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गुरुवार, 21 मई 2015

उम्र के विभाजन और तुम्हारी कुंठित सोच

सिन्धी और पंजाबी के बाद अब नेपाली में मेरी कविता का अनुवाद नेपाल से निकलने वाली पत्रिका " शब्द संयोजन " में भी ........वासुदेव अधिकारी जी का हार्दिक आभार जो उन्होंने कविता का अनुवाद कराया और पत्रिका भी भेजी .जिस कविता का अनुवाद हुआ है वो ये है जिसका शीर्षक बदला हुआ है :





स्त्रियां नहीं होतीं हैं 
चालीस ,  पचास या अस्सी साला 
और न ही होती हैं सोलह साला 

यौवन धन से भरपूर  
हो सकती हैं किशोरी या तरुणी  
प्रेयसी या आकाश विहारिणी  
हर खरखराती नज़र में  
गिद्ध दृष्टि वहाँ नहीं ढूँढती  
यौवनोचित्त आकर्षण  
वहाँ होती हैं बस एक स्त्री   
और स्खलन तक होता है एक पुरुष  

प्रदेश हों घाटियाँ या तराई  
वो बेशक उगा लें 
अपनी उमंगों की फ़सल 
मगर नहीं ढूँढती 
कभी मुफ़ीद जगह  
क्योंकि जानती हैं  
बंजरता में भी 
उष्णता और नमी के स्रोत खोजना  
इसलिये  
मुकम्मल होने को उन्हें  
नहीं होती जरूरत उम्र के विभाजन की  
स्त्री , हर उम्र में होती है मुकम्मल 
अपने स्त्रीत्व के साथ  

भीग सकती है  
कल- कल करते प्रपातों में 
उम्र के किसी भी दौर में  
उम्र की मोहताज नहीं होतीं 
उसकी स्त्रियोचित  
सहज सुलभ आकांक्षाएं
देह निर्झर नहीं सूखा करता 
किसी भी दौर में 
लेकिन अतृप्त इच्छाओं कामनाओं की 
पोटली भर नहीं है उसका अस्तित्व  


कदम्ब के पेड ही नहीं होते 
आश्रय स्थल या पींग भरने के हिंडोले  
स्वप्न हिंडोलों से परे  
हकीकत की शाखाओं पर डालकर 
अपनी चाहतों के झूले 
झूल लेती हैं बिना प्रियतम के भी 
खुद से मोहब्बत करके  
फिर वो सोलहवाँ सावन हो या पचहत्तरवाँ 
पलाश सुलगाने की कला में माहिर होती हैं 
उम्र के हर दौर में  

मत खोजना उसे 
झुर्रियों की दरारों में 
मत छूना उसकी देहयष्टि से परे 
उसकी भावनाओं के हरम को 
भस्मीभूत करने को काफी है 
उम्र के तिरोहित बीज ही 

तुम्हारी सोच के कबूतरों से परे है 
स्त्री की उड़ान के स्तम्भ 
जी हाँ ……… कदमबोसी को करके दरकिनार 
स्त्री बनी है खुद मुख़्तार 
अपनी ज़िन्दगी के प्रत्येक क्षण में 
फिर उम्र के फरेबों में कौन पड़े 

अब कैसे विभाग करोगे  
जहाँ ऊँट किसी भी करवट बैठे  
स्त्री से इतर स्त्री होती ही नहीं  
फिर कैसे संभव है 
सोलह , चालीस या पचास में विभाजन कर 
उसके अस्तित्व से उसे खोजना  

ये उम्र के विभाजन तुम्हारी कुंठित सोच के पर्याय भर हैं ………ओ पुरुष !!!

13 टिप्‍पणियां:

  1. very thought provoking . indeed you are right existence of woman is only of a woman cant be divided in ages if you that is male mentality.

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  2. औरतें ! नहीं होती षोडशी
    न 25 - 35 - 40 .... साल की
    औरतें होती हैं सिर्फ इश्क़
    और इश्क़ की मिटटी से बनी माँ।
    औरतों को उम्र में बाँधना
    उनकी पहचान से विलग होना है
    एक नन्हीं उम्र भी माँ सा रूप दिखाती है
    और बुत हुई औरतें
    एक सौंधे शाब्दिक स्पर्श से
    हो जाती हैं पुरवाई
    खुद में कर लेती हैं प्राणप्रतिष्ठा
    गतिहीन समय को
    गतिमान बना देती हैं
    औरतें उम्र से परे होती हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-05-2015) को "उम्र के विभाजन और तुम्हारी कुंठित सोच" {चर्चा - 1983} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-05-2015) को "उम्र के विभाजन और तुम्हारी कुंठित सोच" {चर्चा - 1983} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

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  5. इस सुन्दर कविता के अनेक भाषाओँ में अनुवाद हेतु आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया

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  6. बहुत सुंदर,वंदना जी!!!
    खोल दी---मंजूषा---जो
    कोई पुरुष साहस भी ना कर
    पाएगा,छूने भर को---और ना कर
    सका है.
    एक-एक शब्द-संयोजन पूर्णता से
    भर-पूर.
    बस इतना ही कह पाई हूं.

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  7. ये उम्र के विभाजन तुम्हारी कुंठित सोच के पर्याय भर हैं ………ओ पुरुष !!! ...सारा निचोड़ यही है ..
    बहुत सुन्दर ..

    जवाब देंहटाएं
  8. ये उम्र के विभाजन तुम्हारी कुंठित सोच के पर्याय भर हैं ………ओ पुरुष !!!... सारा निचोड़ यही है ..
    बहुत सुन्दर

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  9. बिल्कूल सत्य कहा गया कुंठित सोच के बारे मे. !

    जवाब देंहटाएं

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