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शनिवार, 24 मई 2014

विदाई की बेला में

मैं ,तुम, वह से परे भी 
इक संसार हुआ करता था 
पता नहीं 
वक्त की साज़िशें हुईं
या रुत ने करवट बदली 
जाने कहाँ खो गया
अब 
क्या होगा कहने से 
भुला देना मुझे 
मेरे जाने के बाद 
जबकि जानता हूँ ये सत्य 
कौन याद रखता है किसी को 
किसी के जाने के बाद 
इसलिए 
कहता हूँ यारों 
भुला दो मुझे 
मेरे जाने से पहले 
कम से कम इत्मीनान रहे 
आया था अकेला 
तो कहाँ मिलते हैं साथी 
विदाई की बेला में साथ 
मोह के बंधन शायद
कुछ कम हो जाएं ..........   और जाना सुगम 

यूँ भी दरख़्त से पत्तों के झड़ने का मौसम गवाह है चिन्हित दिशा का 

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