ये मन का उड़ता पंछी
आकाश को पाना चाहता है
जिस राह की कोई मंजिल नही
उस राह को तकना चाहता है
प्रणय बंधन में बँधे मनों को
प्रेम का नव अर्थ देना चाहता है
नामुमकिन सी तमन्ना को
आइना बनाना चाहता है
प्रणय बंधन में जकड़ी बेडी को
प्रेम की हथकड़ी लगाना चाहता है
तुमसे ही हर चाहत का अब
सिला पाना चाहता है
ह्रदय की कुँवारी इच्छाओं को
तुमसे ही मनवाना चाहता है
ह्रदय में उठते ज्वारों की
ख़ामोशी को सुनाना चाहता है
प्रेम के हर अधबुने फंदे को
तुमसे ही बुनवाना चाहता है
तन के रिश्ते से कुछ ऊपर उठकर
प्रेमी के भावों में भीगना चाहता है
तमन्नाओं की बढती अमरबेल तो देखो
साजन से तुमको प्रियतम बनाना चाहता है
अपनी नाकाम सी कोशिशों को
मोहब्बत का इक मुकाम देना चाहता है
साजन में छुपे प्रेमी की
परछाईं को पकड़ना चाहता है
तुम्हारी हर अदा में साजन
प्रेमी सा तसव्वुर चाहता है
ये प्रेम की अतल गहराइयों में डूबा मन
सूखे फूलों से खुशबू को पाना चाहता है
हाय ! ये प्रेम में बावरा मन
अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है
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रविवार, 31 जनवरी 2010
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
मेरे हिस्से का आसमान
शाम के
धुंधलके में
एक टुकड़ा
आसमान
मेरे आँगन
में उतरा
मुझे पुकारा
मेरे हिस्से के
चाँद की
संगमरमरी
दुधिया रौशनी से
मेरे आँगन को
जगमगाया
तारों की
टिमटिमाती
मखमली
चादर पर
सुलाया
और ले गया
स्वप्नों के
जहान में
जहाँ बादलों
का एक टुकड़ा
लहलहाता सा
आया और
मेरे वजूद पर
इन्द्रधनुषी
रंगों सा
छा गया
मेरे स्वप्न को
हकीकत का
ताज पहना गया
मुझे मेरे
वजूद को
सरगम सा
सहला गया
मेरे बिखरे हुए
अहसासों को
महका गया
कुछ इस तरह
टुकड़ों में
बंटे अस्तित्व
को संपूर्ण
बना गया
और फिर
मेरे हिस्से का
आसमान
मुझे मिल गया
धुंधलके में
एक टुकड़ा
आसमान
मेरे आँगन
में उतरा
मुझे पुकारा
मेरे हिस्से के
चाँद की
संगमरमरी
दुधिया रौशनी से
मेरे आँगन को
जगमगाया
तारों की
टिमटिमाती
मखमली
चादर पर
सुलाया
और ले गया
स्वप्नों के
जहान में
जहाँ बादलों
का एक टुकड़ा
लहलहाता सा
आया और
मेरे वजूद पर
इन्द्रधनुषी
रंगों सा
छा गया
मेरे स्वप्न को
हकीकत का
ताज पहना गया
मुझे मेरे
वजूद को
सरगम सा
सहला गया
मेरे बिखरे हुए
अहसासों को
महका गया
कुछ इस तरह
टुकड़ों में
बंटे अस्तित्व
को संपूर्ण
बना गया
और फिर
मेरे हिस्से का
आसमान
मुझे मिल गया
रविवार, 24 जनवरी 2010
प्यार , प्यार होता है -----------शरीरी नही होता
प्यार , प्यार होता है
शरीरी नही होता
क्यूँ प्यार का
एक ही अर्थ
लगाती है दुनिया
प्यार बहन से, माँ से,
पत्नी से , प्रेमिका से ,
बेटे से , बेटी से
भी होता है
मगर प्यार, प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार में
रिश्ते के नाम की
पट्टी हो
ये जरूरी तो नही
उसका अर्थ तो
एक ही होता है
भावनाओं की दिशा
तो वो ही है
फिर प्यार शब्द से
क्यूँ डरती है दुनिया
क्यूँ तोहमतों के बाज़ार
लगा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
क्यूँ वासना के तराजू में
तोलती है दुनिया
क्यूँ अश्लीलता के पैबंद
लगाती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार तो इबादत होता है
क्यूँ व्यापार बना देती है दुनिया
क्यूँ प्यार शब्द के
उच्चारण से ही
बबाल मचा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार मीरा सा भी होता है
प्यार राधा सा भी होता है
प्यार सुदामा सा भी होता है
प्यार उद्धव सा भी होता है
प्यार यशोदा सा भी होता है
प्यार शबरी सा भी होता है
फिर क्यूँ प्यार को
हवस की वेदी पर
चढ़ा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
क्यूँ इतनी सी बात
ना समझ पाती है दुनिया
शरीरी नही होता
क्यूँ प्यार का
एक ही अर्थ
लगाती है दुनिया
प्यार बहन से, माँ से,
पत्नी से , प्रेमिका से ,
बेटे से , बेटी से
भी होता है
मगर प्यार, प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार में
रिश्ते के नाम की
पट्टी हो
ये जरूरी तो नही
उसका अर्थ तो
एक ही होता है
भावनाओं की दिशा
तो वो ही है
फिर प्यार शब्द से
क्यूँ डरती है दुनिया
क्यूँ तोहमतों के बाज़ार
लगा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
क्यूँ वासना के तराजू में
तोलती है दुनिया
क्यूँ अश्लीलता के पैबंद
लगाती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार तो इबादत होता है
क्यूँ व्यापार बना देती है दुनिया
क्यूँ प्यार शब्द के
उच्चारण से ही
बबाल मचा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
प्यार मीरा सा भी होता है
प्यार राधा सा भी होता है
प्यार सुदामा सा भी होता है
प्यार उद्धव सा भी होता है
प्यार यशोदा सा भी होता है
प्यार शबरी सा भी होता है
फिर क्यूँ प्यार को
हवस की वेदी पर
चढ़ा देती है दुनिया
प्यार तो प्यार होता है
शरीरी नही होता
क्यूँ इतनी सी बात
ना समझ पाती है दुनिया
रविवार, 17 जनवरी 2010
ज़रा सोचिये ----------ऐसा आखिर कब तक ?
लो फिर
एक ख्वाहिश
का जनम हो गया
एक बच्चे के
जनम के साथ
फिर से उसे
अपनी जड़
सोच के साथ
दुलारा जायेगा
अपने अरमानो को
उसकी देह पर
संवारा जायेगा
इक मिटटी का
पुतला समझ
निखारा जायेगा
उसकी इच्छाओं का
गला घोंट
फिर से उसे
मारा जायेगा
अपने सपनो को
पाने की चाहत में
अपने स्वाभिमान
की खातिर
दोजख की आग में
खरा सोना
बनाने के लिए
तपाया जायेगा
उसकी भावनाओं को
अपने अहम् की
तुष्टि के लिए
कुचला जायेगा
सिर्फ अपनी
इक कुंठित कमजोरी
को छुपाने के लिए
और अपनी
महत्तवाकांक्षाओं को
पाने के लिए
एक बार फिर
अपने ही लहू से
हाथों को धोया जायेगा
ऐसा आखिर कब तक होगा?
युग सृष्टा हो , क्यूँ
युग मारक बनते जाते हो
अधखिले फूलों को क्यूँ
अपनी आकांक्षाओं की
बलि चढाते हो
जागो , जागो
मत अपने ही हाथो
भविष्य को
मटियामेट करो
दिल के टुकड़ों का
मत अपने ही हाथों
क़त्ल करो
जागो , मेरे प्यारो
अब तो जागो
ये रचना मैंने उन सब मासूमों को समर्पित की है जो अपने माता पिता की आकांक्षाओं की बलि चढ़ गए । वो भी जीना चाहते थे मगर अपने माँ बाप की इच्छा के आगे अपनी इच्छाओं की जिन्होंने बलि चढ़ा दी और जब उनकी इच्छाओं पर खरे नही उतर सके तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ताकि उनके माता पिता को समाज के आगे शर्मिंदा ना होना पड़े ...........कई दिनों से ये समाचार मन को उद्वेलित किये हुए थे कि पढाई के बोझ के कारण बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं मगर नही बोझ पढाई का कहाँ है ? बोझ तो आज इंसान की महत्त्वाकांक्षाएं बन गयी हैं जिनकी खातिर हम अपने ही बच्चों को मौत के मुँह में झोंक रहे हैं। एक छोटा सा प्रयास है सोये हुओं को जगाने का ।
एक ख्वाहिश
का जनम हो गया
एक बच्चे के
जनम के साथ
फिर से उसे
अपनी जड़
सोच के साथ
दुलारा जायेगा
अपने अरमानो को
उसकी देह पर
संवारा जायेगा
इक मिटटी का
पुतला समझ
निखारा जायेगा
उसकी इच्छाओं का
गला घोंट
फिर से उसे
मारा जायेगा
अपने सपनो को
पाने की चाहत में
अपने स्वाभिमान
की खातिर
दोजख की आग में
खरा सोना
बनाने के लिए
तपाया जायेगा
उसकी भावनाओं को
अपने अहम् की
तुष्टि के लिए
कुचला जायेगा
सिर्फ अपनी
इक कुंठित कमजोरी
को छुपाने के लिए
और अपनी
महत्तवाकांक्षाओं को
पाने के लिए
एक बार फिर
अपने ही लहू से
हाथों को धोया जायेगा
ऐसा आखिर कब तक होगा?
युग सृष्टा हो , क्यूँ
युग मारक बनते जाते हो
अधखिले फूलों को क्यूँ
अपनी आकांक्षाओं की
बलि चढाते हो
जागो , जागो
मत अपने ही हाथो
भविष्य को
मटियामेट करो
दिल के टुकड़ों का
मत अपने ही हाथों
क़त्ल करो
जागो , मेरे प्यारो
अब तो जागो
ये रचना मैंने उन सब मासूमों को समर्पित की है जो अपने माता पिता की आकांक्षाओं की बलि चढ़ गए । वो भी जीना चाहते थे मगर अपने माँ बाप की इच्छा के आगे अपनी इच्छाओं की जिन्होंने बलि चढ़ा दी और जब उनकी इच्छाओं पर खरे नही उतर सके तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ताकि उनके माता पिता को समाज के आगे शर्मिंदा ना होना पड़े ...........कई दिनों से ये समाचार मन को उद्वेलित किये हुए थे कि पढाई के बोझ के कारण बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं मगर नही बोझ पढाई का कहाँ है ? बोझ तो आज इंसान की महत्त्वाकांक्षाएं बन गयी हैं जिनकी खातिर हम अपने ही बच्चों को मौत के मुँह में झोंक रहे हैं। एक छोटा सा प्रयास है सोये हुओं को जगाने का ।
बुधवार, 13 जनवरी 2010
मिलन को आतुर पंछी
आ
ख्यालों की गुफ्तगू
तुझे सुनाऊँ
एक वादे की
शाख पर ठहरी
मोहब्बत तुझे दिखाऊँ
हुस्न और इश्क की
बेपनाह मोहब्बत के
नगमे तुझे सुनाऊँ
हुस्न : इश्क , क्या तुमने कल चाँद देखा ?
मैंने उसमें तुम्हें देखा
इश्क : हाँ , कोशिश की
लेकिन मुझे सिर्फ तुम दिखीं
चाँद कहीं नही
हुस्न : आसमान पर लिखी तहरीर देखी
इश्क : नहीं , तेरी तस्वीर देखी
हुस्न : क्या मेरी आवाज़ तुम तक पहुँचती है ?
इश्क : मैं तो सिर्फ तुम्हें ही सुनता हूँ
क्या कोई और भी आवाज़ होती है ?
हुस्न : मिलन संभव नही
इश्क : जुदा कब थे
हुस्न : मैं अमानत किसी और की
तू ख्याल किसी और का
इश्क : या खुदा
तू मोहब्बत कराता क्यूँ है ?
मोहब्बत करा कर
हुस्न-ओ-इश्क को फिर
मिलवाता क्यूँ नही है ?
इश्क के बोलों ने
हुस्न को सिसका दिया
हिमाच्छादित दिल की
बर्फ को भी पिघला दिया
इश्क के बोलो के
दहकते अंगारों पर
तड़पते हुस्न का
जवाब आया
तेरी मेरी मोहब्बत का अंजाम
खुदा भी लिखना भूल गया
वक़्त की दीवार पर
तुझे इश्क और
मुझे हुस्न का
लबादा ओढा गया
हमें वक़्त की
जलती सलीब पर
लटका गया
और शायद इसीलिए
तुझे भी वक़्त की
सलाखों से बाँध दिया
मुझे भी किसी के
शीशमहल का
बुत बना दिया
तेरी मोहब्बत की तपिश
नैनो से मेरे बरसती है
तेरे करुण क्रंदन के
झंझावात में
मर्यादा मेरी तड़पती है
प्रेमसिन्धु की अलंकृत तरंगें
बिछोह की लहर में कसकती हैं
हिमशिखरों से टकराती
अंतर्मन की पीड़ा
प्रतिध्वनित हो जाती है
जब जब तेरे छालों से
लहू रिसता है
देह की खोल में लिपटी
रूहों के यज्ञ की पूर्णाहूति
कब खुदा ने की है ?
हुस्न की समिधा पर
इश्क के घृत की आहुति
कब पूर्णाहूति बन पाई है
फिर कहो, कब और कैसे
मिलन को परिणति
मिल पायेगी
हुस्न - ओ - इश्क
खुदाई फरमान
और बेबसी के
मकडजाल में जकड़े
रूह के फंद से
आज़ाद होने को
तड़फते हैं
इस जनम की
उधार को
अगले जनम में
चुकायेंगे
ऐसा वादा करते हैं
प्रेम के सोमरस को
अगले जनम की
थाती बना
हुस्न और इश्क ने
विदा ले ली
रूह के बंधनों से
आज़ाद हो
अगले जनम की प्रतीक्षा में
मिलन को आतुर पंछी
अनंत में विलीन हो गए
ख्यालों की गुफ्तगू
तुझे सुनाऊँ
एक वादे की
शाख पर ठहरी
मोहब्बत तुझे दिखाऊँ
हुस्न और इश्क की
बेपनाह मोहब्बत के
नगमे तुझे सुनाऊँ
हुस्न : इश्क , क्या तुमने कल चाँद देखा ?
मैंने उसमें तुम्हें देखा
इश्क : हाँ , कोशिश की
लेकिन मुझे सिर्फ तुम दिखीं
चाँद कहीं नही
हुस्न : आसमान पर लिखी तहरीर देखी
इश्क : नहीं , तेरी तस्वीर देखी
हुस्न : क्या मेरी आवाज़ तुम तक पहुँचती है ?
इश्क : मैं तो सिर्फ तुम्हें ही सुनता हूँ
क्या कोई और भी आवाज़ होती है ?
हुस्न : मिलन संभव नही
इश्क : जुदा कब थे
हुस्न : मैं अमानत किसी और की
तू ख्याल किसी और का
इश्क : या खुदा
तू मोहब्बत कराता क्यूँ है ?
मोहब्बत करा कर
हुस्न-ओ-इश्क को फिर
मिलवाता क्यूँ नही है ?
इश्क के बोलों ने
हुस्न को सिसका दिया
हिमाच्छादित दिल की
बर्फ को भी पिघला दिया
इश्क के बोलो के
दहकते अंगारों पर
तड़पते हुस्न का
जवाब आया
तेरी मेरी मोहब्बत का अंजाम
खुदा भी लिखना भूल गया
वक़्त की दीवार पर
तुझे इश्क और
मुझे हुस्न का
लबादा ओढा गया
हमें वक़्त की
जलती सलीब पर
लटका गया
और शायद इसीलिए
तुझे भी वक़्त की
सलाखों से बाँध दिया
मुझे भी किसी के
शीशमहल का
बुत बना दिया
तेरी मोहब्बत की तपिश
नैनो से मेरे बरसती है
तेरे करुण क्रंदन के
झंझावात में
मर्यादा मेरी तड़पती है
प्रेमसिन्धु की अलंकृत तरंगें
बिछोह की लहर में कसकती हैं
हिमशिखरों से टकराती
अंतर्मन की पीड़ा
प्रतिध्वनित हो जाती है
जब जब तेरे छालों से
लहू रिसता है
देह की खोल में लिपटी
रूहों के यज्ञ की पूर्णाहूति
कब खुदा ने की है ?
हुस्न की समिधा पर
इश्क के घृत की आहुति
कब पूर्णाहूति बन पाई है
फिर कहो, कब और कैसे
मिलन को परिणति
मिल पायेगी
हुस्न - ओ - इश्क
खुदाई फरमान
और बेबसी के
मकडजाल में जकड़े
रूह के फंद से
आज़ाद होने को
तड़फते हैं
इस जनम की
उधार को
अगले जनम में
चुकायेंगे
ऐसा वादा करते हैं
प्रेम के सोमरस को
अगले जनम की
थाती बना
हुस्न और इश्क ने
विदा ले ली
रूह के बंधनों से
आज़ाद हो
अगले जनम की प्रतीक्षा में
मिलन को आतुर पंछी
अनंत में विलीन हो गए
सोमवार, 11 जनवरी 2010
यादों के लांछन -----------किस- किस पर ?
याद करते हो तुम
अपने प्रेमी को
फिर क्यूँ लांछन
हम पर लगाते हो
हम बेजुबान
तुम्हारे लांछनों का
जवाब नही दे सकते
किसी की याद में
जी तुम जलाते हो
मगर दोष हमारा
इसमें क्या है
क्या हमने तुम्हें
ये दर्द दिया
क्या प्रेम का कभी
कोई उपदेश दिया
फिर भी बार- बार
शब्द यही दोहराते हो
ए चाँद ! तू तो
अपनी चाँदनी के साथ है
आ- आकर क्यूँ
जलाता है
अरे मैं तो खुद
अपनी चाँदनी को
ढूँढता हूँ
मैं क्या तुम्हें जलाऊंगा
मैं तो खुद घायल हूँ
कभी तुम हम पर
दाग लगाते हो
हम फूलों को भी
ना बख्श पाते हो
कभी हमें सहलाते हो
तो कभी
बेदर्दी से मसल देते हो
अब इसमें हमारा
गुनाह क्या है
प्रेम तुमने किया
दर्द तुमने लिया
और मसल हमें दिया
कभी हमारे अंतस में
झाँको तो सही
काँटों के बिस्तर पर
ज़िन्दगी गुजारने वाले
क्या किसी को
घाव दे पाएँगे?
मेरा तो कोई दोष नही
प्रेमियों के मिलन की
साक्षी बनाया जाता है
और कभी मुझे ही
दुत्कारा जाता है
यादों में तुम अपनी
कभी अपना वजूद
मुझमें छुपाना चाहते हो
और कभी
मेरे अंधियारे को ही
दाग बताते हो
हाँ , रात हूँ मैं
दर्द का लम्हा हो
या ख़ुशी का
मुझे तो सब
सहना होता है
फिर कैसे मैं
किसी की यादों में
काँटा बन सकती हूँ
यादों के लांछन लगाने वालों
यादों को याद ही रहने दो
तुम्हारी यादों के साक्षी हम
यादों को याद दिलाया करेंगे
जो समृति में कभी
भटक जाओगे तब
हम ही यादों को
यादों में सँवारा करेंगे
क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
क्यूँ हम पर ...............
अपने प्रेमी को
फिर क्यूँ लांछन
हम पर लगाते हो
हम बेजुबान
तुम्हारे लांछनों का
जवाब नही दे सकते
किसी की याद में
जी तुम जलाते हो
मगर दोष हमारा
इसमें क्या है
क्या हमने तुम्हें
ये दर्द दिया
क्या प्रेम का कभी
कोई उपदेश दिया
फिर भी बार- बार
शब्द यही दोहराते हो
ए चाँद ! तू तो
अपनी चाँदनी के साथ है
आ- आकर क्यूँ
जलाता है
अरे मैं तो खुद
अपनी चाँदनी को
ढूँढता हूँ
मैं क्या तुम्हें जलाऊंगा
मैं तो खुद घायल हूँ
कभी तुम हम पर
दाग लगाते हो
हम फूलों को भी
ना बख्श पाते हो
कभी हमें सहलाते हो
तो कभी
बेदर्दी से मसल देते हो
अब इसमें हमारा
गुनाह क्या है
प्रेम तुमने किया
दर्द तुमने लिया
और मसल हमें दिया
कभी हमारे अंतस में
झाँको तो सही
काँटों के बिस्तर पर
ज़िन्दगी गुजारने वाले
क्या किसी को
घाव दे पाएँगे?
मेरा तो कोई दोष नही
प्रेमियों के मिलन की
साक्षी बनाया जाता है
और कभी मुझे ही
दुत्कारा जाता है
यादों में तुम अपनी
कभी अपना वजूद
मुझमें छुपाना चाहते हो
और कभी
मेरे अंधियारे को ही
दाग बताते हो
हाँ , रात हूँ मैं
दर्द का लम्हा हो
या ख़ुशी का
मुझे तो सब
सहना होता है
फिर कैसे मैं
किसी की यादों में
काँटा बन सकती हूँ
यादों के लांछन लगाने वालों
यादों को याद ही रहने दो
तुम्हारी यादों के साक्षी हम
यादों को याद दिलाया करेंगे
जो समृति में कभी
भटक जाओगे तब
हम ही यादों को
यादों में सँवारा करेंगे
क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
क्यूँ हम पर ...............
शनिवार, 9 जनवरी 2010
दोबारा कैसे जियूँ
तारीख
कैसे याद रखूँ
हर तारीख
इक कहानी है
कभी गम है
कभी ख़ुशी है
तारीख की बेड़ियों से
यादों का अंकुर
जो फूटा
कभी तारीख में
कराहता इंतज़ार मिला
तो कभी इम्तिहान
कभी दर्द का
सैलाब मिला
तो कभी
भावनाओं का तूफ़ान
कहीं खुशियों की
सौगात मिली
तो कहीं जुगनू से
चमकते पलों का हिसाब
मगर फिर भी
तारीख कैसे याद रखूँ
हर लम्हे को
दोबारा कैसे जियूँ
कैसे याद रखूँ
हर तारीख
इक कहानी है
कभी गम है
कभी ख़ुशी है
तारीख की बेड़ियों से
यादों का अंकुर
जो फूटा
कभी तारीख में
कराहता इंतज़ार मिला
तो कभी इम्तिहान
कभी दर्द का
सैलाब मिला
तो कभी
भावनाओं का तूफ़ान
कहीं खुशियों की
सौगात मिली
तो कहीं जुगनू से
चमकते पलों का हिसाब
मगर फिर भी
तारीख कैसे याद रखूँ
हर लम्हे को
दोबारा कैसे जियूँ
रविवार, 3 जनवरी 2010
मैंने तो जीना कब का छोड़ दिया है
मैंने तो जीना कब का
छोड़ दिया है
एक निर्जीव , स्पन्दनहीन
जीवन जी रही थी
फिर तुम ठहरे हुए
पानी में क्यूँ
उम्मीदों के
कंकड़ फेंकते हो
क्यूँ अपेक्षाओं के
बीज बोते हो
संवेदनाओं के बेल -बूटे
सब सूख चुके हैं
जानते हो , मुझे पता है
तुम कभी
खरे नही उतर पाओगे
मेरे सपने ना कभी
समेट पाओगे
मेरे पंखों को उड़ान
ना दे पाओगे
मुझमें आशा का संचार
ना कभी कर पाओगे
मुझे मेरे तिमिर में
अकेला छोड़ दो
अब नही जीना
आशाओं का दामन थाम
मैं खुश हूँ
अपने आशाविहीन
जीवन के साथ
पथ आलोकित है मेरा
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है
छोड़ दिया है
एक निर्जीव , स्पन्दनहीन
जीवन जी रही थी
फिर तुम ठहरे हुए
पानी में क्यूँ
उम्मीदों के
कंकड़ फेंकते हो
क्यूँ अपेक्षाओं के
बीज बोते हो
संवेदनाओं के बेल -बूटे
सब सूख चुके हैं
जानते हो , मुझे पता है
तुम कभी
खरे नही उतर पाओगे
मेरे सपने ना कभी
समेट पाओगे
मेरे पंखों को उड़ान
ना दे पाओगे
मुझमें आशा का संचार
ना कभी कर पाओगे
मुझे मेरे तिमिर में
अकेला छोड़ दो
अब नही जीना
आशाओं का दामन थाम
मैं खुश हूँ
अपने आशाविहीन
जीवन के साथ
पथ आलोकित है मेरा
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है