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गुरुवार, 7 नवंबर 2019

दिल माँ का किसी को समझ आता नहीं

दिल माँ का किसी को समझ आता नहीं
फूल कौन सा है जो अंत में मुरझाता नहीं
वो देगी बद्दुआ तो भी दुआ बन जायेगी
इतनी सी बात कोई उसे समझाता नहीं

तेरे गुस्से पर भी उसे गुस्सा आता नहीं
मगर तेरा बचपना है कि जाता नहीं
तेरे दर्द से पिघलती है जो दिन-ब-दिन
उसकी हूक का मर्म तुझे समझ आता नहीं

तू लेने हाल माँ का कभी आता नहीं
उसके क़दमों तले जन्नत है जान पाता नहीं
वो आईना है तेरे आने वाले कल का
अभिमानी मगर कल अपना संवार पाता नहीं

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बहुत बहुत ही भावुक रचना।
    "
    माँ को हर बार समझने जाता हूँ
    पर उनकी ममता से परे
    मैं कभी जा ही नहीं पाता हूँ"

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  3. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना मन को आडोलित करती ।
    वाह।

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  4. अभिमानी मगर कल अपना संवार पाता नहीं

    जवाब देंहटाएं

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