दे्खा है ना
दग्ध सूरज
रोज आस्माँ
के सीने को
जलाता है
अपनी आग
अपना आक्रोश
सब उँडेल देता है
मगर आस्माँ
आज भी वहीं
स्थिर अविचल
समाधिस्थ सा
ध्यानमग्न ख़डा है
जानता है ना
दर्द जब हद से गुजर जाये
तो दवा बन जाता है
और देखो ना
आस्माँ ने उसकी ज्वाला को
अपने मे समाहित कर
उसे सुकून और स्वंय को
कितना विस्तृत किया है
या विशालता और महानता को
किसी कसौटी की जरूरत नही होती
तभी हर दर्द को समाने का हुनर आता है
शायद तभी विशालता के पैमाने नही होतेदग्ध सूरज
रोज आस्माँ
के सीने को
जलाता है
अपनी आग
अपना आक्रोश
सब उँडेल देता है
मगर आस्माँ
आज भी वहीं
स्थिर अविचल
समाधिस्थ सा
ध्यानमग्न ख़डा है
जानता है ना
दर्द जब हद से गुजर जाये
तो दवा बन जाता है
और देखो ना
आस्माँ ने उसकी ज्वाला को
अपने मे समाहित कर
उसे सुकून और स्वंय को
कितना विस्तृत किया है
या विशालता और महानता को
किसी कसौटी की जरूरत नही होती
तभी हर दर्द को समाने का हुनर आता है
विशाल ह्रदय और भाव से लिखी गई कविता !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है ...सही कहा है
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं'दर्द जब हद से गुजर जाये
जवाब देंहटाएंतो दवा बन जाता है '
.....................गहन भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति
सच कहा विशालता के पैमाने नहीं होते ..जो पमानों में नाप जाए वहाँ विशालता नहीं होती
जवाब देंहटाएंbehtar
जवाब देंहटाएंपहले तो आपसे मज़े लेंगी फ़िर जब दुनियां को पता चलेगा तो बन जायेंगी अबला नारी
बहतरीन रूपकों का इस्तेमाल करते हुए आपने बहुत गहरी बात कही है.....बड़ा बाने के लिए सहनशक्ति का होना बहुत ज़रूरी है.....शानदार प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगहन भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत टुकडा , बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (02.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
क्या बात कही है ..विशालता को भला कैसे नापा तौला जा सकता है.
जवाब देंहटाएंऐसी विशालता मानवता को भी कायम रखती है
जवाब देंहटाएंdard jab had se gujar jaaye to dava ban jaata hai.bahut achche bhaavon ko mahsoos karati hui kavita kaabile tareef hai.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति, प्रभावशाली अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंWah! Kaise itna sundar likh letee ho?
जवाब देंहटाएंसूर्य का उदाहरण विशालता का मानक है।
जवाब देंहटाएंकमाल के भाव संजोये हैं...... बहुत उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंgehra bhav darshati kavita
जवाब देंहटाएंविशालता के पैमाने नहीं होते
जवाब देंहटाएंविशाल लोगों के लिए कोई बेगाने नहीं होते
विशालता के कोई पैमाने नहीं होते ...
जवाब देंहटाएंफैले तो पूरा आसमान , सिकुड़े तो सिर्फ एक बूँद !
पैमाने तो होते हैं ,सामर्थ्य नहीं मापने की , अगर कोशिश की भी तो छुद्रता है , विचारों की .... उत्कृष्ट रचना जी / धन्यवाद /
जवाब देंहटाएंnice.
जवाब देंहटाएंसच कहा विशालता के पैमाने नहीं होते...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ||
जवाब देंहटाएंबधाई |
दर्द जब हद से गुजर जाये
जवाब देंहटाएंतो दवा बन जाता है
और देखो ना
आस्माँ ने उसकी ज्वाला को
अपने मे समाहित कर
उसे सुकून और स्वंय को
कितना विस्तृत किया है bahut hi gahnbhav liye sunder abhibyakti,badhaai aapko.
theek to....vishalta ka kahan koi pamana hota hai.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने विशालता के पैमाने नहीं होते.. जब पैमाने में नप सके तो विशालता कहाँ रह जाती है......... प्रभावशाली अभिव्यक्ति..........
जवाब देंहटाएंशब्दो में बांध दिया.. बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं'दर्द जब हद से गुजर जाऐ
जवाब देंहटाएंतो दवा बन जाता है '
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है वन्दना जी ...आपका तो वैसे भी जबाब नही ...
विशालता के पैमाने नहीं होते---आपकी बात से सहमत.
जवाब देंहटाएंसरल सहज भाव से गहरी बात कह दी..
जवाब देंहटाएंआनन्द आया...बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएं