सुन
तेरे चेहरे पर
गुलाब सी खिली
मधुर स्मित
नज़र आती है मुझे
जब तू दूर -बहुत दूर
निंदिया के आगोश में
स्वप्नों के आरामगाह में
विचरण कर रहा होता है
तेरे सीने के मचलते ज्वार
यहीं भिगो जाते हैं मुझे
मेरे तड़पते जज्बातों को
तेरी बेखुदी में
महकते ख्याल
तेरे अहसासों की
लोरियां सुना
जाते हैं मुझे
तेरी धड़कन की
हर आवाज़ सुना
करती हूँ
तेरे हर पैगाम को
पढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
kya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .
जवाब देंहटाएंkya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना और अत्यधिक सुन्दर और स्वच्छ शब्दों का प्रयोग... और क्या कहूँ... बढ़िया कविता के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंतेरे हर पैगाम को
जवाब देंहटाएंपढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
समर्पण की भावना जगाती पोस्ट!
Mere paas to shabdhee nahee...kya kahun?
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर एहसास है इस में बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया
जवाब देंहटाएंऐसी कविता लिखने के बाद शीर्षक में ही लिख दिया करो कि बुढ़ापे की और बढ़ रहे लोग इसे ना पढे। केवल व्यस्कों के लिए। मजाक कर रही हूँ क्योंकि ऐसी बाते जरा पल्ले नहीं पड़ती है। लेकिन अभिव्यक्ति अच्छी है।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंक्या बात है
बहुत सुंदर
इसी लिए तो नारी को महान कहा गया है
ऐसे भावपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति ....
वाह वाह वाह
तुझसे दूर होकर भी
जवाब देंहटाएंतेरे पास होती हूँ
बहुत ही सुन्दर भाव लिए....ख़ूबसूरत रचना
सच में वंदना जी ये भाव तभी आते है जब प्रिय और प्रेमिका में द्वैत का भाव शून्य हो जाता है अर्थात एकीकार हो जाते है,, तब दो चेतनाए समन्वय प्राप्त कर लेती है बहुत बेहतरीन कविता
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत ही सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
तेरे सीने के मचलते ज्वार
जवाब देंहटाएंयहीं भिगो जाते हैं मुझे
मेरे तड़पते जज्बातों को
...
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
प्रवीण शुक्ल जी ने कह ही दिया है
बहुत भावपूर्ण रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंtujhase door hoote huye bhi terepass hone ka ahasas kar leti hun main.wah,wah vandana ji aapaneto apani is kavita me maano apane saare jajbaato ko nichod kat rakh diya hai.bahut hi umdaa.
जवाब देंहटाएंpoonam
बेहतरीन कविता,वंदना जी
जवाब देंहटाएंkareebi ehsaason ki kareebi gungunahat
जवाब देंहटाएंbahvpurn sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंतुझसे दूर होकर भी
जवाब देंहटाएंतेरे पास होती हूँ
भौतिक दूरी मायने नहीं अगर आत्मिक नजदीकी हो तो.
बहुत सुन्दर
dil ki gahraiyon se nikli behad khoobsurat abhivyakti.
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति .........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंkhoobsurat ehsaason se saji rachna
जवाब देंहटाएंएकाकार होने की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! रचना सुन्दर है वंदना जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएं...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएं"तुझसे दूर होकर भी
जवाब देंहटाएंतेरे पास होती हूँ"
वाह, बहुत सुन्दर भाव लिए हुए .......!
बहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंवन्दना जी
जवाब देंहटाएंअंत बहुत अच्छा लगा 1कहां से लाती हैं आप अह्सास का दरिया जो हमारा सब को बहा कर ले जाता है
सुमन ‘मीत’
ye kavita to ek maa ke apne bete ke bare me khyaal si bhi lagti hai..
जवाब देंहटाएं:) sundar rahi ye bhi
wah kya likhti hain vandna ji. Mujhe to ye bahut acha laga
जवाब देंहटाएंwah kya likhti hain vandna ji aap. hume to ye bahut acha laga.
जवाब देंहटाएंbhavana se paripurn aap kee kavitaa hai atee sundar
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावुक रचना ........
जवाब देंहटाएंमैं यहीं
जवाब देंहटाएंतुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
अक्सर प्यार में ऐसा होता है ... खूबसूरत एहसास हैं ,....
अद्भुत। मन को छूती रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (30-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंमन को छू लेनेवाली रचना...
बहुत ही सुन्दर....
:-)