वो जोगी
अलख जगाता रहा
पूजन अर्चन वंदन
करता रहा
तप की अग्नि में
खुद की आहुति
देता रहा
देवी दर्शन की
चाह में
लहू से अपने
तिलक लगाता रहा
चौखट पर देवी की
'स्व' को भस्मीभूत
करता रहा
कठोर व्रत नियम
करता रहा
और इक दिन
हो गयी
प्रसन्न देवी
दिए दर्शन
कहा ------
"माँग वरदान "
जोगी को
नव जीवन मिला
वर्षों के तप का
फल मिला
देवी को देख
स्व को भूल गया
जोगी के हर्ष का
ना पारावार रहा
हर्षातिरेक में
भिक्षा ऐसी
माँग बैठा
जीवन ही अपना
गँवा बैठा
भिक्षा में देवी से
'मोहब्बत'
मांग बैठा
और जन्मों की
तपस्या को
पल में
जन्मों के लिए
गँवा बैठा
'तथास्तु' कह
देवी अंतर्धान
हो गयी
और अब
ढूँढता फिरता है
मोहब्बत को
अर्धविक्षिप्त सा
'कहीं तुम वही तो नहीं हो जाना '
bahut bhawpurn aur khoobsurat likhti hain aap.
जवाब देंहटाएंप्रेम किसी तपस्या से ऊपर है.. परे है.. बस इतना कह सकता हूँ..
जवाब देंहटाएंkya baat hai vandana ji....bahut kuchh seekhne se milta hai aapse.!
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंवाह.....कमाल कर दिया इस बार तो......बहुत ही सुन्दर पोस्ट....सच बहुत पसंद आई|
मन में जो सवार हो उसी में रम जाने दो उसको। छेड़ो मत उसे, उसे उसी रास्ते जाने दो।
जवाब देंहटाएंpyaar........sunte hi ek lahar si uthti hai aur poora shareer pyaar mein tabdil, phir kuch kahne ko nahi
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद स्वरुप मिल जाए प्रेम पर फिर भी उस तक पहुंचना तो स्वयं ही है...
जवाब देंहटाएंलाज़वाब..क्या भावपूर्ण कल्पना है. बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अंदाज में प्रेम की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगत है आपकी इस अभिव्यक्ति में ...।
जवाब देंहटाएं.......??
जवाब देंहटाएंA soully creation. Excellent.
जवाब देंहटाएंसशक्त रचना.बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवंदना जी, बहुत प्यारी रचना है।
जवाब देंहटाएं---------
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
भावनाओं और कामनाओं को बहुत अच्छे ढंग से बाँधा है आपने इस रचना में!
जवाब देंहटाएंवंदना. ..... क्या खूब पहचाना......
जवाब देंहटाएंजिनके होंठो पे हंसी, पाँव में छाले होंगे
हाँ वही लोग तेरे चाहने वाले होंगे....
मेरे प्यार को तथास्तु और मुहब्बत को आशीर्वाद के लिए...क्रम आपका. ...... और ...और ...और...अब ये आशीर्वाद भी दे दो...
इस मांगने वाली बात के पक्ष में हम तो नहीं हैं ।
जवाब देंहटाएंजैसी करनी वैसी भरनी ।
... kyaa baat hai .... man ke saagar se nikalaa moti !!!
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंkya baat hai vandana ji...bhut hi sundar.........mohabbat ki ek nayi paribhasa hai ye....
जवाब देंहटाएं*काव्य-कल्पना*
उत्तम!
जवाब देंहटाएंrealy nice
जवाब देंहटाएंkash usne muhobbat ki jagah maut maangi hoti...acchhi rachna.
जवाब देंहटाएंमन हर्षित कर गई आपकी ये रचना आदरणीय वंदना दी. आपकी रचना कभी-कभी तो दिल पर इतना असर कर जाती है कि मत पूछिए.. ! वाकई बेहद उम्दा रचना. बधाई और आभार वंदना दी.
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
बहुत खुबसुरत रचना जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंएक नजर इधर भी.http://blogparivaar.blogspot.com/
अच्छी लगी यह रचना।
जवाब देंहटाएंऔर अब
जवाब देंहटाएंढूँढता फिरता है
मोहब्बत को...
:-) sunder!
देवी से मुहब्बत की भीख मांग बैठा ...
जवाब देंहटाएंऔर फिर अपनी सुध बुध भूल बैठा ...
गज़ब !
इससे अच्छी चीज और क्या मांग सकता था जोगी...प्रेम मांग उसने तो सर्वस्व मांग लिया...जीवन मांग लिया..
जवाब देंहटाएंएक अनूठी -
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना -
प्रेम में डूबा हो तो उबर कैसे सकता है -
wish u a very happy new yr-2011
एक अनूठी -
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना -
प्रेम में डूबा हो तो उबर कैसे सकता है -
सुन्दर और बेहतरीन रचना,सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआदरणीया वंदना जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
ना मांगे ये सोना चांदी, मांगे दर्शन देवी तेरे द्वार खड़ा इक जोगी …
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने , बधाई !
भिक्षा में देवी से
'मोहब्बत'
मांग बैठा
और जन्मों की
तपस्या को
पल में
जन्मों के लिए
गँवा बैठा
प्यार गुनाह तो नहीं … ! लेकिन देवी ने वरदान दे'कर भी तड़पाया यह तो सरासर ज़्यादती है ।
मैं इसका विरोध करता हूं … :)
देवी से इल्तिज़ा है, वादा किया था तो निभाना चाहिये था … … …
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार