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रविवार, 21 मार्च 2010

गर प्यार से छू ले

आज भी 
सिहर जाए 
रोम रोम
गर तू
प्यार से 
छू ले मुझे
आज भी
डूब जाऊँ 
नैनों की 
मदिरा में
 गर तू
नज़र भर 
देख ले मुझे
आज भी 
बंध  जाऊँ
बाहुपाश में तेरे
 गर तू
स्नेहमय निमंत्रण दे 
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के 
अभाव में
बंजर हो गया है

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना और उतने ही सुंदर भाव.

    रामराम.

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  2. Aapki kavitaaon ki ek alag hi khoobsurat pahichan ho gayi hai.. shabdon me lay aur tartamyata dekhte banti hai.
    kahin bhi likhi ho to ek bar dekh kar andaza jaroor lag jayega ki aapka hi likha hai.. ek aur sundar kavita moti ke liye aabhar..

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  3. कोमल एहसासों को खूबसूरती से लिखा है...नेह का बादल बरसेगा...

    शुभकामनायें

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  4. उर स्पन्दनहीन
    नहीं है
    बस नेह जल के
    अभाव में
    बंजर हो गया है

    अति सुंदर !!!!!!!!!

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  5. कविता की अंतिम पंक्तियां ..बेहद खूबसूरत हैं ....बहुत ही सुंदर कविता
    अजय कुमार झा

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  6. सुन्दर रचना,और मेरी शतकिय पोस्ट पर टिप्पणी देने के लिये ध्न्यवाद ।

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  7. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  8. उर स्पन्दनहीन
    नहीं है
    बस नेह जल के
    अभाव में
    बंजर हो गया है
    बहुत कोमल और कमनीय भाव और एहसास
    क्या खूब लिखा है

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  9. आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।

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  10. सुन्दर भाव मन से प्रस्तुत किया है आपने इस रचना ......बहुत खूब

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  11. ur spandan heen nahin hai....................banjar ho gaya hai.

    behatareen abhivyakti. wah.

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  12. शब्दों का सुन्दर संकलन,बहुत ही अच्छी पक्तियां .

    VIKAS PANDEY

    WWW.VICHAROKADARPAN.BLOGSPOT.COM

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  13. उर स्पंदन हीन
    नहीं है
    बस नेह जल के
    अभाव में
    बंजर हो गया है...


    वाह वाह वाह वंदना जी वाह...अद्भुत पंक्तियाँ...मेरी बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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  14. बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है आपने!

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  15. कव्यों के उर से
    कभी न सूखे नेह का जल
    यही कामना
    पल - प्रतिपल

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  16. bahut hi khooobsurat ahsaaas....ham kitna intzaar karte hain aur kaise kaise sapne dekhte hain ...un ke liye jo kabhi laut kar nahi aate.........

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  17. उर स्पन्दनहीन
    नहीं है
    बस नेह जल के
    अभाव में
    बंजर हो गया है ..

    वाह .. बहुत खूबलिखा है ... नेह की वर्षा में कलियाँ फिर खिल उठेंगी ... तू कोशिश तो कर ...

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  18. इस विषय पर तो मुझसे कुछ नहीं कहा जायेगा वंदना जी ......!!

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  19. उर स्पन्दनहीन
    नहीं है
    बस नेह जल के
    अभाव में
    बंजर हो गया है
    बहुत सुन्दर कविता है वंदना जी. बधाई.

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  20. kabhi-kabhi bahut jyada bdhiya likh deta है....tab भी तो samajh nahin ata ki kya kahen.....उफ़ kahe तो kya kahen.....!!

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  21. कोमलतम अनुभूतियाँ ऐसे सज जाती हैं अभिव्यक्ति में कि पूछिए मत !
    सुन्दर रचना, आभार ।

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  22. apki kavita padhkar yaad aata hai vo gaalib sahib ka kehna ki "yu hota to kya hota"!!!

    sunder rachna

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  23. Kya baat hai!
    Behad romani, samvedansheel aur khoobsoorat!
    Ur spandanheen nahin hai
    Bas neh jal ke abhav mein
    Banjar ho gaya hai....
    Bahut ras liya maine!
    Shubhkamnaen!

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  24. हिन्दी जगत को इन खऊबसूरत अह्सासोँ से नवाजने के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ

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  25. kavita wakai behad khubsurat hai... padhkar kaafi aanand aaya...

    ajib vidambna hai dard bhare geet zyada aanand dete hain!!!!!

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  26. कमाल है ! अद्भुत भावभरी रचना !
    जब हम जुदा हुए थे रात बाकि थी,
    उम्र कट गयी सारी,मगर रात बाकी है !

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