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मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

पुकार

कान्हा तेरे दरस के दीवाने
नैन मेरे बरसे हर पल
कब दोगे दरस कन्हाई
अब तो हो गई जग में हंसाई
मैं तो हो गई तेरी दीवानी
दर दर भटकूँ मारी मारी
खोजत खोजत मैं तो हारी
अब तो दे दो दर्शन कन्हाई
जन्मों से मैं भटक रही हूँ
तेरे मिलन को तरस रही हूँ
जनम जनम की प्यासी हूँ
तेरे विरह में तड़प रही हूँ
अब तो दिखा दो झलक कन्हाई
वरना होगी जग में रुसवाई
सुनते हो तुम सबकी पुकार
मेरी बारी क्यूँ चुप्पी साधी
क्या मैं तेरे लायक नही हूँ
या मेरी पुकार में कमी है
एक बार बतला जा कान्हा
कैसे होगा मिलन हमारा

13 टिप्‍पणियां:

  1. कान्हा प्रेम में सबके यही हाल होते हैं. :) अच्छी रचना.

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  2. सुन्दर लोक गीत है, बस इसे ठीक से संजोने की जरूरत है।
    भाव बहुत उच्च कोटि के हैं। पढवाने का लिए आभार।

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  3. अंखियाँ कृष्ण दर्शन की प्यासी ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता ..

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  4. vandana ji, ye to main jaanta hun ki aap krishna bhakt/ ya kahen krishna ki diwani hain, tabhi aise bhav kavita men phoot pade hain, meera ki tarah man men tadap paida karo, mujhe asha hi nahin purn vishwas hai aapki manokaamna avashya purn hogi.

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  5. वन्दना जी

    बहुत ही सुन्दर्," एक बार बतला जा कान्हा, कैसे होगा मिलन हमारा"

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  6. कान्हा से किया गया निश्छल प्रेम ही हमें उनके करीब ले जा सकता है.

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  7. वन्दना जी!
    मेरे ब्लाग ‘उच्चारण’ पर आपकी टिप्पणियों का अर्द्धशतक पूरा हो गया है। आपकी टिप्पणियों की सिल्वर-जुबली पर हार्दिक बधायी प्रेषित करता हूँ।

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  8. vandana ji

    ye kavita to bahut hi acchi hai ..main kya kahun ,, rachna men prem aur virah dono bahut hi behatar tareeke se darshaya gaya hai ..

    meri badhai sweekar karen .

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com



    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com

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