दस्तक दी मेरे दरवाज़े पर
ना जाने किसने राह दिखाई
कैसे खबर हुई ,किसने पता बताया
गुमनाम पता कौन ढूँढ लाया
क्या तुम जानते थे मैं कहाँ हूँ ?
मुद्दत बाद देखा है तुम्हें
इक अरसा हुआ देखे हुए
लगा जैसे सदियाँ बह गयी हों
सिर्फ एक लम्हे में
कहो ना ............
कैसे जाना मैं कहाँ हूँ ?
क्या करोगी जानकर
ये दिल के सौदे होते हैं
तुम्हारे लिए मैं सिर्फ
एक ख्याल रहा
हवाओं में तैरता हुआ
फिर कैसे जानोगी
दिल के उफनते लावे को
क्या क्या बह रहा है
तुम्हारे साथ तुम्हारे बिन
मैं पता किससे पूछता
तुमने कब बताया था
ये तो हवाओं ने ही
मुझे तुमसे मिलवाया है
और पाँव खुद-ब-खुद
तुम्हारे शहर में ले आये हैं
आखिर दिल के मोड़ों पर मुद्दत बाद देखा है तुम्हें
इक अरसा हुआ देखे हुए
लगा जैसे सदियाँ बह गयी हों
सिर्फ एक लम्हे में
कहो ना ............
कैसे जाना मैं कहाँ हूँ ?
क्या करोगी जानकर
ये दिल के सौदे होते हैं
तुम्हारे लिए मैं सिर्फ
एक ख्याल रहा
हवाओं में तैरता हुआ
फिर कैसे जानोगी
दिल के उफनते लावे को
क्या क्या बह रहा है
तुम्हारे साथ तुम्हारे बिन
मैं पता किससे पूछता
तुमने कब बताया था
ये तो हवाओं ने ही
मुझे तुमसे मिलवाया है
और पाँव खुद-ब-खुद
तुम्हारे शहर में ले आये हैं
तुम्हारा ही तो नाम लिखा है
आज कह लो सब
सुन रही हूँ
वो दरिया जो सिकुड़ गया था
तुम्हारी उदासियों में
और वो जो दिल की मिटटी पर
ख्यालों का लेप तुमने लगाया था
जब मैंने अपनी कसम में तुम्हें
और तुम्हारे अरमानों को जिंदा लिटाया था
उन सभी तुम्हारे अनकहे जज्बातों को
शायद आज समझी हूँ
उम्र के उस मोड़ को
जो पीछे छोड़ आई हूँ
आज पकड़ने की ख्वाहिश जन्म ले रही है
कहो आज दिल की दास्ताँ ..............
और तुम्हारे अरमानों को जिंदा लिटाया था
उन सभी तुम्हारे अनकहे जज्बातों को
शायद आज समझी हूँ
उम्र के उस मोड़ को
जो पीछे छोड़ आई हूँ
आज पकड़ने की ख्वाहिश जन्म ले रही है
कहो आज दिल की दास्ताँ ..............
तुम क्या जानो
प्रेम डगर की सूक्ष्मता
कैसे तुम्हारे बिना पलों ने मुझे बींधा है
देखो
मेरे दिल का हर तागा
कैसे ज़ख़्मी हुआ है
जैसे अर्जुन ने शर- शैया पर भीष्म को बींधा हो
और वो तब भी हँस रहा हो
आखिर ज़ख्म भी तो मोहब्बत ने दिया है
तुम्हारे बिना जीया ही कब था
ये तो एक लाश ने वक्त को
कफ़न में लपेटा हुआ था
शायद कभी कफ़न चेहरे से हट जाये
शायद कभी दीदार तेरा हो जाये
शायद कभी जिसे तुमने नेस्तनाबूद किया
वो बीज एक बार फिर उग जाए
प्रेम का तुम्हें भी कभी कोई लम्हा चुभ जाये
तुम भी शायद कभी मुझे आवाज़ दो
वैसे ही तड़पो
जैसे कोई चकवी चकोर को तरस रही हो
मगर तुमने ना आवाज़ दी
न तड्पी मेरे लिए
तुम तो वो जोगिन बन गयीं
कफ़न में लपेटा हुआ था
शायद कभी कफ़न चेहरे से हट जाये
शायद कभी दीदार तेरा हो जाये
शायद कभी जिसे तुमने नेस्तनाबूद किया
वो बीज एक बार फिर उग जाए
प्रेम का तुम्हें भी कभी कोई लम्हा चुभ जाये
तुम भी शायद कभी मुझे आवाज़ दो
वैसे ही तड़पो
जैसे कोई चकवी चकोर को तरस रही हो
मगर तुमने ना आवाज़ दी
न तड्पी मेरे लिए
तुम तो वो जोगिन बन गयीं
जिसे श्याम सिर्फ सपनो में मिलता है
प्रेम की अनंत ऋचाएं
और तुम उसकी परिणति
सिर्फ अँधेरे कोनो में ही
समेट लेना चाहती थीं
पता है तुम्हें
जब भी तुम सिसकती थीं
वो आह जब मुझ तक पहुँचती थी
प्रेम की अनंत ऋचाएं
और तुम उसकी परिणति
सिर्फ अँधेरे कोनो में ही
समेट लेना चाहती थीं
पता है तुम्हें
जब भी तुम सिसकती थीं
वो आह जब मुझ तक पहुँचती थी
देखना चाहती हो क्या होता था
देखो ...
देख रही हो ना
ये जलता हुआ निशान
ये उसी सिसकी की निशानी है मेरे सीने पर
देखो कितने निशाँ हैं तुम्हारी चाहत के
क्या गिन पाओगी इन्हें ...
देखो तो
अब तक हरे हैं ...
उफ़ !
ज़िन्दगी ना मैं जी पायी हूँ
ना तुमने कभी करवट ली
जानती हूँ
मगर देर हो गयी न
तुम और तुम्हारी दुनिया
मैं और मेरी दुनिया
अपना अपना संसार
दो ध्रुव ज़िन्दगी के
कभी देखा है ध्रुवों को
एकाकार होते हुए
अरे क्या कह रही हो
कब और कैसे ध्रुवीकरण कर दिया तुमने
मैं तो आज भी तुम्हें खुद में समाहित पाता हूँ
जब खुद से भटक जाता हूँ
तुममे खुद को पाता हूँ
जब भी तुम्हारी
याद की ओढनी ओढ़कर
चाहत चली आई
तारों की मखमली चादर मैंने बिछायी
उस पर तुम्हारी याद की सेज सजाई
कहो फिर कैसे कहती हो
जुदा हैं हम
क्या नहीं जानतीं
चाहतों का सुहाग अमर होता है
चलो आओ आज फिर
एक नयी शुरुआत करें
जो छूट गया था
कुछ तुममे और कुछ मुझमे
कुछ तुम्हारा और कुछ मेरा
वो सामान तलाश करें
जो चाहत परवान ना चढ़ी
जो दुनिया के अरमानो पर जिंदा दफ़न हुयी
चलो आओं आज उसी चाहत को
अपने दिल के आँगन में एक साथ उगायें
आखिर बरसों की जुदाई के
तप में कुछ तो तपिश होगी
कुछ तो अंकुर होंगे
जो अभी बचे होंगे
जिन्हें अभी नेह के मेह की तलाश होगी
कुछ फूल तो जरूर खिलेंगे...है ना
वक्त की दहलीज पर
तेरा मेरा मिलना
ज्यूँ संगम किसी क्षितिज का होना
तुम और मैं
आज मोहब्बत को नया आयाम दें
तुम्हारे लरजते अधर
आमंत्रण देते नयन बाण
ये उठती गिरती पलकें
दिल की धडकनों का
पटरी पर दौड़ती रेल की
आवाज़ सा स्पंदन
देखो ...
देख रही हो ना
ये जलता हुआ निशान
ये उसी सिसकी की निशानी है मेरे सीने पर
देखो कितने निशाँ हैं तुम्हारी चाहत के
क्या गिन पाओगी इन्हें ...
देखो तो
अब तक हरे हैं ...
उफ़ !
ज़िन्दगी ना मैं जी पायी हूँ
ना तुमने कभी करवट ली
जानती हूँ
मगर देर हो गयी न
तुम और तुम्हारी दुनिया
मैं और मेरी दुनिया
अपना अपना संसार
दो ध्रुव ज़िन्दगी के
कभी देखा है ध्रुवों को
एकाकार होते हुए
अरे क्या कह रही हो
कब और कैसे ध्रुवीकरण कर दिया तुमने
मैं तो आज भी तुम्हें खुद में समाहित पाता हूँ
जब खुद से भटक जाता हूँ
तुममे खुद को पाता हूँ
जब भी तुम्हारी
याद की ओढनी ओढ़कर
चाहत चली आई
तारों की मखमली चादर मैंने बिछायी
उस पर तुम्हारी याद की सेज सजाई
कहो फिर कैसे कहती हो
जुदा हैं हम
क्या नहीं जानतीं
चाहतों का सुहाग अमर होता है
चलो आओ आज फिर
एक नयी शुरुआत करें
जो छूट गया था
कुछ तुममे और कुछ मुझमे
कुछ तुम्हारा और कुछ मेरा
वो सामान तलाश करें
जो चाहत परवान ना चढ़ी
जो दुनिया के अरमानो पर जिंदा दफ़न हुयी
चलो आओं आज उसी चाहत को
अपने दिल के आँगन में एक साथ उगायें
आखिर बरसों की जुदाई के
तप में कुछ तो तपिश होगी
कुछ तो अंकुर होंगे
जो अभी बचे होंगे
जिन्हें अभी नेह के मेह की तलाश होगी
कुछ फूल तो जरूर खिलेंगे...है ना
वक्त की दहलीज पर
तेरा मेरा मिलना
ज्यूँ संगम किसी क्षितिज का होना
तुम और मैं
आज मोहब्बत को नया आयाम दें
तुम्हारे लरजते अधर
आमंत्रण देते नयन बाण
ये उठती गिरती पलकें
दिल की धडकनों का
पटरी पर दौड़ती रेल की
आवाज़ सा स्पंदन
हया की लालिमा
सांझ की लालिमा को भी शर्मसार करती हुई
मुझे बेकाबू कर रही है
मैं भीग रहा हूँ
तुम्हारे नेह की धारा में
अब होश कैसे रखूँ
देखो ना ...
मेरी आँखों में तैरते गुलाबी डोरों को
क्या इनमे तुम्हें
एक तूफ़ान नज़र नहीं आता
बताओ तो
कहाँ जाऊँ अब?
कैसे सागर की प्यास बुझाऊँ ?
अधरामृत की मदिरा में कैसे रसपान करूँ ?
कुछ तो कहो ना ..
तुम तो यूँ
सकुचाई शरमाई
इक अलसाई सी अंगडाई लग रही हो
क्या तुम्हें मेरे प्रेम की तपिश
नेह निमंत्रण नहीं दे रही
कैसे इतना सहती हो ?
मैं झुलस रहा हूँ
तुम्हारा मौन और झुलसा रहा है
अरे रे रे ...
ये क्या सोचने लगीं
सांझ की लालिमा को भी शर्मसार करती हुई
मुझे बेकाबू कर रही है
मैं भीग रहा हूँ
तुम्हारे नेह की धारा में
अब होश कैसे रखूँ
देखो ना ...
मेरी आँखों में तैरते गुलाबी डोरों को
क्या इनमे तुम्हें
एक तूफ़ान नज़र नहीं आता
बताओ तो
कहाँ जाऊँ अब?
कैसे सागर की प्यास बुझाऊँ ?
अधरामृत की मदिरा में कैसे रसपान करूँ ?
कुछ तो कहो ना ..
तुम तो यूँ
सकुचाई शरमाई
इक अलसाई सी अंगडाई लग रही हो
क्या तुम्हें मेरे प्रेम की तपिश
नेह निमंत्रण नहीं दे रही
कैसे इतना सहती हो ?
मैं झुलस रहा हूँ
तुम्हारा मौन और झुलसा रहा है
अरे रे रे ...
ये क्या सोचने लगीं
देखो ये वासनात्मक राग नहीं है
ये तो प्रेम की उद्दात तरंगो पर बहता अनुराग है
ये तो प्रेम की उद्दात तरंगो पर बहता अनुराग है
तुम इसे कोई दूसरा अर्थ ना देना
जानती हो ना
जानती हो ना
प्रेम के पंछी तो सिर्फ तरंगों में बहते हैं
वहाँ वासना दूर कोने में खडी सुबकती है
ये प्रेमानुभूति तो सिर्फ
रूहों के स्पंदन की नैसर्गिक क्रिया है
जानती हूँ ...
रूहें भटक रही हैं
मगर तब भी इम्तिहान अभी बाकी है
बेशक तुम्हारे संग
मैंने भी ख्वाबों की चादर लपेटी है
जहाँ तुम , तुम्हारी सांसें
तुम्हारे बाहुपाश में बंधा मेरा अक्स
जैसे कोई मुसाफिर
राह के सतरंगी सपने में
एक टूटा तारा सहेज रहा हो
जैसे कोई दरवेश
खुदा से मिल रहा हो
जैसे खुदा खुद आज
आसमां में मोतियों की झालर टांग रहा हो
है ना ....यही अहसास !
मगर फिर भी
ना तुम ना मैं
अभी अपने किनारों से अलग हुए हैं
फिर कहो कैसे बाँध तोड़ोगे ?
क्या भावनाएं बाँधों से बड़ी हो गयीं
या हमारी पाक़ मोहब्बत छोटी हो गयी
मोहब्बत ने तो कभी
रुसवा नहीं किया किरदारों को
फिर तुम कैसे झुलस गए अंगारों पर
माना ...मोहब्बत है
इम्तिहान भी तो यही है
जब तुम हो और मैं हूँ
दिल भी है धड़कन भी है
अरमान भी मचल रहे हैं
मगर यूँ
सरे बाज़ार बेआबरू नहीं होती मोहब्बत
किसी एक चाहत की लाश पर नहीं सोती मोहब्बत
तो फिर तुम ही कहो क्या करें
कैसे अब के मिले
फिर कभी ना बिछडें
अब दूरियां नहीं सही जातीं
जानता हूँ ...
हालात इक तरफा नहीं
जो तूफ़ान यहाँ ठहरा है
उसी में तुम भी घिरी हो
अपनी मर्यादा की दहलीज पर
मगर अब तो कोई हल ढूंढना होगा
मोहब्बत को मुकाम देना होगा
जो कल ना मिला
वो सब आज हासिल करना होगा
बहुत हुआ
जी लिए बहुत ज़माने के लिए
चलो अब कुछ पल
खुद के लिए भी जी लें
जो अरमान राख़ बन चुके थे
उन्हें ज़िन्दा कर लें
मगर कैसे?
क्या बता सकोगे ?
वहाँ वासना दूर कोने में खडी सुबकती है
ये प्रेमानुभूति तो सिर्फ
रूहों के स्पंदन की नैसर्गिक क्रिया है
जानती हूँ ...
रूहें भटक रही हैं
मगर तब भी इम्तिहान अभी बाकी है
बेशक तुम्हारे संग
मैंने भी ख्वाबों की चादर लपेटी है
जहाँ तुम , तुम्हारी सांसें
तुम्हारे बाहुपाश में बंधा मेरा अक्स
जैसे कोई मुसाफिर
राह के सतरंगी सपने में
एक टूटा तारा सहेज रहा हो
जैसे कोई दरवेश
खुदा से मिल रहा हो
जैसे खुदा खुद आज
आसमां में मोतियों की झालर टांग रहा हो
है ना ....यही अहसास !
मगर फिर भी
ना तुम ना मैं
अभी अपने किनारों से अलग हुए हैं
फिर कहो कैसे बाँध तोड़ोगे ?
क्या भावनाएं बाँधों से बड़ी हो गयीं
या हमारी पाक़ मोहब्बत छोटी हो गयी
मोहब्बत ने तो कभी
रुसवा नहीं किया किरदारों को
फिर तुम कैसे झुलस गए अंगारों पर
माना ...मोहब्बत है
इम्तिहान भी तो यही है
जब तुम हो और मैं हूँ
दिल भी है धड़कन भी है
अरमान भी मचल रहे हैं
मगर यूँ
सरे बाज़ार बेआबरू नहीं होती मोहब्बत
किसी एक चाहत की लाश पर नहीं सोती मोहब्बत
तो फिर तुम ही कहो क्या करें
कैसे अब के मिले
फिर कभी ना बिछडें
अब दूरियां नहीं सही जातीं
जानता हूँ ...
हालात इक तरफा नहीं
जो तूफ़ान यहाँ ठहरा है
उसी में तुम भी घिरी हो
अपनी मर्यादा की दहलीज पर
मगर अब तो कोई हल ढूंढना होगा
मोहब्बत को मुकाम देना होगा
जो कल ना मिला
वो सब आज हासिल करना होगा
बहुत हुआ
जी लिए बहुत ज़माने के लिए
चलो अब कुछ पल
खुद के लिए भी जी लें
जो अरमान राख़ बन चुके थे
उन्हें ज़िन्दा कर लें
मगर कैसे?
क्या बता सकोगे ?
कैसे जहाँ से बचोगे
जो दुनिया
गोपी कृष्ण भाव को ना जान पाई
वहाँ भी जिसने तोहमत लगायी
वो क्या प्रेम की दिव्यता जान पायेगी
तुम्हारे और मेरे
प्रेम को कसौटी की
चिता पर ना सुलायेगी
जहाँ जिस्म नहीं आत्माएं सुलगेंगी
वहाँ प्रेम की सुगंध नहीं बिखरेगी
दुनिया की नृशंसता नर्तन करेगी
वो तो इसे जिस्मानी प्रेम ही समझेगी
ऐसे मे
क्या दुनिया को समझा सकोगे?जो दुनिया
गोपी कृष्ण भाव को ना जान पाई
वहाँ भी जिसने तोहमत लगायी
वो क्या प्रेम की दिव्यता जान पायेगी
तुम्हारे और मेरे
प्रेम को कसौटी की
चिता पर ना सुलायेगी
जहाँ जिस्म नहीं आत्माएं सुलगेंगी
वहाँ प्रेम की सुगंध नहीं बिखरेगी
दुनिया की नृशंसता नर्तन करेगी
वो तो इसे जिस्मानी प्रेम ही समझेगी
ऐसे मे
मोहब्बत की पाक़ तस्वीर दिखा सकोगे?
क्या दुनिया समझ सकेगी?
क्या फिर से मोहब्बत दीवारों में ना चिनेगी ?
तो बताओ तुम ही क्या करूँ मैं
अब नहीं जी सकता
एक बार खो चुका हूँ
अब फिर से नहीं खो सकता
वो तो अब मैं भी
इतनी आगे आ चुकी हूँ
वापस जा नहीं सकती
तुमसे खुद को जुदा कर नहीं सकती
तुम्हारे बिन इक पल अब
फिर से जी नहीं सकती
तो फिर आओ
आज निर्णय करना होगा
क्या मेरा साथ दोगी उसमे
आज मोहब्बत तेरा इम्तिहान लेगी
क्या दे सकोगी ?
तुम कहो तो सही
यहाँ ज़िन्दा रहकर मिल नहीं सकते
और काँटों की सेज पर
फिर से सो नहीं सकते
तो क्यूँ ना ऐसा करें
.......................
हाँ हाँ कहो ना
......................
तुम जानते हो
क्या कहना चाहती हूँ
ये तो जिस्मों की बंदिशें हैं
रूहें तो आज़ाद हैं
हाँ सही कह रही हो
मेरा तो हर कदम
तेरी रहनुमाई के सदके देता है
तेरे साथ जी ना सके
गम नहीं
रूह की आवाज़ पर भी थिरकता है
तो फिर आओ
चलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ..............
पूरी कविता मन के अंतर में चल रहे भावों को अभिव्यक्ति देती है और अंत में एक ऐसे जहां...
जवाब देंहटाएंचलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ..............
की सार्थक कल्पना करती है ...शुक्रिया
ओह इतनी लंबी कविता...खैर पढ़ लिया...अच्छी लगी...और हाँ, २००वीं पोस्ट की बधाई... :)
जवाब देंहटाएंवंदना.......ये कविता है या ......आप ने मेरी हालत बयान करी है.....मै इसी दौर से गुजर रहा हूँ......प्यार है..लेकिन कह नहीं सकता, इंतज़ार है...लेकिन कह नहीं सकता....एक बार कोशिश कि......तो लगा जैसे मकान- मालिक ने मकान खाली नहीं है.......कह कर पला झाड़ लिया.......
जवाब देंहटाएंअब बताओ क्या करूँ.........इसी मुहब्बत कि आग मे जलना है......चुपचाप ........कुछ अपनी भी तो बताओ...मेरी हालत तो बयाँ कर दी...तुमने....
२०० वी पोस्ट पर बधाई........
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंभावना प्रधान सुन्दर प्रेमपरक रचना.
कविता लम्बी ज़ियादा हो गई है.
२०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई.
जब हवाओं ने प्रेम के वाहक बनने का निश्चय कर ही लिया है, सम्मलित प्रेम तरंगें उस भाव को घनीभूत कर सबके घर दे आयेंगी।
जवाब देंहटाएंbehad sundar rachna
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो २००वीं पोस्ट पर आपको हार्दिक बधाई......पोस्ट बहुत अच्छी लगी......पर मुझे लगा लम्बाई कुछ ज्यादा ही हो गयी.......पर संवाद रूपी ये पोस्ट कुछ हट कर थी.......आपको और आपके परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें|
bahut achhi kavita...200vee post ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंदो सौ वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई...कविता लंबी होने के बावजूद अंत तक बांधे रखती है और ये आपकी लेखन शक्ति का कमाल है...लिखती रहें.
जवाब देंहटाएंनीरज
सबसे पहले तो 200वीं पोस्ट के लिये बधाई ...इतने सारे शब्दों का संगम
जवाब देंहटाएंउस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये .......
लाजवाब कर दिया आपने ..बधाई ।
एक नजर यहां भी डालें वटवृक्ष पर ....
http://urvija.parikalpnaa.com/2010/12/blog-post_29.html
२०० वीं पोस्ट के लिए बधाई ...
जवाब देंहटाएंसंवाद रुपी कविता प्रेम की गहन अनुभूति लिए हुए है ...लग रहा था की कोई खंड काव्य पढ़ रही हूँ :):)
अच्छी प्रस्तुति
sabse pahle to 200 th post ke liye badhayi....
जवाब देंहटाएंkaviat ke baare me kuch sochkar likhna honga .. itni acchi kavita ko sirf waah waah kah kar badhayi nahi di jaa sakti ..
phir aata hon
vijay
क्या कहू वंदना जी...बहुत ही सुंदर....बहुत ही प्यारा.....कही खो गया मै.....
जवाब देंहटाएं*काव्य-कल्पना*
२००वीं पोस्ट पर आपको हार्दिक बधाई..बहुत अच्छी लगी कविता.
जवाब देंहटाएंकविता की इस यात्रा में २०० वी पोस्ट होना एक मील के पत्थर के सामान है.. कविता एक नदी होती है और काव्य यात्रा नदी के मुकाम की तरह होती हैं.. जैसे जैसे नदी बढ़ती है ... नई सभ्यताएं पनपती है उसके तट पर.. संस्कृतियाँ पोषित होती हैं... काव्य यात्रा में भी कमोबेश ऐसा ही होता है.. भाव की यात्रा में नए विचार, नए विम्ब, भाषा के प्रयोग.. नए प्रतिमान गढ़ते हैं... वंदना जी को पछले एक वर्ष से पढ़ रहा हूँ.. निरंतरता, भावों का प्रवाह, शब्दों के प्रयोग उनकी कविता में झलकती हैं और हर नई कविता के साथ वो अधिक परिपक्व हुई हैं.. स्वयं को ब्लॉग जगत में स्थापित किया है... आज की कविता भी एक नदी की तरह ही लगी है.. जैसे नदी में विभिन्न धाराएँ, उपनदियाँ आकार मिलती हैं.. संगम बनाती हैं.. नदी को समृद्ध करती हैं.. इस कविता में भी प्रेम के कई रूप , कई तरंग.. धारा के रूप में कविता के मूल को समृद्ध करती हैं.. पूरी लम्बाई में कविता कई आयामों को छूटी हुई आगे बढती है...
जवाब देंहटाएंवंदना जी आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामना...
बहुत ही अच्छी कविता जो कहीं न कहीं हमें भी अभिव्यक्ति देती है.
जवाब देंहटाएं२०० वीं पोस्ट की शुभकामनाएं.आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे.
सादर
vandana...
जवाब देंहटाएंjaise ki maine kaha hai ki is kavita ko kisi waah waahi ki jarurat nahi hai ..
kavita me prem ki jitne bhi aayaam hote ahi a, wo sabhi ka samavesh hai .. ye kavita isrf do insaano ki nahi hai apitu , ek jeevan ki hai , jisme dono insaano ne kayi roopo ko ji liya hai ..
ek saashwat prem me jeeavn ke sabhi anugrah , sabhi bandhan , sabhi roopo ko bahut hi acchi tarah se prayog kiya hua hai ..
kavita me doobkar ant me jab paathak baahar nikalata hai to shabdo me khoya hua hi nikalta hai ..
aur jyaada kya likhu..
this is your best composed poem.
badhayi
vijay
... bahut sundar ... double century ... badhaai va shubhakaamanaayen !!!
जवाब देंहटाएंवाह जी 200वीं पोस्ट पर बधाई.
जवाब देंहटाएंपहले तो..२००वी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई ..
जवाब देंहटाएंइस बार तो एकदम की-बोर्ड तोड़ डाला...क्या कमाल की रचना लिखी है...गहरे भावों से सजी...शुभकामनाएं
२०० वीं पोस्ट के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंकविता थोड़ी लंबी है पर अच्छी लगी.
एक और भावुक करती रचना।
जवाब देंहटाएं२०० वीं पोस्ट की बधाई।
वंदना जी....बहुत दिनों से तो नहीं, लेकिन बहुत बार आपको पढा है मैंने!!
जवाब देंहटाएंप्रेम या प्यार जैसे सब्दो को कोई आपसे सब्दो में बंधना सीखे...:)
हर बार कुछ नए सब्दो के प्रयोग से आप अपनी प्रेम भरी रचना को
एक दम से नयी बना देती है..............
शायद इसलिए तो २०० कविता हो गयी आपकी....बहुत बहुत बधाई....
लेखन के क्षेत्र में आपको गुरु समझना गलत नहीं होगा..
नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं.........
kya kahen vandanaji!
जवाब देंहटाएंbas aapke bhavmayi kavy samvad me is kadar doob gaue ki pata hi nahi laga...kavita badi hai ya chhoti.
bahut-bahut hridayshparsi .
2०० वी पोस्ट की बधाई ।
जवाब देंहटाएंआज क्षणिकाएं देखकर अच्छा लगा । लेकिन फिर क्षणिकाएं ही ख़त्म होती नज़र नहीं आई ।
सब्र कर फिर आते हैं ।
२००वी पोस्ट की बधाई..
जवाब देंहटाएंकविता की लम्बाई कुछ ज्यादा हो गयी है..
पर दिल को कहीं गहरे जाकर छूती है.....
सर्वप्रथम २०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें वीणावादिनी माँ सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे यही प्रार्थना करता हूँ |
जवाब देंहटाएंयह कविता भी आपकी हर कविता की भांति लाजवाब कर देने वाली है |
शुभकामनायें....
बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएं२००वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.
सादर,
डोरोथी.
तो फिर आओ
जवाब देंहटाएंचलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ..............
आपकी रचना भावों में इतना बहा लेजाती है कि पढ़ने के बाद कमेंट्स देने के लिए मन निशब्द हो जाता है. इतनी लंबी कविता कब खत्म हो गयी ,पता ही नहीं चला. मन की व्यथा,कशिश और भावों का अप्रतिम संगम..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..
तो फिर आओ
जवाब देंहटाएंचलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ..............
आपकी रचना भावों में इतना बहा लेजाती है कि पढ़ने के बाद कमेंट्स देने के लिए मन निशब्द हो जाता है. इतनी लंबी कविता कब खत्म हो गयी ,पता ही नहीं चला. मन की व्यथा,कशिश और भावों का अप्रतिम संगम..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..
यह किस्सा नुमा कविता तो बहुत जानदार रही!
जवाब देंहटाएं--
कविता लम्बी जरुर है मगर मनोभानों का चित्रण करने में सफल रही है!
prem pagi rachna jo ek prem purit jiwan ke sabhi aayamo ko chhuti hai. kahin kahin ek vakye ko do panktiyon me vibhajit kiya hai jis se pravaah bikharta hai.
जवाब देंहटाएं200vi post par badhayi.
जहां...
जवाब देंहटाएंचलें .....
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
लम्हों की कहानी
सदियों की जुबानी हो जाये ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
आप को २०० वी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई, कविता भी बहुत अच्छी लगी, बहुत से लोगो के संग ऎसा होता हे जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएं..........सुन्दर प्रेमपरक रचना.
२०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......
bahut achhi kavita...200vee post ke liye badhai. bahut lajavab kavita hai.dil ko chune vali,aakho se aansu tapkane vali,do jindagiyo ki kahani kahne vali. aabhar aapka
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता
NAYA SAAL 2011 CARD 4 U
जवाब देंहटाएं_________
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please open it
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/”**I**”/
/ “MISS” /
/ “*U.*” /
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“LOVE”
“*IS*”
”LIFE”
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/ “LIFE” /
/ “*IS*” /
/ “ROSE” /
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“ROSE”
“**IS**”
“beautifl”
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/”beautifl”/
/ “**IS**”/
/ “*YOU*” /
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Yad Rakhna mai ne sub se Pehle ap ko Naya Saal Card k sath Wish ki ha….
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
२००वीं पोस्ट के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंप्रवाह में बहती हुई सुन्दर रचना!
बधाई जी, इतनी लम्बी कविता की, नए वर्ष की।
जवाब देंहटाएंदो प्रेमियों का यह मिलना भी ख़ूब रहा!
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंbahut achcha likhtin hain aap.
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
सबसे पहले २००वीं पोस्ट की बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंपूरी कविता कई बार पढ़ी है ..
कितने सवाल कितने जवाब ...
कितनी शंकाएं ...निराकरण ...
सब कुछ लाजवाब ...
वाकई खंड काव्य सा ही है !
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनयें !
नए साल पर हार्दिक शुभकामना .. आपकी पोस्ट बेहद पसंद आई ..आज (31-12-2010) चर्चामंच पर आपकी यह पोस्ट / रचना है .. http://charchamanch.uchacharan.blogspot.com.. पुनः नववर्ष पर मेरा हार्दिक अभिनन्दन और मंगलकामनाएं |
जवाब देंहटाएंbahut sunder....
जवाब देंहटाएंnaye varsh ki anek shubh kamnaye.............
चलो आओ आज फ़िर एक नयी शुरुआत करें...
जवाब देंहटाएंबधायी नये साल की और इतनी खूबसूरत रचना के लिये भी .....
कविता पढ़ते वक़्त ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि "लम्हों की कहानी
जवाब देंहटाएंसदियों की जुबानी हो... "
इनदिनों टिप्पणियों का वक़्त कम मिलता है, परन्तु फीड की मेहरबानी से बहुत से ब्लॉग पढ़ लेता हूँ.
आपको नूतन वर्ष की हार्दिक बधाई!! नए वर्ष में तरही मुशायरे में फिर मिलते हैं :)
सुन्दर प्रस्तुति| आपको नव वर्ष 2011 कि हार्दिक शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंनाज़ुक ज़ज्बातों की जानदार प्रस्तुति. बधाई और आने वाले नए वर्ष में और भी अच्छे लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
जवाब देंहटाएं*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:- पुराने साल की कुछ यादें
अपनी संवेदनाएं व्यक्त करने में कामयाब रही हैं आप ! नए साल की मंगल कामनाएं !
जवाब देंहटाएंनववर्ष आपके लिए मंगलमय हो और आपके जीवन में सुख सम्रद्धि आये…एस.एम् .मासूम
जवाब देंहटाएंसुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
जवाब देंहटाएंयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
आपकी लंबी कविता पट़ते-पटते न जाने कब छोटी हो गयी -पता ही नही चला। भावों की अति सुंदर अभिव्यक्ति। धन्यवाद। नव वर्ष 2011 की अशेष शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपकी लंबी कविता पट़ते-पटते न जाने कब छोटी हो गयी -पता ही नही चला। भावों की अति सुंदर अभिव्यक्ति। धन्यवाद। नव वर्ष 2011 की अशेष शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंआपके और आपके परिवार के लिए
यह नया साल खुशियों से भरा हो। आपके भीतर
ईश्वर का प्रेम रस सदा बहता रहे।
वंदना जी
जवाब देंहटाएंआपके और आपके परिवार के लिए
यह नया साल खुशियों से भरा हो। आपके भीतर
ईश्वर का प्रेम रस सदा बहता रहे।
hrdy se aabhari hoon swikar krne ki kripa kren
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएं२०० वीं पोस्ट के लिए बधाई !
मंगलमय नववर्ष और सुख-समृद्धिमय जीवन के लिए आपको और आपके परिवार को अनेक शुभकामनायें !
ek bahut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंmain sochta raha kahan hai vo "jahaan" jahan muhabbat chirayu ho jaye...!
bahut achchi abhivyakti bhavnaon ki...
तो फिर आओ
जवाब देंहटाएंचलें .............
उस जहाँ की ओर
जहाँ मोहब्बत
चिरायु हो जाए
सर्वप्रथम 200वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई. रचना जीवन के अनेक सोपानों के दर्शन कराती है यह रचना.