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शुक्रवार, 3 जून 2011

एक सच और टूट गया

मुझे पता था
जाओगे एक दिन
तुम भी छोड़कर
टूटे हुए मकबरों पर
कौन चराग जलाता है
शायद तभी शाम अब
दिया बाती नहीं करती
जानती है ना कोई नहीं आएगा
बुझे चराग रौशन करने
क्या हुआ जो आज
एक सच और टूट गया
यूँ भी मरे हुए को ही
दुनिया भी मारती है
क्या हुआ जो तुमने भी
ज़ख्मो पर नमक छिड़क दिया
आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है

26 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत कविता...एक नहीं दिशा देरही है आपकी कवितायें...प्रेम का एक औ आयाम

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  2. bahut acchi rachna...

    toote hue makbaron par chiraag kaun jalaata hai....

    aapki kavita me roohaniyat hai....acchi hai....

    jo khud me behosh ho gaya fir koi nasha use hosh me nahi laa sakta...prem ki gahanta ko darshaati ...rachna ...

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  3. यूँ भी मरे हुए को ही
    दुनिया भी मारती है

    हताशा को दर्शाती अभिव्यक्ति

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  4. बहुत खूबसूरत कविता है.

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  5. आखिर कब सिसकती
    शामों को सुबह मिली है

    वाह, बहुत सुन्दर तरीके से आपने दिल के दर्द को शब्द दिए हैं ...

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  6. मार्मिक प्रस्तुति .आभार

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  7. ओह!
    इतनी निराशा भरी रचना!
    --
    हर रात की तारीक़ी,
    लाती है उजाले का पैगाम!
    और चक्र चलता रहता है
    सुख और दुख का!

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  8. विश्वास रखिये, हर सिसकती शाम को सुबह मिलेगी।

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  9. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
    स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)

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  10. एक मार्मिक प्रस्तुति,लेकिन अति सुंदर,धन्यवाद

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  11. इतनी निराशा ...कविता अच्छी है वैसे.

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  12. बहुत ही अच्‍छा लिखा है ... ।

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  13. दर्द भी वही ज्यादा सताता है जहा चोट पहले से होती है , मार्मिक सच उजागर करती पंक्तियाँ

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  14. टूटे हुए मकबरों पर
    कौन चराग जलाता है...

    बहुत मार्मिक प्रस्तुति...दर्द अंतर्मन को भिगो देता है..बहुत सुन्दर..आभार

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  15. यूँ भी मरे हुए को ही
    दुनिया भी मारती है

    सच है.... गहन अभिव्यक्ति

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  16. बहुत भावपूर्ण....कुछ निराश लगी.

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  17. 'आखिर कब सिसकती

    शामों को सुबह मिली है '

    .........वेदना का स्वर बहुत प्रभावी है

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  18. पाठकों की अनुभूतियों के साथ तादात्म्य दर्शाती सुंदर कविता।

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  19. मन के दर्द को सुन्दर रुप से उभारा

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  20. टूटे मकबरों पे कौन चिराग जलाता है.

    बहुत खूबसूरत रचना. जिंदगी के दर्द को समेटे हुए दिल के भाव.

    बहुत खूब.

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  21. बहुत खूबसूरत.....कितना दर्द भर दिया इन पंक्तियों में......शानदार |

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  22. आखिर कब सिसकती
    शामों को सुबह मिली है
    dard se bhara hua hai daaman ,khoob

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