उड़ ही जाते हैं पंछी घोंसला छोड़
जब उग आते हैं पंख
और निर्भरता हो जाती है ख़त्म
छोड़ चुका है पंछी अब नीड़
उड़ने दो उसे
भरने दो उसे परवाज़
तोलने दो उसे अपने पंखों को
कि
नापने को धरती और आकाश की दूरियां
जरूरी होता है
खुद उड़ान भरना
अपना आकाश खुद बनाना
ये समय की माँग है
तो मानना ही पड़ेगा इस सत्य को
' बच्चे बड़े हो गए हैं '
मगर क्या सच में ?
विश्वास और अविश्वास की गुल्झट सुलझाते हुए
अन्दर की माँ पसोपेश में है
कहीं बच्चे भी कभी बड़े होते हैं ?
वो तो माँ के लिए उम्र भर बच्चे ही रहते हैं
फिर कैसे करूँ इस कटु सत्य को स्वीकार ?
achhi kavita
जवाब देंहटाएंachhi kavita
जवाब देंहटाएंसच कहा अपने बच्चे कभी बड़े नहीं होते हम चाहें कितने भी बड़े क्यों हो जाएँ एक बच्चा अपने अंदर छुपाये रहते हैं
जवाब देंहटाएंसच है बच्चे हमेशा ही मां बाप कि लिये बच्चे ही रहते है
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2024 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ये सत्य है, सबको स्वीकारना ही होगा
जवाब देंहटाएंदूर जाते बच्चों के लिए माँ की तड़प व्यक्त करती कविता ,अच्छी है
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