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सोमवार, 11 जनवरी 2010

यादों के लांछन -----------किस- किस पर ?

याद करते हो तुम
अपने प्रेमी को
फिर क्यूँ लांछन
हम पर लगाते हो
हम बेजुबान
तुम्हारे लांछनों का
जवाब नही दे सकते
किसी की याद में
जी तुम जलाते हो
मगर दोष हमारा
इसमें क्या है
क्या हमने तुम्हें
ये दर्द दिया
क्या प्रेम का कभी
कोई उपदेश दिया
फिर भी बार- बार
शब्द यही दोहराते हो
ए चाँद ! तू तो
अपनी चाँदनी के साथ है
आ- आकर क्यूँ
जलाता है
अरे मैं तो खुद
अपनी चाँदनी को
ढूँढता हूँ
मैं क्या तुम्हें जलाऊंगा
मैं तो खुद घायल हूँ
कभी तुम हम पर
दाग लगाते हो
हम फूलों को भी
ना बख्श पाते हो
कभी हमें सहलाते हो
तो कभी
बेदर्दी से मसल देते हो
अब इसमें हमारा
गुनाह क्या है
प्रेम तुमने किया
दर्द तुमने लिया
और मसल हमें दिया
कभी हमारे अंतस में
झाँको तो सही
काँटों के बिस्तर पर
ज़िन्दगी गुजारने वाले
क्या किसी को
घाव दे पाएँगे?
मेरा तो कोई दोष नही
प्रेमियों के मिलन की
साक्षी बनाया जाता है
और कभी मुझे ही
दुत्कारा जाता है
यादों में तुम अपनी
कभी अपना वजूद
मुझमें छुपाना चाहते हो
और कभी
मेरे अंधियारे को ही
दाग बताते हो
हाँ , रात हूँ मैं
दर्द का लम्हा हो
या ख़ुशी का
मुझे तो सब
सहना होता है
फिर कैसे मैं
किसी की यादों में
काँटा बन सकती हूँ
यादों के लांछन लगाने वालों
यादों को याद ही रहने दो
तुम्हारी यादों के साक्षी हम
यादों को याद दिलाया करेंगे
जो समृति में कभी
भटक जाओगे तब
हम ही यादों को
यादों में सँवारा करेंगे
क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
क्यूँ हम पर ...............

28 टिप्‍पणियां:

  1. kiya baat hai medam,kiya khub likhi hi kavita wastav me jindgi ek khamosh safar hai

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  2. अच्छी कविता !

    याद करते हो तुम
    अपने प्रेमी को
    फिर क्यूँ लांछन
    हम पर लगाते हो

    सुन्दर भाव...

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  3. वन्दना जी लाजवाब लिखा है..
    बधाई स्वीकार करें...

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  4. अच्छे लांछन लगाये आपने. यानि की हमने. उसके दिल पर क्या बीती ये आप से सुन कर अच्छा लगा.

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  5. तुम्हारी यादों के साक्षी हम

    यादों को याद दिलाया करेंगे

    जो स्मृति में कभी
    भटक जाओगे
    तब

    हम ही यादों को
    यादों में सँवारा करेंगे ।


    बहुत खूब ! बहुत खूबसूरत रचना है । बधाई स्वीकार करें ।

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  6. बहुत सारे मासूम सवाल..और अपनेपन से भरे उलाहने...बहुत सुन्दर..

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  7. जो समृति में कभी
    भटक जाओगे तब
    हम ही यादों को
    यादों में सँवारा करेंगे
    क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
    क्यूँ हम पर ...............
    बहुत सुंदर रचना है।
    द्वीपांतर परिवार की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. chand ki taraf se is tarah kabhi nahi socha hoga kisi ne..bahut pyaar bhari ulahna thi...khubsurat rachna ke liye badhai aapko vandana ji

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  9. हमेशा की तरह आपने बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है!

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  10. आपने सही लिखा है .......... पर जब दिल उदास होता है, दर्द में होता है तो दूसरे का मूक प्रदर्शन भी नही स्वीकार कर पाता ...... फिर चंदा भी तो मुस्कुराता है दूर ही दूर से .......... बहुत अच्छा लिखा है .........

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  11. चाँद की व्यथा को बहुत खूबसूरती से कहा है.....आनंद आया पढ़ कर...बहुत बहुत बधाई

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  12. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ .. अग्रिम क्षमा के साथ कुछ आलोचना करने लगा हूँ .. आपकी यह भावभिव्यक्ति कविता या गज़ल में ढल सकती थी लेकिन आपने पर्याप्त प्रयास नहीं किया .. भाव पक्ष सचमुच सुन्दर है प्रस्तुति में कमी है .. बात अनुचित लगी हो तो फिर एक बार क्षमा

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  13. VANDANA JI , KAI PRAKAR KE BHAV SANJO DIYE HAIN IS RACHNA MEN , KUL MILA KAR EK SARAHNIYA UTTAM RACHNA. BADHAAI.

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  14. वंदना जी,
    ........मैं तो खुद अपनी चाँदनी को ढूँढता हूँ.........
    काँटों के बिस्तर पर ज़िन्दगी गुजारने वाले
    क्या किसी को घाव दे पाएँगे?
    गहन चिन्तन से उपजी भावपूर्ण रचना
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  15. यादों के लांछन लगाने वालों
    यादों को याद ही रहने दो
    तुम्हारी यादों के साक्षी हम
    यादों को याद दिलाया करेंगे
    जो समृति में कभी
    भटक जाओगे तब
    हम ही यादों को
    यादों में सँवारा करेंगे
    क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
    क्यूँ हम पर ...............

    इस कविता में तो चमत्कार ही कर दिया आपने!
    यादों को जाल-जगत पर अमर कर दिया है जी!

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  16. बहुत ही बढिया भाव .. गजब की रचना है !!

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  17. vandana ji shukriya mere blog per aane k liye jis se aap tak pahuchne ka maarg mila...aap bahut acchha likhti hai...chaand aur shikayte..kya khoobsurti se apni baat ko piroya hai. kaabele tareef hai..badhayi.

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  18. तुम्हारी यादों के साक्षी हम
    यादों को याद दिलाया करेंगे
    जो समृति में कभी
    भटक जाओगे तब
    हम ही यादों को
    यादों में सँवारा करेंगे
    क्यूँ हम पर इलज़ाम लगाते हो
    बहुत सुन्दर!
    महावीर शर्मा

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  19. जो समृति में कभी
    भटक जाओगे तब
    हम ही यादों को
    यादों में सँवारा करेंगे

    -बहुत गहरी बात संजोई है, आनन्द आया.

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  20. bahut khubsurat likha hai....aap ki rachnaaye man ko chhu leti hain...badhayee...ishwar apko bahut kaamyabi den.. aparajita.

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  21. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत आभार

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  22. बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

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  23. dosh aapka bilkul bhi nahi... dosh to mera hai.. itne itne din bita dete hai aapke blog ko dekhne mein.. ab aisi galati nahi karunga... khubsurat kavita...

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