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शनिवार, 9 जनवरी 2010

दोबारा कैसे जियूँ

तारीख
कैसे याद रखूँ
हर तारीख
इक कहानी है
कभी गम है
कभी ख़ुशी है
तारीख की बेड़ियों से
यादों का अंकुर
जो फूटा
कभी तारीख में
कराहता इंतज़ार मिला
तो कभी इम्तिहान
कभी दर्द का
सैलाब मिला
तो कभी
भावनाओं का तूफ़ान
कहीं खुशियों की
सौगात मिली
तो कहीं जुगनू से
चमकते पलों का हिसाब
मगर फिर भी
तारीख कैसे याद रखूँ
हर लम्हे को
दोबारा कैसे जियूँ

15 टिप्‍पणियां:

  1. सही है... तारीखों में जब दर्द मिला होता है तो .... मुश्किल होता है.... उन्हें याद रख पाना.... ख़ुशी के लम्हों को संजो कर रखना ही दोबारा जीने कि आस होती है.....

    बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत सुंदर कविता ....दिल को छू गई.....


    Regards......

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  2. 'जुगनू से चमकते पलों का हिसाब' रखना सचमुच मुश्किल है वंदनाजी ! ख़ुशी, गम, इंतज़ार, निस्बत, विछोह-- और न जाने कितने-कितने रंगों से भरा आकाश ! यही तो है जीवन ! !
    बदलती तारीख के जीवन-प्रवाह में कैसे रक्षण हो इन पलों का... ये कठिनाई समझी जा सकती है... इसे शब्दों में बंधने का प्रयास प्रशंसा के योग्य है !
    साभिवादन--आ.

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  3. अनुपम प्रस्तुति ......... हर बीते हुवे लम्हे की, तारीख की कहानी होती है ........ वैसे मेरी मानें तो उनको भूल जाना ही बेहतर होते है ...... आने वाली तारीख को खुल कर गले लगाना चाहिए ..........

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  4. कोई भी लम्हा फिर से नहीं जिया जा सकता.....भावनाओं को सुन्दरता से सहेजा है.....बधाई

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  5. सच हर तारीख लम्हा-दर-लम्हा जेहन में सिमटती जा रही है,किसे याद करें

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  6. सही बात है वक्त मे ही दर्द को जीना पदता है जो सदा टीसता रहता है सुन्दर रचना के लिये बधाई

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  7. कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  8. शब्दों के माध्यम से-
    आपने अन्तर्द्वन्द का बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया है ।

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  9. PURANI YAADON KO TAZA RAKHNA HI UNHEN BAAR-BAAR JEENA HAI. SUNDER RACHNA HAI. BADHAAI.

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  10. जो बीत गई सो बीत गई जो है उसे आनंद के साथ जिया जाये...बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति है

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  11. तारीखों का अच्छा हिसाब रखने की कोशिश की है. पर है बड़ा मुश्किल काम है.हर लम्हे को समेटना और जब तब उसको जीने की चाहत रखना. जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी ये हिसाब तो बढ़ते ही जाना

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  12. तारीखों का अच्छा हिसाब रखने की कोशिश की है. पर है बड़ा मुश्किल काम है.हर लम्हे को समेटना और जब तब उसको जीने की चाहत रखना. जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी ये हिसाब तो बढ़ते ही जाना

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  13. बहुत सुंदर कविता ....
    लोहड़ी एवं मकर सकांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

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