उम्मीद के टोकरे में होकर सवार
आया नववर्ष मेरे द्वार
तो क्या हुआ
मुझे रीतना था , रीत गयी
वक्त ने जीतना था , जीत गया
एक नामालूम , बेवजह सा सपना था
टूटना था , टूट गया
ज़िन्दगी पाँव में पायल डाल जरूरी नहीं झंकार ही करे
मैंने उम्मीदों की शाख पर नहीं सुखाई अपनी हसरतें
क्योंकि
वक्त ने खार सा चुभना था , चुभ गया
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
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नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'