लिखती हूँ कलम से
दिल की किताब पर
एक नाम अनाम सा
शायद कहीं वो मिल जाये
जो हो इक रिश्ता ख्वाब सा
हाथो की चूडियों सा खनकता
पैरों की पैंजनिया सा छनकता
दुल्हन के जोडे मे सिमटा
इक हया की ओट मे दुबका
वो कल्पना की आब सा
शायद कहीं वो मिल जाये
इक रिश्ता गुलाब सा
अनाम मोहब्बत का पैगाम
अनाम मोहब्बत के नाम सा
शायद कहीं वो मिल जाये
जो हो इक रिश्ता ख्वाब सा
चलो जी लें इक ख्वाब को हकीकत सा शायद यूँ भी बन्दगी हो जाए ………
इक रिश्ता गुलाब सा
जवाब देंहटाएंअनाम मोहब्बत का पैगाम
अनाम मोहब्बत के नाम सा
शायद कहीं वो मिल जाये
जो हो इक रिश्ता ख्वाब सा
....हमेशा की तरह लाजवाब
रिश्ता एक ख्वाब सा.............
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता !!
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (20-05-2014) को "जिम्मेदारी निभाना होगा" (चर्चा मंच-1618) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंचलो जी लें इक ख्वाब को हकीकत सा शायद यूँ भी बन्दगी हो जाए ………
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी कविता।