रचनी हैं अब साजिशें
स्वप्न तो बहुत देख दिखा चुके
ये वक्त का बदला लहजा है
जिस पर इंसानियत तलवों का उपालम्भ है
और साजिश एक आदतन शिकारी
चौतरफा बहती बयार में
जरूरी है बह जाना
जिंदा रहना जरूरत जो ठहरी आज की
हकीकतों के चिंघाड़ते जंगल
दे रहे हैं दलीलें
वक्त अपनी नब्ज़ बदल चुका है
तुम कब बदलोगे ?
आदर्शों उसूलों के धराशायी होते महल
कबीलों में बदलते जल जंगल और जमीन
ऊँची दुकान फीके पकवान समान
अब नहीं करते जिरह ...
हकीकतें दुरूह हुआ करती हैं
जानते हैं वो ....
सीख सको तो सीख लेना
स्वप्नों से बगावत करना
और साजिशों से दोस्ती करना
कि
ये समय की सबसे बड़ी साजिश है
कोई अठखेली नहीं ...
बदलाव के कबूतरों ने मुंडेरों पर उतरना छोड़ दिया है
साजिशें स्वप्नों का हिस्सा हों
या स्वप्न साजिश का
हलाक तुम्हें ही होना है अंततः ...
कहो अब किस ओर का साक्षी है तुम्हारा जमीर ?
क्योंकि
हर मुस्कराहट का अर्थ अलग हुआ करता है .........जानते हो न
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/03/blog-post_21.html
जवाब देंहटाएंहर मुस्कुराहट का अर्थ अलग हुआ करता है .....वाह !!!!बहुत सुंदर 👍
जवाब देंहटाएंसाथॆक प्रस्तुतिकरण......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....
साथॆक प्रस्तुतिकरण......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2609 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह!अतिसुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंhttp://awadheshvermashine.blogspot.com
जवाब देंहटाएंBahut khoob