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शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा


आज के हमारा मेट्रो में प्रकाशित आलेख 

१४ तारीख से पुस्तक मेला प्रारंभ हो रहा है . 

सभी जानते हैं नया क्या है . आपने कौन सी अनोखी सूचना दे दी जनाब . 

नहीं जी हमने कोई अनोखी सूचना नहीं दी लेकिन मैं तो सोच में पड़ गया हूँ ?

किस सोच में ? अब पुस्तक मेला हो और सोच भी हो कमाल है आपका ?

अरे भाई सोचना तो पड़ेगा ही न .......

मगर पता तो चले किस बारे में ?

जनाब देखो हम हैं फेसबुकिया मित्र (और लेखक और कवि) जैसा कि आजकल मित्र लोग कहने लगे हैं अब हैं या नहीं इसका हमें नहीं मालूम .........हाँ तो बात ये है जब भी पुस्तक मेला आता है हमारी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे होने लगती है .

अरे भाई क्यों ? कौन सा पुस्तक मेला आपको पहाड़ की चढवाई करवा देता है जो सांस ऊपर नीचे होने लगती है ?

भैये देखो ये फेसबुक है तो यहाँ मित्रों की संख्या तो पूछो ही मत और ऐसे में सभी या तो कवि मिलेंगे या लेखक माने हो न 

बिलकुल 

तो सोचो जरा सब इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं कब पुस्तक मेला आये और हम सबकी पुस्तकें आयें मगर मगर मगर ............ यहीं आकर हम जैसे लोगों की मुश्किल शुरू होती है 
अरे तुम द्रौपदी के चीर सी बात को खींचे मत चले जाओ बस ये बताओ तुम्हारी आखिर मुश्किल है क्या ?

अरे बाबा ..........बहुत बड़ी मुश्किल है .........जब सभी मित्रों की किताबें छप कर आती हैं तो वो हमें लोकार्पण में बुलाते हैं और हम जाते भी हैं अब सोचो ऐसे में यदि हम खाली सूखी शुभकामनाएं दे आयें तो वो भी तो ठीक नहीं न .............और अगर गीली शुभकामनाएं दें तो जेब ढीली होती है क्योंकि वैसे भी यहाँ थोक के भाव पुस्तकें छपती हैं और थोक के भाव लोकार्पण होते हैं सोचो जरा ऐसे में हम किस हद तक जेब ढीली करते रहे ........अमां यार हर इंसान का एक बजट होता है और यहाँ लोकार्पण तो बे - बजट होता है .

तो क्या मुश्किल है जितना जेब कहे उतना खर्च करो किसने कहा है ज्यादा करो .

जनाब यहीं आकर तो मुश्किल शुरू होती है .......सभी अपने अभिन्न मित्र होते हैं और यदि गलती से उनकी पुस्तक न लो तो खफा हो जाते हैं या बाद में पूछेंगे आपने मेरी पुस्तक पढ़ी ? कैसी लगी ? आपने तो उस पर अपनी प्रतिक्रिया ही नहीं दी ? हम तो सोचते थे आप हमारे सबसे अच्छे मित्र हैं इसलिए आप तो एक ऐसी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया देंगे जो हमें रातों रात स्थापितों की श्रेणी में खड़ा कर देंगे ? आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी ..........सोचो जरा कितना घड़ों पानी हमारे ऊपर डल जाता होगा उस वक्त ? हम तो अभी से भरी सर्दी में पसीने पसीने हुए जा रहे हैं , दिल की धडकनें देखिये शताब्दी को मात कर रही हैं .अब हम कोई धन्ना सेठ की औलाद तो हैं नहीं जो बाप दादे अकूत संपत्ति छोड़ गए हों और हम बेफिक्री से खर्च कर सकें ..........दूसरी बात भैये , दिल्ली जैसे शहर में रहते हैं तो खर्च ही नहीं जीने देते ऐसे में खुद के शौक पूरे करने को हजार बार सोचना पड़ता है उस पर साहित्य के साथ जिसके फेरे पड़ गए हों सोचो वो कहाँ जाए और कैसे अपनी सांसें दुरुस्त करे जब घर का खर्च मुश्किल से निकलता हो वहां पूरे साल एक एक पैसा बचाकर रखा है कि पुस्तक मेले में पुस्तकें खरीदेंगे मगर ये नहीं पता था यहाँ तो जेब पर ही डाका पड़ेगा ............किसे छोडें और किसे पकडें वाली स्थिति में फंस गए हैं हम तो .

अरे इतने क्यों हलकान हो रहे हो ........कोई बीच का उपाय सोचो ?

क्या सोचें कुछ समझ नहीं आ रहा ........एक एक लेखक और कवि की ४-५ से कम तो पुस्तकें नहीं आ रहीं ऐसे में हम क्या करें 

अरे बीच का मार्ग ............

कौन सा ?

अरे कुछ को कहो न कि तुम्हें भेंट कर दें और कुछ खरीद लेना और एक दो दिन जाना ही मत कह देना जरूरी काम से बाहर जाना पड़ गया और इस तरह तुम्हारा बजट भी नहीं बिगड़ेगा और दोस्ती भी बनी रहेगी :)

अरे मियाँ लगता है तुम तो बिलकुल ही अनजान हो आजकल के ट्रेंड से ?

क्यों ऐसा कौन सा ट्रेंड चल रहा है आजकल ?

अजी ये जो लेखक कवि बिरादरी है न इसने एक और नया शगूफा बाज़ार में छोड़ा हुआ है ......पुस्तक खरीद कर पढो गिफ्ट में मत दो 

ओह ....ऐसा क्या ? फिर तो भैये तुम सच में मुश्किल में आ गए हो अब तो बस आखिरी उपाय एक ही बचता है .

हाँ हाँ बताओ न जल्दी से मेरी तो जान ही निकली जा रही है 

तुम बस ये करो अभी से स्टेटस लगाने शुरू कर दो .............जो मित्र अपनी पुस्तकों की समीक्षा करवाना चाहते हैं नीचे दिए पते पर पुस्तकें प्रेषित करें .

वो मारा .........ये हुई न बात ............हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ......हाहाहा 

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