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बुधवार, 30 मई 2012

श्रापित मोहब्बत हो कोई और उसे मुक्तिद्वार मिल जाये

आज भी कुंवारी है मेरी मोहब्बत
जानते हो तुम
रोज आती हूँ नंगे पाँव परिक्रमा करने
उसी बोधिवृक्ष की
जहाँ तुमने ज्ञान पाया
जहाँ से तुमने आवाज़ दी
उस मृतात्मा को
जिसका होना ना होना
खुद के अस्तित्व के लिए भी दुरूह है
काठ की दुल्हनें कब डोलियों में बैठी हैं
फिर भी तुमने देवदार बन कर
छाँव के औसारे पर
मेरे पाँव की जमीन की
मिटटी पर अपने दिल की
तस्वीर बनाई थी
और वो मिटटी धडकने लगी
साँसों पर ठहरी इबारत
आकार लेना चाहकर भी ना ले सकी

जानते हो ना
मैं होकर भी नहीं हूँ
देवदासी तो नहीं हूँ
पर उससे कम भी नहीं
कैसे श्रृंगार पर अधिकार करूँ
मोहब्बत का श्रृंगार मेरी
माँग का सिन्दूर नहीं
पत्थर की राजकुमारियां शापित होती हैं
डूब कर मरने के लिए
मगर तुम्हारी साधना की आराधना बनना
तुम्हारे हाथों में सुमिरन की माला बन
ऊंगलियों में फिरना
जीवित काष्टों का नसीब नहीं

देखो मत छूना मुझे
ये ग्रीवा पर ऊंगलियों के स्पर्श
मुझमे चेतना का संचार नहीं करेंगे
अरे रे रे ......रुको वहीँ
पीछे बहता दरिया मेरी कब्रगाह है
नहीं है इजाज़त मुझे बाँध बाँधने की
सिर्फ प्रवाहित हो सकती हूँ
अस्थियों की तरह
गर तुमने मेरी माँग में
अपने प्रेम का सिन्दूर भरा
वैधव्य का दुशाला कैसे ओढूंगी?
श्रापित हूँ मैं
दूर रहो मुझसे

मैं कहती रही .........तुम सुनते रहे
और तुम्हारे कदम बढ़ते रहे
बलिष्ठ भुजाओं में भर
स्नेह्जनित चुम्बन
शिव की तीसरी आँख पर
अंकित कर
मुझे श्राप से मुक्त किया
मेरा भरम तोड़ दिया ....श्रापित होने का

सुदूर पूरब में
सूर्योदय की लालिमा का रंग
मेरे मुखकमल पर देख
तुमने इतना ही तो कहा था
पिघलती चट्टान का रंग-ओ-सुरूर हो तुम .....ओ मेरी दिवास्वप्ना !!!

बस फिर यूँ लगा ……

श्रापित मोहब्बत हो कोई और उसे मुक्तिद्वार मिल जाये ……

31 टिप्‍पणियां:

  1. प्रत्‍येक शब्‍द भावनाओं में डूबा हुआ ... उत्‍कृष्‍ट लेखन ...आभार

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  2. बहुत दिनों के बाद कुछ ऐसा पढ़ने को मिला है तुम्हारी कलम से जिसने कभी बाँधा , कभी चौंकाया , कभी सोचने पर झुकाया , कभी किसी और दुनिया में ले गया . this is it vandana . १० में से ९ .. [ क्योंकि १० में से १० सिर्फ मैं अपनी ही कविता को देता हूँ :):):) ] jokes apart . amazing poem re. kudos.

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  3. बेहतरीन.....
    लाजवाब अभिव्यक्ति वंदना जी.


    अनु

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  4. खुबसूरत लाइन जहाँ सवेदनाएं जागृत हो जाती हैं और प्रतिध्वनित कराती हैं भावनाओं को .......
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..कोई आभार नहीं सुन्दर है तो बधाई भी नहीं बस अगले के इंतजार में पलक पावडे बिछाए ........

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  5. Kahan se aise alfaaz tumhen mil jate hain? Kahan se aisi lajawab kalpna shakti payi hai?

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  6. रचना के भाव अपने साथ बहा ले गऐ और भावों के समुन्दर ने अंतस को डुबो दिया...उत्क्रष्ट संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति...आभार..

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  7. प्रेम श्राप मुक्त करता है.. बहुत सुद्नर...

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  8. श्राप का भ्रम टूट जाए तो बात ही क्या ...सुन्दर प्रस्तुति

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    पोस्ट साझा करने के लिए आभार!

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  10. अरे ये क्या क्या लिख देती हैं आप...
    लाजबाब ...

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  11. काठ की दुल्हन- यह प्रयोग बहुत अच्छा लगा।

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  12. उत्क्रष्ट संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति...सुंदर प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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  13. ढाई आखर प्रेम का श्राप से मुक्त कर गया !
    उत्कृष्ट रचना ,बार -बार पढना होगा !

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  14. एक -एक शब्द भाव में डूबा हुआ...अद्भुत अभिव्यक्ति... आभार

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  15. भ्रम दूर हो जाय इसी का नाम मुक्ति है.
    यह काम बोधि वृक्ष के नीचे हो या अपने पलंग पर.
    जहाँ भी हो सके, होना ज़रूर चाहिए.
    कोई आरजू कुंवारी लेकर यहाँ से न जाय.
    जो भी जाय अपनी chunar पर daag लेकर जाय .

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  16. वंदना जी.....हैट्स ऑफ इस शानदार पोस्ट के लिए....बहुत ही सुन्दर लगी।

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  17. बहुत ही गहराई है रचना में..
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति....
    :-)

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  18. प्रेम समर्पण के गहरे भाव लिए ...
    कमाल की रचना ...

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  19. गूढ़ भी , सरल भी .... मासूमियत भी ........

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  20. shirshak dekh kar apne aap ko rok na paya , aaj kal blog se door hun , lekin ye padhkar padhna safal hua, behatareen rahasyamayi rachna ke liye badhaai.

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  21. दिल से निकले वाले शब्द मन को दोलायमान कर जाते हैं। आपकी कविता भाव- प्रवण है । बहुत अच्छी लगी । मेरे पोस्ट बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  22. भावनाओं के सागर में प्रेम के मोती...वाह!

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  23. बहुत उदास सा पीले गुलाब सा चेहरा हथेलियों में टिका गुमसुम
    सुनो इतनी अजीब सी किस्मत लिए क्यों पैदा हुए हम -तुम

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