हम इंतज़ार करेंगे
साथी
हम इंतज़ार करेंगे
इंतज़ार पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
कह, नहीं सिद्ध किया जा सकता कुछ भी
हाँ , कह सकें गर
इंतज़ार पर हमारा कॉपी राईट है
तो वजन बढ़ता है
एक तीर से कई शिकार करता है
इंतज़ार
एक छोटा सा शब्द
लेकिन व्यापक अर्थ
और खुद में समायी एक मुकम्मल अभिव्यंजना
तो कैसे शब्द को शब्द भर रहने दें
क्यों न उसकी मुकम्म्लता साबित कर दें
इंतज़ार क्या है
बस इतना ही
कभी किसान देखता है आसमान की तरफ
बरखा की आस में
तो कभी देखता है तो कहता है
न, मत बरसना
सोना मिटटी हो जायेगा
मेरे देश की जनता भूखों मर जायेगी
तो क्या हुआ
गर इतनी भर है इंतज़ार की परिभाषा
न , न ये भी नहीं
इंतज़ार का पलीता तो
जनता भाग्य में लिखाकर आती है
तभी तो बेखबरी की नींद सो जाती है
वो जगाते हैं पाँच साल बाद
तो फिर एक बार
उन्हें आश्वासन दे आती है
फिर चाहे खुद के भाग्य न छींका टूटे
मगर अपने इंतज़ार को
मुकम्मल न कर पाती है
बस यहीं तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आज नहीं करता कोई किसी का इंतज़ार
इसलिए जनाब
एक तबके ने कर लिया दावा कॉपी राईट का
अब प्रेम में असफल नहीं होते
अब मोहब्बत के इन्जार में बूढ़े नहीं होते
गए वो दिन
जब राम के इंतज़ार में अहिल्या पत्थर हो जाया करती थी
आज इंतज़ार का अर्थ
राम मंदिर नहीं है
बाबरी मस्जिद है
बुरका है , तलाक है
और संवेदनाओं का अंत है
सीमा पर शहीदों का बहता रक्त है
जहाँ नहीं की जातीं सर्जिकल स्ट्राइक तब तक
जब तक न उससे खुद का भला हो
तो जनाब
इंतज़ार पर उनका कॉपी राईट हुआ न
जहाँ चाहे जिसपर चाहे थोप दिया
सहूलियतों के चमचों पर नहीं बनाई जाती अब इमारतें
एक खटराग जरूरी है छद्मवेश धारियों के लिए
कि
मौसम भी जुबाँ बदलता है ...
चलो इंतज़ार के सब्जबागों में थोड़ी देर टहल आयें
बस यहीं तक है
भाग्यवादियों की पैमाइश
आज कॉपी राईट के ज़माने में इंतज़ार महज बैसाखी ही तो है
साथी
हम इंतज़ार करेंगे
इंतज़ार पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
कह, नहीं सिद्ध किया जा सकता कुछ भी
हाँ , कह सकें गर
इंतज़ार पर हमारा कॉपी राईट है
तो वजन बढ़ता है
एक तीर से कई शिकार करता है
इंतज़ार
एक छोटा सा शब्द
लेकिन व्यापक अर्थ
और खुद में समायी एक मुकम्मल अभिव्यंजना
तो कैसे शब्द को शब्द भर रहने दें
क्यों न उसकी मुकम्म्लता साबित कर दें
इंतज़ार क्या है
बस इतना ही
कभी किसान देखता है आसमान की तरफ
बरखा की आस में
तो कभी देखता है तो कहता है
न, मत बरसना
सोना मिटटी हो जायेगा
मेरे देश की जनता भूखों मर जायेगी
तो क्या हुआ
गर इतनी भर है इंतज़ार की परिभाषा
न , न ये भी नहीं
इंतज़ार का पलीता तो
जनता भाग्य में लिखाकर आती है
तभी तो बेखबरी की नींद सो जाती है
वो जगाते हैं पाँच साल बाद
तो फिर एक बार
उन्हें आश्वासन दे आती है
फिर चाहे खुद के भाग्य न छींका टूटे
मगर अपने इंतज़ार को
मुकम्मल न कर पाती है
बस यहीं तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आज नहीं करता कोई किसी का इंतज़ार
इसलिए जनाब
एक तबके ने कर लिया दावा कॉपी राईट का
अब प्रेम में असफल नहीं होते
अब मोहब्बत के इन्जार में बूढ़े नहीं होते
गए वो दिन
जब राम के इंतज़ार में अहिल्या पत्थर हो जाया करती थी
आज इंतज़ार का अर्थ
राम मंदिर नहीं है
बाबरी मस्जिद है
बुरका है , तलाक है
और संवेदनाओं का अंत है
सीमा पर शहीदों का बहता रक्त है
जहाँ नहीं की जातीं सर्जिकल स्ट्राइक तब तक
जब तक न उससे खुद का भला हो
तो जनाब
इंतज़ार पर उनका कॉपी राईट हुआ न
जहाँ चाहे जिसपर चाहे थोप दिया
सहूलियतों के चमचों पर नहीं बनाई जाती अब इमारतें
एक खटराग जरूरी है छद्मवेश धारियों के लिए
कि
मौसम भी जुबाँ बदलता है ...
चलो इंतज़ार के सब्जबागों में थोड़ी देर टहल आयें
बस यहीं तक है
भाग्यवादियों की पैमाइश
आज कॉपी राईट के ज़माने में इंतज़ार महज बैसाखी ही तो है
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 05 मई 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा.... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा कटाक्ष। सत्य कहा ,श्रीमान
जवाब देंहटाएंसमय की चुनौतियों से न निबट पाने की अक्षमता ही इंतज़ार का कॉपीराइट बनकर उभरी है। सम सामयिक बिषयों की पड़ताल करती रचना मंथन के नए आयाम खोलती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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