1
जार जार
है अस्मिता मेरी आज भी
व्यथित
हूँ , उद्वेलित हूँ , मर्मान्तक आहत हूँ
करती हूँ
जब भी आकलन
पाती हूँ
खुद को ठगा हुआ
मेरा
क्या दोष था
आज तक न
कहीं आकलन हुआ
तप शक्ति
से वरदान पा भविष्य सुरक्षित किया
तो क्या
बुरा किया
हर
स्त्री का यही सपना होता है
जीवनसाथी
का संग जन्म जन्म चाहिए होता है
अपनी
तपश्चर्या से आप्लावित हो
जब
गृहस्थ में प्रवेश हुआ
अपने समय
के शक्तिशाली वीर से मेरा विवाह हुआ
मेरी
शक्ति जान वो और मदमस्त हुआ
‘अब मैं नहीं मर सकता’ इसका उसे
भ्रम हुआ
तो बताओ
जरा
इसमें
मेरा क्या दोष हुआ ?
2
तुम्हें कृष्ण कहूं या विष्णु
दोनों रूप में तुम ही तो समाये हो
इसलिए संबोधन मैं तो तुम्हें कृष्ण का ही दूँगी
और तुम्ही से प्रश्न करूंगी
क्योंकि मूल में तो तुम ही हो सृष्टि के आधार
फिर कैसे तुमसे तुम्हारा कोई रूप भिन्न हो सकता है
जाने
कृष्ण तुमने कहा या समाज के ठेकेदारों ने
तुम्हें ये वीभत्स रूप दिया
लेकिन एक
कटघरा जरूर बना
और उसमे
तुम्हें खड़ा किया
जानते हो
क्यों
क्योंकि
तुम्हारे नाम पर ही तो दोहन हुआ
हाँ अबला
थी या सबला
कभी आकलन
नहीं कर सके तुम
जबकि
कितनी सबल थी
जिसे तुम
भी न डिगा सके
तब तुमने
धोखे का मार्ग अपनाया
और करके
शीलहरण
कौन सा
ऐसा मार्गदर्शक कार्य किया
जिससे
समाज सुसंस्कृत हुआ
कभी
विचारा इस पर ?
बेशक
शापित हुए
दंड भी
भोगा
और मुझे महिमामंडित
भी किया
बिना मेरे खुद का
पूजन न स्वीकार कर
कौन सा
अहसान किया
ये तो
तुमने सिर्फ खुद को अपराधबोध से मुक्त करने को स्वांग धरा
तुलसी और
शालिग्राम का रिश्ता बना लिया
मगर
बताना ज़रा
कैसे
तुम्हारा कृत्य उचित हुआ ?
3
मांग
लेते मेरा बलिदान सहर्ष दे देती
मानवता
के कल्याण हेतु
खुद को
समर्पित कर देती
ऋषि
दधिची सम
मैं भी
अपना उत्सर्ग कर देती
तो आज
मैं भी गौरान्वित होती
अपने
होने का कुछ मोल समझ लेती
मगर
तुमने तो छल प्रपंच का मार्ग अपनाया
धोखे से
मेरा सतीत्व भंग किया
भला
इसमें कौन सा नया इतिहास तुमने रचा
मगर
तुम्हें तो सदा धोखा छल प्रपंच ही भाया
ये कौन
सा नया चलन तुमने चलाया
हाथ
काटने वाले का हाथ काट गिराया
उन्मत्त
मदमस्त दंभ से ग्रस्त हो
अत्याचार
यौनाचार गर जालंधर करता था
तो उसके
कृत्य की सजा मैंने क्यों पायी
क्यों
मातृतुल्य पार्वती पर कुदृष्टि रखने वाले की पत्नी का
शीलभंग
करने की नयी प्रणाली तुमने चलायी
अब
शीलभंग करने को जरूरी नहीं किसी भी स्त्री का
तप की
शक्ति से आप्लावित हो किसी जालंधर सम योद्धा की पत्नी होना
बस जरूरी
है उसका स्त्री होना भर
शीलभंग
का अधिकार स्वयमेव पा लिया है पुरुष ने
4
ये कैसा
न्याय था तुम्हारा
जो
अन्याय बन पीढ़ियों को रौंद रहा है
तुम
दोषमुक्त नहीं हो सकते कृष्ण
बेशक
तुमने मुझे पूज्य बना
खुद को
अपराधबोध से मुक्त किया
फिर भी
मेरा पदार्पण न
किसी घर
के अन्दर हुआ
आज भी
देहरी तक ही है प्रवेश मेरा
अन्दर
आना वर्जित है
तुम्हारा
ये दोगला आचरण
न मुझे कृतार्थ
कर पाया
शोषित
परित्यक्ता सी मैं
आज भी
सिर्फ देहरी की शोभा बनती हूँ
एक शापित
जीवन जीती हूँ
5
कृष्ण
तुम्हारी बिछायी जलकुम्भियों में
आज हर
स्त्री जल रही है ,
डर रही है , लड़ रही है
मगर बाहर
नहीं निकल पा रही
हर डगर , हर मोड़
पर तुम्हारा सा वेश धरे खलनायक खड़े हैं
उसकी
अस्मिता से खेलने को
उसका
शीलहरण करने को
और जानते
हो
अब
तुम्हारी तरह महिमामंडित नहीं की जाती वो
बल्कि
पेड़ों पर टांग दी जाती है
या फिर
अंतड़ियाँ बाहर खींच मार दी जाती है
सुनो
कितना और
दोष लोगे खुद पर
क्या
शर्मसार नहीं होते होंगे ये सोच
तुम्हारे
बोये काँटों की फसल कैसी लहलहा रही है
कि घर
बाहर हर जगह चुभ कर
न केवल
शरीर आत्मा भी रक्तरंजित हुए जा रही है
और हल के
नाम पर
कोई
तस्वीर न नज़र आ रही है
आज
शोषित का ही जीवन दूभर हुआ है
अनाचारी
व्यभिचारी महिमामंडित हुआ है
क्या खुश
हो इतनी स्त्रियों के शोषण का दोष सिर पर लेकर ?
क्या चैन
से जी पाते होंगे तुम ?
6
एक सत्य
से और अवगत करा दूं तुम्हें
बेशक
अपने साथ पुजवाया तुमने
मगर तुम
आये तो इंसान बनकर ही थे न
तो कैसे
संभव था इंसानों का तुम्हारे
पदचिन्ह
पर न चलना
नहीं
मानते वो तुम्हें भगवान्
नहीं हुआ
मेरा उद्धार
क्योंकि
आज भी
शोषित
हूँ मैं
ये जो
सम्पूर्ण स्त्री जाति देखते हो न ......प्रतीक है मेरी
और तुम
प्रतीक हो ......समस्त पुरुष वर्ग के
उनके लिए
भगवान् नहीं हो ...........
शीलहरण
कर कौन सी देवस्तुति तुल्य परंपरा के वाहक बने ........बताना तो ज़रा !!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-08-2018) को "धार्मिक आस्था के नाम पर अराजकता" (चर्चा अंक-3060) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एमएलए साहब का राजनैतिक प्यार “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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