारे गोवर्धन को क्या भाता है
५६ प्रकार का भोजन
हमारा गोवर्धन करता है
कान्हा ने बतलाया
और ५६ प्रकार के 
भोजन का अर्थ
गुनीजनों ने है ये बतलाया
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (5)
पांच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन (6)
पांच और छः होते हैं ग्यारह 
इस तरह मिलाकर हो गया 
५६ प्रकार का भोजन
जहाँ मन ,वचन और कर्म से 
प्रभु को पूर्ण समर्पण किया
जीव का वो ही प्रभु को
५६ प्रकार का भोजन हुआ
सर्वस्व समर्पण का भाव ही
प्रभु ने  है बतलाया
पर इतनी सी बात ही
जीव ना कभी समझ पाया
अब ग्वालों ने कहा
देखो कान्हा 
पहली बार पूजा करेंगे
कोई त्रुटि हुई तो
तुम्हारे देव हमें क्षमा करेंगे
कान्हा ने कहा
तुम्हारी ये बात 
नहीं मानी जा सकती
पूजा तो शास्त्र सम्मत करनी होगी
सुन गोप बोले वो तो
हमें नहीं है आती
तब कान्हा ने बतलाया
जैसे- जैसे कहता जाऊँ
तुम वैसा करते जाना
सुन सबके मन हर्षाये
और सामग्री गाडी बैलों पर 
लदवा दिया
उत्तम वस्त्राभूषण पहन
सबने गोवर्धन को 
प्रस्थान किया
सबने मिल सबसे पहले
गोवर्धन को स्नान कराया
पर इतने बड़े पहाड़ पर ना
कोई असर हुआ
जब तक पानी भर कर लाते थे
तब तक गोवर्धन सूख जाते थे
सुबह से शाम हुई
पर गोवर्धन पर्वत की तो
मूंछ भी ना गीली हुई
ग्रामवासी थक हार गए
कान्हा से गुहार लगायी
देख भैया हम से तो अब
और पानी ढोया जाता नहीं
और तेरे गोवर्धन पर तो
कुछ भी असर होता नहीं
सुन कान्हा बोले अगर
पानी का इंतजार पास हो जाये
तो बोलो कुछ समस्या रहेगी
सुन ग्रामवासी प्रसन्न हुए
सबको आँख बंद करवाई
और मन से ही मनहरण प्यारे ने
मानसी गंगा उपजाई
अब सबने मिल गोवर्धन को
स्नान कराया
शास्त्र सम्मत विधि से पूजा किया
जैसे ही भोग लगाने को उद्यत हुए
ये देख गिरिराज स्वयं प्रकट हुए
ब्रजवासी ये देख अति आनंदित हुए
गिरिराज कोई और नहीं
स्वयं कान्हा ने ही 
रूप बनाया था
और अति हर्षित हो
ब्रजवासियों के भोजन का
भोग लगाया था
मांग -मांग कर खाते थे
विविध पकवानों का
स्वाद उठते थे
ब्रजवासियों को अपनी
गलती का अहसास हुआ
व्यर्थ ही इतने साल
इन्द्र का पूजन किया
जिसने ना कभी दर्शन दिया
गिरिराज का आज ही
पूजन किया
उसने तो स्वयं प्रकट हो
भोजन किया
ये बात सबके मन को भा गयी
अति हर्षित हो सभी
गिरिराज का पूजन कर
ब्रज में लौट आये


क्रमश: ……………


15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वंदना जी....

    शुक्रिया
    अनु

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  2. भगवान् श्री कृष्ण की लीला न्यारी .....
    बहुत ही खुबसूरत लगा , कृष्ण लीला का वर्णन |

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  3. बहुत उम्दा!
    पोस्ट आपकी है मगर चित्र तो आपने भी कहीं से लगाया है। गूगल की सुविधा है कि आभार के साथ चित्र ब्लॉग पर लगाया जा सकता है।
    इसीलिए तो गूगल ने छवियों की खोज का विकल्प हमें दिया है।

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  4. @डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) आपका कहना सही है शास्त्री जी मगर मैने अपने चित्र के उपयोग के लिये कहा है और अपने नाम और अपनी पोस्ट के लिये खास तौर से उन लोगो के लिये जो इसका गलत उपयोग कर रहे हैं और गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं आप जैसे दोस्तों के लिये नही कहा क्योंकि जानती हूँ आप ऐसा कुछ कभी कर ही नही सकते ………ये कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हे अनुरोध किया कि मेरा नाम और चित्र हटा दो मगर तब भी नही हटा रहे तो डिस्क्लेमर लगाना पडा।

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  5. बहुत अच्छी रचना सुन्दर कृष्ण लीला पाठ पढने को मिल रहा है जो मैंने कभी नहीं पढ़ा बहुत बहुत आभार वंदना जी

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  6. आपके साथ कान्हा की लीला का आनंद ले रहे हैं।

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  7. सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार .

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .

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  8. गुनीजनों ने है ये बतलाया पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (5) पांच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन (6) पांच और छः होते हैं ग्यारह इस तरह मिलाकर हो गया ५६ प्रकार का भोजन जहाँ मन ,वचन और कर्म से प्रभु को पूर्ण समर्पण किया जीव का वो ही प्रभु को ५६ प्रकार का भोजन हुआ सर्वस्व समर्पण का भाव ही प्रभु ने है बतलाया पर इतनी सी बात ही जीव कभी समझ न पाया

    ५६ यानि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रिया और एक मन ...हो गए छप्पन.

    बहुत खूब वंदना जी.आप महान हैं.
    आपको शत शत वंदन.

    वैसे छप्पन भोगो में क्या क्या होता है जी.
    सुना है छप्पन भोगो के नाम से ही लार टपकने लगती है.

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