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शनिवार, 16 जुलाई 2011

ज़रा खबर की खबर भी ले जाये

खबर खबर बन के रह गयी
ये खबर को भी खबर ना हुई
जब निकला खबर का जनाज़ा
खबर की भी खबर बन गयी
तब तक जब तक कोई नयी सनसनीखेज खबर और नही आ जाती बस तभी तक असर रहना है ………जनता को आदत पड चुकी है ये सब देखने की और ऐसे ही जीने की…………जनता ने भी बापू के बन्दरों की तरह बुरा देखना, बुरा बोलना और बुरा सुनना बन्द कर दिया है…………तो बस खबर है अगली खबर तक ही है इसका जीवन
 
हम सब अब खबरो के आदी हो चुके हैं…एक से जल्दी बोर हो जाते हैं इसलिये रोज एक नयी खबर का तो इंतज़ार कर सकते हैं मगर करने के नाम पर सिर्फ़ कोस सकते हैं और जब अपनी बारी आये तो अपने घर परिवार का वास्ता देकर पतली गली से निकल जाते हैं ……जब हम बहाने बनाना जानते हैं तो फिर सरकार के पास तो पूरा अख्तियार है और बहाना बनाना वैसे भी उसकी फ़ितरत है………तो क्या हुआ अगर वो रोज एक नया बहाना गढ लेती है कभी सबूतों के नाम पर तो कभी दबाव के नाम पर तो कभी डर के नाम पर्…..........और ये भी बस खबर बन कर ही रह जाएगी हमेशा की तरह........बैठकें की जाएँगी , समितियां गठित की जाएँगी, दूसरे मुल्क पर इलज़ाम लगाये जायेंगे और अपनी कमी को ना देख दूसरों के सिर घड़ा फोड़ा जायेगा , शहीदों को श्रद्दांजलि दी जाएगी और कुछ लाख का मुआवजा उसके बाद किसी आतंकवादी को यदि गलती से पकड़ भी लिया तो उसे मेहमान बनाकर रखा जायेगा ...........आखिर इस देश की परंपरा रही है ........अतिथि देवो भवः ...........अब बेचारी सरकार ये सब तो करेगी ही ना आखिर कुर्सी का सवाल है ......कहीं गलती से छिन गयी तो अबकी बार दोबारा मिले ना मिले ...........तो अच्छा है ना अतिथि का खास ख्याल रखा जाये कुछ जनता मरती है तो क्या हुआ ..........जनता वैसे भी इतनी बढ़ चुकी है इसी तरह तो कम होगी .........सरकार को सारे उपाय पता हैं ..........मिडिया अपना काम कर रहा है ........ख़बरों के पीछे दौड़ रहा है जब तक कोई दूसरी खबर नहीं आती और जनता हमेशा की तरह हाय हाय चिल्ला कर दो दिन में चुप बैठ जानी है ............तो क्या कहेंगे इसे एक खबर ही ना........इससे ज्यादा अगर हो तो बेचारी खबर को भी शर्म आ जाये .........खबर का जीवन दो दिन का............एक ने आना है तो दूसरी ने जाना ही है............अब तो यही कहेंगे

खबर को खबर ने बेखबर कर दिया
और खबर का जूनून खबर में सिमट गया

17 टिप्‍पणियां:

  1. खबर बस खबर बन कर रह जाती है उसके साथ हमारी कोई आत्मीयता नहीं, बस सुन लेते हैं और चल देते हैं ...लेकिन जब कोई खबर हम पर असर करती है तब हम उससे सम्बंधित कार्य भी करते हैं लेकिन वास्तविकता में ऐसा हो ही नहीं पाता......!

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  2. बहुत सशक्त ||
    बधाई --
    कुछ पेस्ट भी कर रहा हूँ --

    ट्वेंटी - ट्वेंटी समाचार --


    लेकिन दर्शन-दूर है |

    हरदिन का दस्तूर है --


    मोहन करते माँजी-माँजी, आर एस एस ने लाठी भांजी |

    राहुल मोस्ट वांटेड बेचलर, दिग्गी उनके हाँजी हाँजी |

    महा-घुटाले-बाज तिहाड़ी, फटकारे नित चाबुक काजी |

    कातिल का महिमा-मंडन, जीते जालिम हारी बाजी--


    आदत से मजबूर है |

    हरदिन का दस्तूर है -


    बड़ी शान से अपनी करनी हारर-किलर सुनाता जाये |

    सालों बन्द कोठरी अन्दर बहिना अपनी मौत बुलाएं |

    कहीं बाप के अनाचार का घड़ा फूटने को आये |

    बेटी - नौकर - चाकर सारे फूटी आँख नहीं भाये--


    बनता कातिल क्रूर है |

    हरदिन का दस्तूर है --


    भाई भाई काट रहा , तो कही भीड़ का न्याय है |

    उधर नक्सली रेल उडाता, इधर पुलिस असहाय है |

    कालेधन के भूखेपन पर बाबा गया अघाय है |

    लोकपाल के दल-दल पर दल जुदा-जुदा दस राय है--



    दिल्ली लगती दूर है

    हरदिन का दस्तूर है --


    बड़ी सोनिया सा चल करके छटी-सानिया ने देखा

    हाथ पे उसने अपने पाई तब पाकिस्तानी रेखा |

    सट्टेबाज - खिलाड़ी सबकी लाजवाब लगती एका |

    बेशुमार ताकत से हरदिन बदल रहे रब का लेखा --


    ताकत से मगरूर है |

    हरदिन का दस्तूर है --




    हर-हर बम-बम, बम-बम धम-धम |
    तड-पत हम-हम, हर पल नम-नम ||

    अक्सर गम-गम, थम-थम, अब थम |
    शठ-शम शठ-शम, व्यर्थम - व्यर्थम ||

    दम-ख़म, बम-बम, चट-पट हट तम |
    तन तन हर-दम *समदन सम-सम || *युद्ध

    *करवर पर हम, समरथ सक्षम | *विपत्ति
    अनरथ कर कम, झट-पट भर दम ||

    भकभक जल यम, मरदन मरहम |
    हर-हर बम-बम, हर-हर बम-बम ||



    मरे को दो \, जिन्दा को एक ||
    काल कालका का करे, काका को कन्फर्म,
    आश्रित उनका एक मैं, सरकारी सद्कर्म |

    सरकारी सद्कर्म, नौकरी मैंने पाई ,
    काकी मेरे पास, रहेगी बन कर माई |

    ताजा बम विस्फोट, खड़ा हूँ हक्का-बक्का-
    बप्पा घायल पड़े, लाख का पूरा धक्का ||



    दुश्मनों से बड़ी नरमी
    पकडे गए इन दुश्मनों ने,
    भोज सालों है किया |
    मारे गए उन दुश्मनों की
    लाश को इज्जत दिया ||

    लाश को ताबूत में रख
    पाक को भेजा किये |
    पर शिकायत यह नहीं कि
    आप कुछ बेजा किये ---
    राम-लीला हो रही |
    है सही बिलकुल सही ||

    रेल के घायल कराहें,
    कर्मियों की नजर मैली |
    जेब कितनों की कटी,
    लुट गए असबाब-थैली |

    तृन-मूली रेलमंत्री
    यात्री सब घास-मूली
    संग में जाकर बॉस के
    कर रहे थे अलग रैली |

    राम-लीला हो रही |
    है सही बिलकुल सही ||

    नक्सली हमले में उड़ते
    वाहनों संग पुलिसकर्मी |
    कूड़ा गाडी में ढोवाये,
    व्यवस्था है या बेशर्मी |

    दोस्तों संग दुश्मनी तो
    दुश्मनों से बड़ी नरमी ||
    राम-लीला हो रही |
    है सही बिलकुल सही ||

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  3. खबर बस खबर बन कर रह जाती है..सुन्दर और सटीक लेख...

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  4. वन्दना जी,

    ख़बर का यूँ ख़बर होकर गुजर जाना और फिर किसी ख़बर का इंतजार करते हुए खुद से ही बेखबर लोगों के प्रतीक से सबकी खूब ख़बर ली है आपने।

    विचारोत्तजक लेख के लिए बधाईयाँ।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  5. बहुत सटीक व्यंग्य है.....खबर को सिर्फ खबर ही न रहने दिया आपने.....

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  6. ख ब र के अनिप्रासिक प्रयोग से सटीक आलेख में चार-चाँद लग गये.

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  7. बड़ी खबरें छोटी खबरों को नित्य खा रही हैं।

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  8. खबरों की अच्छी ख़बर ली है आपने।

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  9. जरूरी है वंदना जी। खबर तो लेते ही रहना चाहिए।

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    जीवन का सूत्र...
    NO French Kissing Please!

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  10. बहुत बढ़िया, शानदार और सटीक आलेख!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  11. सच लिखा है आपने ....
    आदमी बिना रीढ़ का होता जा रहा है .....
    हम कहते बहुत कुछ हैं किन्तु करते कुछ भी नहीं ..
    सच्चाई का समर्थन और गलत का विरोध करने का माद्दा शायद अब हममें नहीं रहा , जिसकी आज सख्त जरूरत है |

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आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया