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सोमवार, 30 मई 2011

प्रेम का कैनवस

तुम्हारी ख्वाबों की दुनिया 
का कैनवस कितना
विस्तृत है 
है ना ...........
उसमे प्रेम के 
कितने अगणित रंग
बिखरे पड़े हैं 
कभी तुम मेरे साथ
किसी अन्जान शहर की
अन्जान गलियों में 
विचर रहे होते हो   
तो कभी तुम 
मेरे जूडे में 
फूल लगा रहे होते हो 
कभी तुम किसी 
मंदिर की सीढ़ी पर 
मेरे प्रेम की 
आराधना कर रहे होते हो
तो कभी किसी 
बियावान  में 
अकेले , तन्हा 
मेरी यादों के साथ
भ्रमण कर रहे होते हो
कभी तुम किसी 
गुलमोहर से मेरा 
पता पूछ रहे होते हो
तो कभी किसी
अन्जान स्टेशन पर
मुझसे बिछड़ रहे होते हो
कभी खुद को 
लहूलुहान कर रहे होते हो
तो कभी यादों को
ख्वाबों के दामन से
खुरच रहे होते हो 
कितना विस्तृत है
तुम्हारे प्रेम का कैनवस
कहीं भी तुम 
तन्हा नहीं होते
हमेशा मेरी यादों के साथ
अपनी ख्वाबगाह में 
सैर कर रहे होते हो
फिर कहाँ से 
यादों की परछाइयाँ 
तुम्हें सताएंगी 
वो तो हर पल
तुम्हारे साये में 
स्वयं को 
महफूज़ महसूस 
करती होंगी 
मगर देखो तो
हमारे प्रेम के
कैनवस का
दूसरा पक्ष
ज़रा पलटकर तो देखो 
इस कैनवस को
इसके पीछे 
सिर्फ और सिर्फ 
एक ही रंग है
जानते हो तुम
वो रंग जिस पर
कभी कोई रंग 
चढ़ा ही नहीं 
जो किसी के 
कपोलों पर लग जाये 
तो सुन्दरता 
निखर जाती है
है ना...........
अब देखो मुझे
उस रंग में 
क्या दिखाई देती हूँ ?
नहीं ना ..........
क्यूंकि मेरे प्रेम का कैनवस
सिर्फ मुझमे ही
सिमट कर रह गया है
उसमे तुम्हारा वजूद
न जाने कहाँ खो गया है
जब भी कोई रंग 
भरना चाहा तुमने
कैसे इस रंग में 
सिमट गया 
क्योंकि 
मैंने तो प्रेम का
सिर्फ एक ही रंग जाना है 
प्रेम कब किसका
संपूर्ण हुआ है 
विरहाग्नि की तप्त ज्वाला में
दग्ध प्रेम ही शायद
पूर्ण हुआ है 
इसलिए उसका सिर्फ 
एक ही रंग हुआ है
ख़ामोशी में भीगता
विरह का रंग
इक दूजे में 
एकाकार होता 
सम्पूर्णता को पाता 
प्रेम का रंग 
तन से परे
मन के पार
तुम्हारे और मेरे
ख्वाबों के दामन में सिमटा
सिर्फ वो ही है
हमारे प्रेम का रंग 
क्यों है ना............ 
 

26 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह!
    बहुत ही मखमली रचना प्रस्तुत की है आपने तो आज!
    लगता है कैन्वस के सारे अक्स रचना में ही उभर आये हैं!

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम के भावों से ओत-प्रोत सार्थक रचना.

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  3. vandana,

    bahut dino ke baad tumne kuch aisa likha hai ki man ram gaya hai isme . maine ise baar baar padha aur sach , bahut hi accha laga .

    is kavita ke liye main sirf badhayi nahi de paaunga kyonki ye usse jyada ki haqdaar hai .

    bas yun hio komal komal likha karo .. aapka likhna dekhkar ham bhi seekh jaayenge phir se likhna ..

    dhanywad.
    vijay

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  4. प्रेम को समर्पण से बाहर लाकर विरह में भी प्रेम सम्पन्नता के दर्शन करवा दिए!!

    ला-जवाब!!

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  5. सिर्फ वो ही है

    हमारे प्रेम का रंग ...

    बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. बेहतरीन रचना है.... हमेशा की तरह

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  7. 'प्रेम कब किसका

    सम्पूर्ण हुआ है

    विरहाग्नि की तप्त ज्वाला में

    दग्ध प्रेम ही शायद

    पूर्ण हुआ है '

    ...................कल्पना की भावपूर्ण बुनावट .....वियोग का चरम

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  8. प्रेम का रंग तन से परे
    मन के पार
    तुम्हारे और मेरे
    ख्वाबों के दामन में सिमटा
    सिर्फ वो ही है
    हमारे प्रेम का रंग
    क्यों है ना............

    बहुत सुन्दर........प्रेम का रंग.....
    जिस पर कभी कोई रंग चढ़ा ही नहीं जो किसी के कपोलों पर लग जाये तो सुन्दरता निखर जाती है....है ना......

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  9. तस्वीरों की ज़ुबानी ...प्यार की कहानी.....बहुत खूब....

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  10. तन से परे
    मन के पार
    तुम्हारे और मेरेख्वाबों के दामन में सिमटा
    सिर्फ वो ही है
    हमारे प्रेम का रंग
    क्यों है ना........

    बड़ी ही प्यारी सी रचना

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  11. एक और खूबसूरत कविता .. बहुत सुन्दर.... प्रेम का एक और उदात्त रंग आपके कलाम रूपी कुची से निकली है...

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  12. प्रेम के भावों से ओत-प्रोत सार्थक रचना|धन्यवाद|

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  13. वाह आज तो प्रेम ही प्रेम है वो भी मखमली सा.
    बहुत सुन्दर कविता.

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  14. समर्पित प्रेम की एक उत्कृष्ट भावमयी रचना..आभार

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  15. प्रेम कब किसका संपूर्ण हुआ है
    विरहाग्नि की तप्त ज्वाला में
    दग्ध प्रेम ही शायद पूर्ण हुआ है

    बहुत सुंदर प्रभावित करती पंक्तियाँ.....

    जवाब देंहटाएं
  16. "प्रेम का रंग
    तन से परे
    मन के पार
    तुम्हारे और मेरे
    ख्वाबों के दामन में सिमटा
    सिर्फ वो ही है
    हमारे प्रेम का रंग"


    "प्रेम के हैं रंग हज़ार...
    जिधर भी जाए बस
    रंगीनियाँ ही रंगीनियाँ
    नज़र आयें...!!"

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  17. प्रेम के भावों से ओत-प्रोत बहुत सुन्दर रचना,
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  18. प्रेम का रंग चढा दिया सब पर आपकी इस सुंदर भावमयी प्रस्तुति ने. बहुत बढ़िया.

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  19. मैंने तो प्रेम कासिर्फ एक ही रंग जाना है प्रेम... aur yahi ek rang hai bhi , jisse kai rang nihsrit hote hain

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  20. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति्

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  21. वन्दना जी 10 मई तक की रचनाएं आज पढी हैं । आपकी भाव-भूमि गहन व विस्तृत है । चकित हूँ कि आप सृजन में इतनी सक्रिय हैं । इसे बनाए रखें ।
    इक्कीसवीं सदी की दहेज-कथाएं -संग्रह इन्टरनेट पर है यह यहीं पता चला है । िसमें मेरी भी एक कहानी है--निरर्थक । कृपया उसे भी पढें ।

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