पृष्ठ

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं

एक मुद्दत हुई
ज़माने से मिले
कब से मन के तिलिस्म में
कैद कर लिया वजूद को
मन पंछी ने उड़ना भी छोड़ दिया
अब तो शायद पंख भी झड़ चुके हैं
वक्त की दीमक सब चाट चुकी है
बाहर का शोर भी बाहर ही रह जाता है
जैसे किसी  साऊंड प्रूफ घर में
कोई अजनबी सारी मिलकियत दबाये
अपनी हसरतों  के साथ रह रहा हो
कोई दरवाज़ा खटखटाए तो भी
अन्दर आवाज़ नहीं आती
आवाज़भेदी दरवाज़ों के साथ
प्रतिबिम्बरोधी दीवारें मन
के तिलिस्म की मजबूत
मीनारें बनी हैं
अब तो चाहकर भी उड़ ना पायेगा
जहाँ हवा का भी प्रवेश वर्जित  हो
वहाँ उड़ान कैसे संभव हो
मगर पता नही क्यों
आज इस तिलिस्म में दफ़न वजूद
बाहर की दुनिया का
तसव्वुर करने को बेचैन हो गया
लेकिन डरता है
कोई उसे जान सकेगा?
पहचान पायेगा ?
एक मुद्दत हुई ज़माने की
आहटों को सुने
और जैसे ही अपनी चाहत को
मन ने असलियत का जामा पहनाया
और मन को ज़माने की
धारा में प्रवाहित किया
कैसा विकल हुआ
यहाँ तो कोई चेहरा
कोई राहगीर
कोई नक्श ना अपना हुआ
हर तरफ , हर दीवार पर सिर्फ
एक नो एंट्री का बोर्ड दिखा
तो क्या सभी ने अपने
मनो में एक तिलिस्म बनाया है
और ज़माने के दस्तूर को भांप
मन ने वापस अपनी खोह में
आसान जमाया
समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं

35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन.
    ---------
    कल 20/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह वंदना जी,
    आपकी सोच की तह तक पहुंचना बहुत मुश्किल है !
    एक नई सोच के साथ यह कविता मन के कोनो को अभिसिंचित कर गयी !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. समाधि ही समाधि ||
    समाधियों की
    कतारें
    अनवरत गिनते जाइए||
    कुछ लगी कुछ लगाईं गईं |
    बहुत सी मिटी कुछ गायी गईं ||
    देखिये वो मिट रही समाधि--
    हलचल है हलकी सी ||

    बधाई ||
    सुन्दर प्रस्तुति ||

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ...बेहतरीन लिखा है.समाधियां ऐसे ही तो नहीं लगा करतीं.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही गम्भीर अभिव्यक्ति!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किये हैं भाव...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूब!"तो सभी ने अपने मन मे क्या एक तिलिस्म बनाया है।……………समाधि से कभी वापस न आने के लिये………क्या भाव हैं!!!!! सुंदर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  9. आज इस तिलिस्म में दफ़न वजूद
    बाहर की दुनिया का
    तसव्वुर करने को बेचैन हो गया
    लेकिन डरता है
    कोई उसे जान सकेगा?
    पहचान पायेगा ?

    खूब कहा आपने समाधियाँ अखंड ही होती है, अभिव्यक्तिओं का गहन भाव बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  11. और ज़माने के दस्तूर को भांप
    मन ने वापस अपनी खोह में
    आसान जमाया
    समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
    आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं

    क्या गज़ब लिखा है ... द्वंद्व की जगह खाली पण और मौन दिख रहा है ..

    जवाब देंहटाएं
  12. लम्बा मौन अखण्ड समाधि जैसा ही तो है।

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति|

    जवाब देंहटाएं
  14. समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
    आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं

    गहरी सोच... भावपूर्ण अभिव्यक्ति.... गजब का शब्द संयोजन...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. यह जीवन विविध समाधियों का समुच्चय ही तो है।
    एक श्रेष्ठ कविता।

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया