1
मैंने हदों से कहा
मत चिंघाडो
कि लांघने को मेरे पास दहलीज ही नहीं
पत्थरों के शहर में
पत्थरों के आइनों में
पत्थर सी हकीकतें ही तो नज़र आएँगी
मैंने हदों से कहा
मत चिंघाडो
कि लांघने को मेरे पास दहलीज ही नहीं
पत्थरों के शहर में
पत्थरों के आइनों में
पत्थर सी हकीकतें ही तो नज़र आएँगी
ये मेरी
बेअदबी मोहब्बत का जूनून नहीं
जो सिर चढ़कर बोले ही
कि आज
शहर में झंझावात आया है
और डूबने को मैं कहीं बची ही नहीं
और दिल है कि गुलफाम हो रहा है .........
2
तेरी यादों से बात करूँ कि तुझे याद करूँ
दिल की बेचैनियों को कैसे आत्मसात करूँ
3
चुप्पी को घोंटकर पी गयी
ज़िन्दगी कब का लील गयी
बेअदबी मोहब्बत का जूनून नहीं
जो सिर चढ़कर बोले ही
कि आज
शहर में झंझावात आया है
और डूबने को मैं कहीं बची ही नहीं
और दिल है कि गुलफाम हो रहा है .........
2
तेरी यादों से बात करूँ कि तुझे याद करूँ
दिल की बेचैनियों को कैसे आत्मसात करूँ
3
चुप्पी को घोंटकर पी गयी
ज़िन्दगी कब का लील गयी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-11-2015) को "काँटें बिखरे हैं कानन में" (चर्चा-अंक 2168) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंचुप्पी को घोंटकर पी गयी
ज़िन्दगी कब का लील गयी
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....