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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

'कहीं तुम वही तो नहीं हो जाना '

वो जोगी
अलख जगाता रहा
पूजन अर्चन वंदन
करता रहा
तप की अग्नि में
खुद की आहुति 
देता रहा
देवी दर्शन की
चाह में
लहू से अपने
तिलक लगाता रहा
चौखट पर देवी की
'स्व' को भस्मीभूत
करता रहा 
कठोर व्रत नियम 
करता रहा
और इक दिन
हो गयी
प्रसन्न देवी
दिए दर्शन
कहा ------
"माँग वरदान "
जोगी को 
नव जीवन मिला
वर्षों के तप का
फल मिला 
देवी को देख
स्व को भूल गया
जोगी के हर्ष का
ना पारावार रहा 
हर्षातिरेक में 
भिक्षा ऐसी 
माँग बैठा 
जीवन ही अपना
गँवा बैठा
भिक्षा में देवी से
'मोहब्बत'
मांग बैठा
और जन्मों की 
तपस्या को 
पल में 
जन्मों के लिए
गँवा बैठा
'तथास्तु' कह 
देवी अंतर्धान 
हो गयी
और अब 
ढूँढता फिरता है
मोहब्बत को
अर्धविक्षिप्त सा 
'कहीं तुम वही तो नहीं हो जाना '

34 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम किसी तपस्या से ऊपर है.. परे है.. बस इतना कह सकता हूँ..

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  2. वंदना जी,

    वाह.....कमाल कर दिया इस बार तो......बहुत ही सुन्दर पोस्ट....सच बहुत पसंद आई|

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  3. मन में जो सवार हो उसी में रम जाने दो उसको। छेड़ो मत उसे, उसे उसी रास्ते जाने दो।

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  4. pyaar........sunte hi ek lahar si uthti hai aur poora shareer pyaar mein tabdil, phir kuch kahne ko nahi

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  5. आशीर्वाद स्वरुप मिल जाए प्रेम पर फिर भी उस तक पहुंचना तो स्वयं ही है...

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  6. लाज़वाब..क्या भावपूर्ण कल्पना है. बहुत सुन्दर

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  7. बेहद खूबसूरत अंदाज में प्रेम की अभिव्यक्ति।

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  8. वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगत है आपकी इस अभिव्‍यक्ति में ...।

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  9. सशक्त रचना.बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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  10. भावनाओं और कामनाओं को बहुत अच्छे ढंग से बाँधा है आपने इस रचना में!

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  11. वंदना. ..... क्या खूब पहचाना......
    जिनके होंठो पे हंसी, पाँव में छाले होंगे

    हाँ वही लोग तेरे चाहने वाले होंगे....

    मेरे प्यार को तथास्तु और मुहब्बत को आशीर्वाद के लिए...क्रम आपका. ...... और ...और ...और...अब ये आशीर्वाद भी दे दो...

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  12. इस मांगने वाली बात के पक्ष में हम तो नहीं हैं ।
    जैसी करनी वैसी भरनी ।

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  13. मन हर्षित कर गई आपकी ये रचना आदरणीय वंदना दी. आपकी रचना कभी-कभी तो दिल पर इतना असर कर जाती है कि मत पूछिए.. ! वाकई बेहद उम्दा रचना. बधाई और आभार वंदना दी.

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  14. मर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  15. बहुत खुबसुरत रचना जी, धन्यवाद
    एक नजर इधर भी.http://blogparivaar.blogspot.com/

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  16. और अब
    ढूँढता फिरता है
    मोहब्बत को...
    :-) sunder!

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  17. देवी से मुहब्बत की भीख मांग बैठा ...
    और फिर अपनी सुध बुध भूल बैठा ...
    गज़ब !

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  18. इससे अच्छी चीज और क्या मांग सकता था जोगी...प्रेम मांग उसने तो सर्वस्व मांग लिया...जीवन मांग लिया..

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  19. एक अनूठी -
    बहुत सुंदर रचना -
    प्रेम में डूबा हो तो उबर कैसे सकता है -

    wish u a very happy new yr-2011

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  20. एक अनूठी -
    बहुत सुंदर रचना -
    प्रेम में डूबा हो तो उबर कैसे सकता है -

    जवाब देंहटाएं
  21. सुन्दर और बेहतरीन रचना,सार्थक प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  22. आदरणीया वंदना जी
    नमस्कार !

    ना मांगे ये सोना चांदी, मांगे दर्शन देवी तेरे द्वार खड़ा इक जोगी …
    बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने , बधाई !
    भिक्षा में देवी से
    'मोहब्बत'
    मांग बैठा
    और जन्मों की
    तपस्या को
    पल में
    जन्मों के लिए
    गँवा बैठा


    प्यार गुनाह तो नहीं … ! लेकिन देवी ने वरदान दे'कर भी तड़पाया यह तो सरासर ज़्यादती है ।
    मैं इसका विरोध करता हूं … :)
    देवी से इल्तिज़ा है, वादा किया था तो निभाना चाहिये था … … …


    ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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