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रविवार, 31 जनवरी 2010

बावरा मन

ये मन का उड़ता पंछी
आकाश को पाना चाहता है

जिस राह की कोई मंजिल नही
उस राह को तकना चाहता है

प्रणय बंधन में बँधे मनों को
प्रेम का नव अर्थ देना चाहता है

नामुमकिन सी तमन्ना को
आइना बनाना चाहता है

प्रणय बंधन में जकड़ी बेडी को
प्रेम की हथकड़ी लगाना चाहता है

तुमसे ही हर चाहत का अब
सिला पाना चाहता है

ह्रदय की कुँवारी इच्छाओं को
तुमसे ही मनवाना चाहता है

ह्रदय में उठते ज्वारों की
ख़ामोशी को सुनाना चाहता है

प्रेम के हर अधबुने फंदे को
तुमसे ही बुनवाना चाहता है

तन के रिश्ते से कुछ ऊपर उठकर
प्रेमी के भावों में भीगना चाहता है

तमन्नाओं की बढती अमरबेल तो देखो
साजन से तुमको प्रियतम बनाना चाहता है

अपनी नाकाम सी कोशिशों को
मोहब्बत का इक मुकाम देना चाहता है

साजन में छुपे प्रेमी की
परछाईं को पकड़ना चाहता है

तुम्हारी हर अदा में साजन
प्रेमी सा तसव्वुर चाहता है

ये प्रेम की अतल गहराइयों में डूबा मन
सूखे फूलों से खुशबू को पाना चाहता है

हाय ! ये प्रेम में बावरा मन
अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है


29 टिप्‍पणियां:

  1. अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है
    मन की उड़ान न हो तो अनहोनी, होनी में कैसे बदले!
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. बहुत खूब। सूखे फूलों से खुशबू मिल जाए।

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  3. "हाय ! ये प्रेम में बावरा मन
    अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है"

    बिलकुल सच्ची बात ! सब कुछ संभव लगने लगता है प्रेम की कल्पनाओं में । आभार ।

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  4. तमन्नाओं की बढती अमरबेल तो देखो
    साजन से तुमको प्रियतम बनाना चाहता है

    बहुत सुन्दर रचना...

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  5. हर कोई उत्कर्ष पाना चाहता है!
    परिन्दा आकाश छूना चाहता है!!

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  6. मन के भावों का क्या सुन्दर चित्रण किया है! बहुत अच्छा लगा।

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  7. हाय ! ये प्रेम में बावरा मन
    अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है

    ???????? wah

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  8. बेहद उम्दा...एक खूबसूरत अभिव्यक्ति....बढ़िया रचना ..धन्यवाद वंदना जी

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  9. आपने बिलकुल ठीक कहा

    प्रेम में बावरा मन
    अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है

    आपकी रचना मन को छूने वाली है.

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  10. यहां अभिव्यक्ति की स्पषटता प्रमुख है।

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  11. जज्बातों को बहुत खूबसूरत शब्द दिए हैं...

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  12. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  13. एक बहुत अच्छी प्रेम में सराबोर रचना

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  14. इस बावरे मन की उड़ान की कोई सीमा नही है .............. बहुत लाजवाब लिखा है ....

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  15. mn ka baaNwra panchhi
    sach-much badaa naadaan hai,,,
    lekin phir bhi
    kartaa apne mn ki hi hai...!

    bahut sundar, jarhit rachnaa .

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  16. vanadanaji
    bahut sundar rachnayen padhne ko mil rahi hain.
    shukriya.

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  17. नामुमकिन सी तमन्ना को
    आइना बनाना चाहता है

    tamannaye aisi hi hoti hai ....bahut khoob

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  18. प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति के साथ... बहत सुंदर रचना...

    नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

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  19. हाय ! ये प्रेम में बावरा मन
    अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है
    बहुत सुन्दर रचना है बधाई वन्दना जी

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  20. तुम कौन हो?
    सच्चाई
    मै तो नई-नई कल्पनाओ को
    इजाद करने की फैक्टरी
    मै सातवे आसमान को जब छूने की बात करता हूं।
    तुम मुझे धरती पर ला पटक कर फेकती हो॥
    मै जब भावातीत ध्यानमे मग्न होता हूं।
    "कुकरची तिसरी शिट्टी झाली कि गैस बंद करा" आदेश देती हो॥
    मै जब शब्दो के माधुर्य को समझाना चाहता हूं।
    तो "हो आता साखर महाग झाली आहे" यह तुम्हारा पतिसाद मिलता है।
    अनंतता को गले लगाने की कहूं तो
    "आता झोपा उद्या उठायला उशीर होईल"की बुहार लगाती हो।
    मन कितना भी विशाल कर सकू तो क्या?
    करवट बदलता यह सोचकर
    कहीं तुम्हारी नींद न टूट जाये।

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  21. वंदना जी ,
    नमस्कार,
    आपके "जख्म""जिंदगी" ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक कर दिया गया है |

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