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गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

तेरे गीतों पर

तेरे गीतों की स्वरलहरी पर
कदम मेरे मचल जाते हैं
तू बादल बन छा जाता है
मैं मोर सी थिरक जाती हूँ
तेरे गीतों के बोलो पर
दिल मेरा तड़प जाता है
तू दर्द बन छा जाता है
मैं आंसुओं में डूब जाती हूँ
तेरी गीतों की हर धुन पर
इक आह सी निकल जाती है
तू भंवरा सा गुनगुनाता है
मैं कली सी शरमा जाती हूँ

11 टिप्‍पणियां:

  1. गीतों की स्वर-लहरी पर,अरमान मचल जाते हैं।
    आँसू के सैलाबों से, पाषाण पिघल जाते हैं।।

    गम के नगमें सुन कर, मन से आह निकल जाती है।
    दुख में जीवन जीने की, इक राह निकल जाती है।।

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  2. सुन्दर रूमानी भाव लिए है यह रचना ..बढ़िया

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  3. बहुत सुन्दर रचना..
    शुभकामनायें

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  4. वन्दना है, प्रार्थना है,
    अर्चना है, साधना है.
    प्यार पूजा-पाठ है-
    प्यार ही आराधना है.

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  5. वाह .... सुंदर .... आज कल तेवर बदले हुये हैं :)

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