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सोमवार, 4 जुलाई 2011

क्यूँ इतना शोर मचाया है

हमको ना इतना समझ ये आया है
चवन्नी की विदाई का क्यूँ
इतना शोर मचाया है
ये तो दुनिया की रीत है
आने वाला कभी तो जायेगा
फिर ऐसा क्या माजरा हुआ
जैसे किसी आशिक का जनाजा हुआ
शोर ऐसे मचा रहे जैसे
चवन्नी को दिल से लगाकर रखते थे
किसी से पूछो तो सही
चवन्नी का इक सिक्का भी
पास नहीं होगा मगर
चवन्नी चवन्नी गाकर
शोर ऐसे मचाया है जैसे
किसी पूंजीपति ने सारी
पूँजी को इक दिन में गंवाया है
वक्त के साथ हर हवा बदलती है
चवन्नी का वक्त पूरा हुआ तो
इसमें कौन सी नयी रीत बनती है
कोई लेख तो कोई कविता लिख रहा है
जिस चवन्नी को ज़िन्दगी भर ना पूछा
आज उसके लिए दहाड़ें मार रहा है
अरे क्यों मायूस होता है प्यारे
ये तो जग की पुरानी रीत है
आये है सो जायेंगे राजा रंक फकीर
इसमें चवन्नी चली गयी तो
कौन सी बदल गयी तेरी तकदीर
नही मानते तो ऐसा करो
अब चवन्नी की आत्मा की शांति
के लिए हवन पूजन करवाओ
१३ दिन का कम से कम शोक मनाओ
आखिर तुम्हारी जान से प्यारी थी
चाहे आज काम नही आती थी
पर थी तो कभी बडे काम की
अब यही दोहराओगे………
इसलिये प्यारों ……चवन्नी के आशिकों
उसके गम मे कम से कम
एक मज़ार तो बनवाओ
देख चवन्नी को फ़क्र होगा
अपने आशिकों को दुआ देगी
और कभी कभी तुम्हें
स्वप्न मे दर्शन देगी

32 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब कहा आपने भी!
    --
    वाकई में चवन्नी का युग खत्म हो गया मगर इसकी याद न आपके दिलों से गई है और न हमारे दिलों से! तभी तो आपके कण्ठ से बी इसकी धारा फूटकर बह निकली है रचना के रूप में!

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  2. बिलकुल सही कहा है आपने वाकई में चवन्नी का युग तो कई वर्षों से ख़त्म हो गया है....

    इसलिये प्यारों ……चवन्नी के आशिकों
    उसके गम मे कम से कम
    एक मज़ार तो बनवाओ
    देख चवन्नी को फ़क्र होगा
    अपने आशिकों को दुआ देगी
    और कभी कभी तुम्हें
    स्वप्न मे दर्शन देगी..........

    वाह क्या कहना इन पंक्तियों का..........

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  3. :):) ... आखिर आपकी भी कविता आ ही गयी चवन्नी पर ...ज़रा अलग अंदाज़ में :):)
    बहुत बढ़िया ...

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  4. सही बात है..जो आया है उसे जाना भी है.

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  5. बचपन में बड़ा साथ निभाया है इस चवन्नी ने।

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  6. क्या बात है चवन्नी से इतना प्रेम ........सबको एक न दिन जाना ही होता है.....सुन्दर प्रस्तुति.......वंदना जी आजकल आप हमारे ब्लॉग पर नहीं आती हैं.....कोई खता हो गयी है क्या हमसे?

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  7. बचपन की साथी इस चवन्नी ने हमारे कई दुःख दर्द झेले है और मुह में मिठास भी भरी है कैसे भुला दे. अब ब्लोगरों को मीडिया चैनलों के तरह कोई विषय तो चाहिए न लिखने के लिए भले वो चवन्नी सा हो ...

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  8. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566

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  9. उसके गम मे कम से कम
    एक मज़ार तो बनवाओ
    देख चवन्नी को फ़क्र होगा
    अपने आशिकों को दुआ देगी
    और कभी कभी तुम्हें
    स्वप्न मे दर्शन देगी

    बहुत सुंदर ..... जाने बाद कौन याद रखता है...

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  10. aapne bhi chavanni par likh hi daala,hui na chavanni mahatvpoorn.bahut achcha laga padh kar mukurahat aa gai.

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  11. आये है सो जायेंगे राजा रंक फकीर
    इसमें चवन्नी चली गयी तो
    कौन सी बदल गयी तेरी तकदीर
    नही मानते तो ऐसा करो
    अब चवन्नी की आत्मा की शांति
    के लिए हवन पूजन करवाओ
    ....बिलकुल सही कहा है आपने बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....

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  12. करीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  13. दुनिया की रीत बताती ...सुंदर रचना ...

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  14. बहुत सुन्दर और शानदार रचना! सटीक कहा है आपने!

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  15. आये है सो जायेंगे राजा रंक फकीर
    इसमें चवन्नी चली गयी तो
    कौन सी बदल गयी तेरी तकदीर
    नही मानते तो ऐसा करो
    अब चवन्नी की आत्मा की शांति
    के लिए हवन पूजन करवाओ
    वाह ...बहुत ही बढि़या ...

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  16. वाह, वंदना जी,
    बहुत अच्छी व्यंग्य कविता है, अच्छी लगी।

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  17. :)) अच्छी चुटकी है...
    सचमुच काफी हल्ला मचा, जबकि चवन्नी और अठन्नी पहले ही बाज़ार से बिदा हो चुके थे....

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  18. यह भी खूब रही वंदना जी !
    भाई, चवन्नी की मज़ार तो बननी ही चाहिए

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  19. बहुत रोचक प्रस्तुति..बहुत खूब !

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  20. चवन्नी गई अब अठन्नी की बारी.
    करें अगली कविता की ब्लोगर तैयारी.

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  21. हूँ...तो आपको भी याद सता रही है चवन्नी की...इसलियें पूरी कविता ही लिख डाली..बहुत अच्छे...हर चीज से कुछ यादें जुड जाती हैं ऐसा ही चवन्नी के साथ हुआ...


    बेहतरीन...
    वंदना जी आभार...

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  22. चवन्नी का युग समाप्त हो गया पर इसकी कितनी यादें शेष रह गयी ..बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..सादर !!!

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  23. चवन्नी या अठन्नी , कलकत्ता में तो चलती थी . मुझे याद है आठ दस वर्ष पूर्व मित्र आये थे , वे दस - बीस पैसे के सिक्के ले के गए कहते थे हमारे यहाँ नहीं चलते , बच्चों को दिखाऊंगा . वैसे यहाँ तो सब ठहर गया था . खैर दिक्कत तो बम्बई वालों को होगी ," राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के ", या " उसमे एक चवन्नी मेरी थी ...वो भिजवा दो " गाने कैसे होंगे अब ?

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  24. उसके गम मे कम से कम
    एक मज़ार तो बनवाओ
    देख चवन्नी को फ़क्र होगा
    अपने आशिकों को दुआ देगी
    और कभी कभी तुम्हें
    स्वप्न मे दर्शन देगी

    प्रस्ताव तो भेज दिया है ...अब कोई घोटाला न हो यह डर है ...!

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