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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

जय जय लोकतंत्र की

आइये जनाब आइये 
एक नया खेल देखिये 
राजनीति की उठापटक में 
कल तक जो भगोडे कहे जाते थे 
आज उन्हीं का स्वागत देखिए 
जनता जाग गयी है
उनको धूल चटा गयी है
जो सब्जबाग दिखा रहे थे
आँख में धूल डाल रहे थे
कोरे आश्वासनों के घोडों पर सवार हो
नहीं जीती जातीं हैं जंग
कर्मण्येवाधिकारस्ते ही जंग जीता करते हैं
जनता ने बतला दिया है
कीचड कितनी उछाली जाये
चाँद पर न दाग लगता है
आस्माँ पर थूका खुद पर ही गिरता है
इस बार जनता ने बतला दिया
अहंकारियों को धूल चटा दिया
ये लोक के तंत्र की शक्ति है
न किसी दल की भक्ति है
कछुआ एक बार फिर जीत गया
खरगोश अपने अहंकार में हार गया
इकतरफ़ा जीत बताती है
जनता जागरुक हो गयी है
बहलाव फ़ुसलाव में नहीं आती है
लोकतंत्र के चौथे खंभे के बदलते रंग देखिये
जो कल तक जिन्हें न किसी गिनती में गिनते थे
आज पीछे पीछे दौडे जाते हैं
आम आदमी की शक्ति को पहचान गये हैं
तो बोलो भक्तों जय जय लोकतंत्र की

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