वो कहते हैं
नपुंसक समाज के नपुंसकों
तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड सकते
हम तो ऐसा ही करेंगे
कानून क्या बिगाडेगा हमारा
जब अब तक न कुछ बिगाड सका
अमानवीयता की हर हद को तोड कर
नये नये तरीके ईजाद करेंगे
मानवीयता की हर हद को तोड कर
ब्लात्कार करेंगे ब्लात्कार करेंगे ब्लात्कार करेंगे
बलात्कार अमानवीयता संवेदनहीनता महज थोथे शब्द भर रह गये
शर्मसार होने को क्या अब भी कुछ बचा रह गया है जो समाज देश कानून सब कुम्भकर्णी नींद सो रहे हैं जिन्हें पता नहीं चल रहा कि किस आग को हवा दे रहे हैं , कल जाने और कितना वीभस्त होगा ये तो सिर्फ़ एक शुरुआत है यदि अभी नहीं संभले तो कल तुम्हारी आँखों के आगे भी ये मानसिक विक्षिप्त कुछ भी कर सकते हैं और तुम नपुंसकों से कुछ नहीं कर पाओगे समय रह्ते चेतो , जागो और कुछ न्याय कानून से हटकर कदम उठाओ ताकि सीधा संदेश जाए ऐसे दरिंदों तक ……अब यदि कुछ किया तो क्या हश्र होगा उसका दम दिखाओ नहीं तो तैयार रहना बर्बादी हर घर के आगे दस्तक दे रही है ।
नपुंसक समाज के नपुंसकों
तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड सकते
हम तो ऐसा ही करेंगे
कानून क्या बिगाडेगा हमारा
जब अब तक न कुछ बिगाड सका
अमानवीयता की हर हद को तोड कर
नये नये तरीके ईजाद करेंगे
मानवीयता की हर हद को तोड कर
ब्लात्कार करेंगे ब्लात्कार करेंगे ब्लात्कार करेंगे
बलात्कार अमानवीयता संवेदनहीनता महज थोथे शब्द भर रह गये
शर्मसार होने को क्या अब भी कुछ बचा रह गया है जो समाज देश कानून सब कुम्भकर्णी नींद सो रहे हैं जिन्हें पता नहीं चल रहा कि किस आग को हवा दे रहे हैं , कल जाने और कितना वीभस्त होगा ये तो सिर्फ़ एक शुरुआत है यदि अभी नहीं संभले तो कल तुम्हारी आँखों के आगे भी ये मानसिक विक्षिप्त कुछ भी कर सकते हैं और तुम नपुंसकों से कुछ नहीं कर पाओगे समय रह्ते चेतो , जागो और कुछ न्याय कानून से हटकर कदम उठाओ ताकि सीधा संदेश जाए ऐसे दरिंदों तक ……अब यदि कुछ किया तो क्या हश्र होगा उसका दम दिखाओ नहीं तो तैयार रहना बर्बादी हर घर के आगे दस्तक दे रही है ।
रचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुती,आभार।
जवाब देंहटाएंवहशी सोंच वाले क्या सच में सोंचने और समझने की क्षमता रखते हैं.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही नामं दिया आपने।
जवाब देंहटाएं--
शोचनीय स्थिति है आज वास्तव में।
बिल्कुल सही नामं दिया आपने।
जवाब देंहटाएं--
शोचनीय स्थिति है आज वास्तव में।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पानी वाला एटीएम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंक्या बात गई। झकझोर दिया आपके शब्दों ने। आज ऐसे हि आह्वन की जरुरत है।। समाज को बचाना है तो कठोर फैसले करने होंगे और अब समय आ गया है की हम जानवरों के साथ इंसानी कानून लगाने से बाज आये। और उन्हें वैसी हि सजा दें जैसी एक जानवर दरिन्दे को देनी चाहिए
जवाब देंहटाएंकड़वा सच ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच में ये शब्द थोथे ही लगते हैं.....
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंसच है आपका आक्रोश कितनी प्रगति कर ली है समाज ने दरिंदगी के उतरोत्तर प्रगतिशील तरीके एजाद कर लिए दरिंदों ने जिनहे कहते हुये भी कल्पना भी शर्मा जाये...... एक जुट खड़े होने का समय है
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ दी ..अब तो शब्द भी साथ नहीं देते ये सब देख कर
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